Ujjain Mahakal Temple: महाकाल ने भगवान विष्णु के हाथों में सौंपा सृष्टि का कार्यभार, इस अनोखी परंपरा के साक्षी बने हजारों श्रद्धालु
Ujjain News: बैकुंठ चतुर्दशी के मौके पर उज्जैन के महाकाल मंदिर से रात 11.30 बजे भगवान भोलेनाथ की सवारी निकाली गई. महाकाल की सवारी रात 12 बजे गोपाल मंदिर पहुंची, जहां हरि-हर मिलन हुआ.
Madhya Pradesh News: बीते चार महीने से सृष्टि का कार्यभार संभाल रहे बाबा महाकाल ने सृष्टि का कार्यभार वापस भगवान विष्णु को सौंप दिया है. रात 12 बजे उज्जैन स्थित गोपाल मंदिर पहुंचकर भगवान महाकाल ने भगवान विष्णु को यह कार्यभार सौंपा. इस हरि-हर मिलन और अनूठी परम्परा के साक्षी हजारों श्रद्धालु बने.
बैकुंठ चतुर्दशी के मौके पर उज्जैन के महाकाल मंदिर से रात 11.30 बजे भगवान भोलेनाथ की सवारी निकाली गई. सवारी का रास्ते भर श्रद्धालुओं द्वारा जमकर स्वागत किया गया. भगवान महाकाल की सवारी रात 12 बजे गोपाल मंदिर पहुंची, जहां भगवान विष्णु और भगवान भोलेनाथ का पूजन किया गया. सृष्टि की सत्ता के हस्तांतरण की परम्परा दोनों देवताओं की माता बदलकर निभाई गई.
हरि-हर मिलन के साक्षी बने श्रद्धालु
भगवान शिव और भगवान विष्णु के इस हरि-हर मिलन के साक्षी हजारों श्रद्धालु बने. इस हरि-हर मिलन को देखने के लिए देश भर से श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं. भगवान महाकाल की सवारी में श्रद्धालु शामिल हुए. महाकाल मंदिर से गोपाल मंदिर की सड़क भगवान महाकाल और द्वारिकाधीश के नारों से गुंजायमान रही. श्रद्धालुओं ने ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों से पुष्प वर्षाकर पालकी यात्रा का स्वागत किया. बता दें कि, हरि-हर मिलन की यह परम्परा वैष्णव और शैव संप्रदाय के समन्वय और सौहार्द का प्रतीक है.
यह है पौराणिक कथा
महाकाल मंदिर के पुजारी महेश के अनुसार राजा बलि ने स्वर्ग पर कब्जाकर इंद्रदेव को बेदखल कर दिया था. ऐसे में इंद्रदेव ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी. वामन अवतार लेकर विष्णु राजा बलि के यहां दान मांगने पहुंचे. उन्होंने तीन पग भूमि दान में मांगी. दो पग में भगवान ने धरती और आकाश नाप लिया. तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया. भगवान विष्णु ने तीनों लोगों को मुक्त करके देवराज इंद्र का भय दूर किया. भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा बलि से वर मांगने के लए कहा. बलि ने भगवान विष्णु से कहा आप मेरे साथ पाताल चलकर निवास करें. भगवान विष्णु बलि के साथ चले गए.
इधर देवी देवता और विष्णु की पत्नी लक्ष्मी चिंतित हो उठीं. वह राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें राखी बांधी. इसके उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन मांग लिया. यही कारण है कि, इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिंद्रा में रहते हैं. वामन रूप में भगवान का अंश पाताल लोग में होता है. इसके लिए देवशयनी एकादशी पर भगवान शिव को त्रिलोक की सत्ता सौंपकर भगवान विष्णु राजा बलि के पास चले जाते हैं. इस दौरान भगवान शिव ही पालनकर्ता का काम देखते हैं.