MP News: देश में भले ही आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जाता है लेकिन आज भी कई इलाके के लोग पानी की समस्या से परेशान हैं. ऐसा ही कुछ नजारा मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में है और यहां के लोगों की जिंदगी आज भी नहीं बदली है. गर्मी की शुरुआत होते ही बुंदेलखंड के दूरदराज गांवों में रहने वाले लोगों के लिए आफत शुरू हो जाती है. इस इलाके के लोगों को दो बूंद पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ती है. पानी के लिए बेहाल लोगों की ऐसी ही तस्वीर छतरपुर जिले से लगभग 80 किलोमीटर दूर पन्ना नेशनल पार्क के भीतर बसे गांवों से आई हैं. यहां गांवों में जल स्रोत गर्मी शुरू होते ही सूखने लगते हैं.
इस इलाके में जैसे ही गर्मी बढती है तो इन गांव में रहने वाले ग्रामीणों के गले सूखने लगते हैं. फिर ये लोग अपने गले की प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश में जद्दोजहद करते हैं. छतरपुर के पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर घनघोर जंगलों-पहाड़ियों के बीच श्यामरी नदी और केन नदी के तट पर बसे पलकुवां एवं ढ़ोडन गाँव के लोग आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी गर्मी शुरू होते ही नदी का गंदा पानी छानकर पीने को मजबूर है.
दो नदियों के तट पर बसे होने के बाद भी यहाँ जल स्तर जमीन से बहुत नीचे है. इसके कारण कुओं का पानी बरसात के बाद छः महीने में सूख जाता है और लोग नदी का गंदा पानी छानकर पीने को मजबूर होते हैं. गंदा पानी पीने से यहाँ के बच्चों से लेकर बूढ़े तक बीमारियों से जूझते हैं. इस गांव की गोकुल बाई का कहना है कि जनप्रतिनिधि चुनावों के समय वोट के लिए तरह-तरह के वादे करते लेकिन जीतने के बाद फिर इन विस्थापित गांवों की ओर देखने तक नहीं आते हैं. पलकुवां निवासी सुंदरिया बाई का कहना है कि नदी के पानी में भैस और अन्य मवेशी तैरते है और उसी में मलमूत्र करते है. यही पानी को हम लोग छानकर पीते हैं और बीमारियों की चपेट में आते है.