MP News: मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी में डूबते नजर आए SDRF के जवान, डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट ने बताई पूरी बात
Shipra River: प्रदेश के शिप्रा नदी में श्रद्धालुओं को डूबने से बचाने के लिए एसडीआरएफ ने कमर कस ली है. किसी भी अनहोनी घटना को रोकने के लिए अहम कदम उठाए जा रहे हैं.
Ujjain: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के शिप्रा नदी (Shipra River) में डूबने खबरें मिलती रहती हैं. ऐसे मौकों पर जिला प्रशासन और पुलिस महकमे के साथ-साथ लोगों को बचाने के लिए काफी मशक्कत करते हुए दिखाई पड़े हैं, जहां वे कुछ मामलों में सफल रहें तो वहीं कुछ मामलों में उन्हें निराश हाथ लगी है. आलम यह है कि शिप्रा के रौद्र रूप से बचाने का दावा करने वाले अपरिपक्व तैराक मॉक ड्रिल के दौरान खुद को बचाने की कोशिश करते देखे गए.
शिप्रा नदी में आने वाली बाढ़ से हर साल छोटी बड़ी घटनाएं होती रहती हैं. इन घटनाओं को रोकने के लिए इस बार एसडीआरएफ ने कमर कस ली है. एसडीआरएफ के जवान घाटों के आसपास तैनात रहेंगे और लोगों को डूबने से बचाएंगे.
इस दौरान वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर एक मॉक ड्रिल भी की गई. तैराकी संघ के पदाधिकारी विनोद चौरसिया ने बताया कि जब मॉक ड्रिल चल रही थी, उस दौरान कुछ जवान इस प्रकार से तैर रहे थे, जैसे उन्हें तैराकी का पूरा ज्ञान ही नहीं है. इस परिस्थिति में वे किसी को बचाने के लिए कदम बढ़ायेंगे, तो उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. घाट के पुजारी राधेश्याम शर्मा के मुताबिक मॉक ड्रिल के दौरान एसडीआरएफ के जवान खुद डूबते हुए दिखाई दिए. ऐसी स्थिति में उन पर आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी काफी कठिन कार्य है.
विपरीत परिस्थितियों में एसडीआरएफ ने की मदद- डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट
एसडीआरएफ के डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट संतोष जाट के मुताबिक आपदा प्रबंधन के दौरान हमेशा से एसडीआरएफ की टीम ने आम लोगों की मदद की है. एसडीआरएफ द्वारा हमेशा मॉक ड्रिल और अन्य माध्यमों से आपदा प्रबंधन के पहले ही महत्वपूर्ण रिहर्सल की जाती है. इस रिहर्सल के दौरान अच्छा प्रदर्शन करने वाले जवानों को पुरस्कृत किया जाता है. यदि कोई जवान तैराकी में पूरी तरीके से पारंगत नहीं है तो ऐसे जवानों की ड्यूटी नहीं लगाई जाती है. इसी दक्षता को मापने के लिए समय-समय पर मॉक ड्रिल होती रहती है.
क्यों बढ़े शिप्रा नदी में हादसे?
उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी का महत्व शास्त्रों में गंगा से कम नहीं बताया गया है, लेकिन शिप्रा नदी में आए दिन श्रद्धालुओं की डूबने से मौत के मामले समय- समय पर सामने आते रहे है. इसका सबसे बड़ा कारण यहां पर घाटों का निर्माण और लापरवाही को माना जा सकता है. शिप्रा नदी के दोनों घाटों पर निर्माण करते समय गहराई को आधार नहीं बनाया गया. यही वजह है कि शिप्रा नदी के राम घाट पर पानी की गहराई अधिक रहती है, तो दत्त अखाड़ा घाट पर कम हो जाती है. इसी वजह से श्रद्धालु नदी की गहराई का अंदाजा नहीं लगा पाते हैं और हादसे हो जाते हैं.
1 वर्ष में 36 लोगों की डूबने से मौत
शिप्रा नदी में पिछले 1 साल में 3 दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें स्थानीय लोगों की संख्या काफी कम है जबकि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 80 फीसदी से ज्यादा है. शिप्रा नदी में स्नान ध्यान का काफी महत्व बताया गया है अमावस पर भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं. इसके अतिरिक्त तर्पण, कर्मकांड के लिए भी देशभर के श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं. बावजूद इसके डूबने के हादसे कम नहीं हो रहे हैं.