Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में बीते तीन महीने से टीबी पीड़ित मरीज जुगाड़ की दवा के सहारे अपना जीवन काट रहे हैं. प्रदेश के एक लाख 64 हजार टीबी के मरीजों को बीते तीन महीने से सही दवा नहीं मिली है. दवा के अभाव में टीबी के मरीजों को गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में संक्रमण बढ़ सकता है और मरीजों का इलाज भी लंबा खींचेगा. दरअसल, केन्द्र सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि साल 2025 तक पूरे देश को टीबी मुक्त बनाना है, लेकिन इसके विपरीत प्रदेश में हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं. केन्द्र सरकार के इस लक्ष्य के अनुरूप साल 2025 तक मध्य प्रदेश से टीबी बीमारी का सफाया नहीं हो पाएगा, क्योंकि मध्य प्रदेश में बीते तीन महीने से टीबी की दवा ही उपलब्ध नहीं है. जुगाड़ की दवाओं से टीबी मरीजों का काम चलाया जा रहा है.


केन्द्र से बंद दवाओं की सप्लाई
बताया जा रहा है कि टीबी के मरीजों को मुख्य रूप से चार दवाओं का डोज दिया जाता है, जिनमें दो दवा रिफामपसिन और पायराजिनामाइट की सप्लाई कन्द्र से ही बंद है. मजबूरीवश मध्य प्रदेश में एक लाख 64 हजार टीबी के मरीजों को दो दवाओं से काम चलाना पड़ रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक टीबी के मरीजों को छह महीने तक चार दवाएं रिफामपसिन, इथीम्बीटॉल, आईएनएच और पायराजिनामाइट दवा दी जाती है. पहले दो महीने इंटेसिव पीरियड में चारों दवाएं लेनी होती है. अगले चार महीनों में कन्टीन्यूशन फेज में पहली तीन दवाएं देते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इंटेसिव पीरियड महत्वपूर्ण होता है. इस दौरान दवाओं की कमी से मरीजों का संक्रमण बढ़ने का खतरा रहता है.


पहले पर छतरपुर, दूसरे पर भोपाल
मध्य प्रदेश टीबी बीमारी से पीड़ित मरीजों के मामले में छतरपुर जिला अव्वल चल रहा है. छतरपुर में 16 हजार से अधिक मरीज बताए जाते हैं, जबकि दूसरे नंबर पर राजधानी भोपाल है. बताया जा रहा है कि राजधानी भोपाल में टीबी बीमारी से पीड़ित करीब 10 हजार 600 मरीज हैं, जिनका इलाज जारी है. इस पूरे मामले को लेकर जब एबीपी न्यूज जिला टीवी अधिकारी डॉक्टर मनोज वर्मा से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि दवाओं की शॉर्टेज चल रही है. हालांकि, अब बजट मिल गया है जल्द ही दवाओं की कमी दूर हो जाएगी.



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