1857 की आजादी के नायक गौंड राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह का आज  (18 सितंबर) को बलिदान दिवस है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज जबलपुर स्थित शहीद स्थल पर आजादी के दोनों नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.माना जाता है कि देश, धर्म और संस्‍कृति रक्षा के लिए बलिदान देने वाले गोंड शासकों को इतिहास में वह स्‍थान नहीं मिला.


यहां बताते चले कि राजा शंकर शाह और उनके सुपुत्र कुंवर रघुनाथ शाह को 1857 के विद्रोह का नेतृत्‍व करने पर अंग्रेजो द्वारा जबलपुर में तोप से उड़ा दिया गया था. उन्हें तोप से उड़ाने की सजा के पूर्व धर्म बदलने की और माफी मांगने के लिये कड़ी प्रताड़ना दी गई थी. लेकिन उन्‍होनें वीरता का परिचय देते हुये मृत्‍यु की सजा को स्‍वीकार किया.राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह मां काली के परम उपासक और नर्मदा भक्‍त थे. राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को दी गई फांसी की सजा को अंग्रेजों ने विद्रोह की अशंका को देखते हुये तोप से उड़ाने की सजा में तबदील कर दिया था.


राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ऐसे गोंड शासक थे जिन्‍होनें देश, धर्म और संस्‍कृति की रक्षा करते हुये अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, लेकिन अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया. राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 के पहले सन् 1842 और 1818 में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हुये थे.लेकिन इसे भी इतिहास लेखन में स्‍थान नहीं दिया गया.
मुख्‍यमंत्री कार्यालय के अतिरिक्‍त सचिव लक्ष्‍मण सिंह मरकाम
गोंडवाना साम्राज्‍य के वैभव और विस्‍तार का उल्‍लेख करते हुये कहते है कि आज के सात-आठ राज्‍यों के बराबर गोंडवाना साम्राज्‍य की सीमायें फैली हुई थी.पूरा समाज संगठित था.गोंडवाना साम्राज्‍य में सभी वर्ग के लोग परम वैभव के साथ रहा करते थे.शासक अपनी प्रजा का परिवार के सदस्‍य की तरह देखभाल किया करते थे.लेकिन अंग्रेजो ने षड़यंत्रपूर्वक इस संगठित साम्राज्‍य को उसकी परंपराओं को नष्‍ट कर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दिया.


बकौल लक्ष्‍मण सिंह मरकाम, इतिहास में दर्ज है कि राजा संग्राम शाह ने 100 युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारा.इसीलिये उन्‍हें संग्राम शाही की उपाधि दी गई थी. उन्‍होने कहा कि आज राजा संग्राम शाह के समकालीन इब्राहिम लोधी तो लोगों को याद है.लेकिन संग्रामशाह को इतिहास से गायब कर दिया गया. मरकाम ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने देश की आजादी के अमृत काल में आजादी के उन गुमनाम नायकों का स्‍मरण करने और उनके बलिदानों को याद करने का बीड़ा उठाया है, जिनके योगदान को इतिहासकारों द्वारा किताबों में दबा दिया गया है.