MP New Heritage Liquor Policy: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में नई हेरिटेज शराब पॉलिसी का मसौदा मंत्रिमंडल कमेटी में मंजूर हो गया. इसके तहत हेरिटेज शराब महुआ से बनी शराब का उत्पादन बिक्री व लाइसेंस से आदिवासियों को ही दिया जा सकेगा. आदिवासी अंचलों में मांग के अनुरूप 1000 लीटर उत्पादन तक की माइक्रो डिस्टलरी स्थापित की जा सकेगी. इसके लिए आदिवासी क्षेत्रों में अलग से वाइन शॉप खोली जाएगी. यह देशी-विदेशी शराब की दुकान से अलग होगी.
हेरिटेज शराब महुए की कच्ची शराब से बिल्कुल ही अलग होगी. इसे बनाने में उपयोग होने वाली आसवन पद्धति में भी कुछ तब्दीली की जाएगी. अभी इस शराब के उत्पादन में लोहे या अल्यूमिनियम के बड़े-बड़े टब का उपयोग किया जाता है लेकिन हेरिटेज शराब के उत्पादन में तांबे के टब का उपयोग किया जाएगा.
वन विभाग भी होगा शामिल
यह पूरी तरह से पारंपरिक पद्धति पर आधारित होगी. हेरिटेज शराब बनाने में उत्कृष्ट मापदंड अपनाए जाएंगे. उधर शुक्रवार को हुई मंत्रिमंडलीय कमेटी की बैठक में इस पॉलिसी पर अंतिम निर्णय हो गया है. अब इसे कैबिनेट में मंजूर कराने के बाद लागू किया जाएगा. इस पालिसी को 1 अप्रैल या फिर इसके बाद से लागू करने पर विचार चल रहा है. सूत्रों ने बताया कि कमेटी की बैठक में वन मंत्री विजय शाह ने प्रस्ताव रखा था कि इसका जिम्मा वन विभाग को भी दिया जाए या फिर वन विभाग की भागीदारी होनी चाहिए. वन विभाग के रिसर्च को भी इसमें शामिल किया जाए, उनके इस प्रस्ताव पर भी सहमति बन गई है.
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हेरिटेज शराब का कराया जाएगा पेटेंट
गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि मंत्रिमंडल समूह में हेरिटेज शराब का पेटेंट कराने पर सहमति बनी है. डॉ मिश्रा ने कहा शुक्रवार को मध्य प्रदेश हेरीटेज मदिरा नीति 2022 संबंधित बैठक की अध्यक्षता मंत्रालय में कर रहे थे. वित्त एवं वाणिज्य मंत्री जगदीश देवड़ा वन मंत्री डॉ विजय शाह, स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी, प्रमुख सचिव वाणिज्य कर दीपाली रस्तोगी मौजूद रहे. हेरीटेज शराब की एक खासियत यह भी होगी कि यह कई तरह की वैरायटी, कलर व फ्लेवर में होगी. इसके लिए अलग सम मापदंड तय किए जा रहे हैं.
इतने जिलों से शुरू होगी स्कीम
आबकारी विभाग ने ट्रेंट व एक्सपर्ट लोगों से डीपीआर बनवाई है. अभी बोदका शराब अलग-अलग सुगंध में उपलब्ध है. इसी तर्ज पर हेरिटेज शराब भी उपलब्ध होगी. इस शराब को बेचने के लिए अलग से परमिशन लेनी होगी. हेरिटेज शराब का उत्पादन व बिक्री 18 जिलों के 90 आदिवासी इलाकों में सबसे पहले शुरू होगा. इसका उत्पादन सिर्फ आदिवासी ब्लॉकों में होगा किंतु बिक्री समूचे मध्य प्रदेश में की जा सकेगी.