MP Siyasi Scan: एमपी में CM की कुर्सी पर 'आया राम-गया राम' का खेल, जानें 31 दिन के मुख्यमंत्री का किस्सा
Bhagwantrao Mandloi Story: 1962 का चुनाव कांग्रेस ने कैलाशनाथ काटजू के नेतृत्व में लड़ा. कांग्रेस चुनाव तो जीती, लेकिन कैलाशनाथ काटजू हार गए. इसके बाद भगवंतराव मंडलोई को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया.
MP Siyasi Scan: मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री (CM) की कुर्सी पर आया राम-गया राम किस्से का लंबा इतिहास रहा है. मध्य प्रदेश ने एक दिन, 13 दिन और 31 दिन के मुख्यमंत्री भी देखे हैं. आज हम मध्य प्रदेश के सियासी किस्सा सीरीज में एक ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में बताएंगे, जो इस कुर्सी पर तो दो बार बैठे, लेकिन कभी भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. उनका पहला कार्यकाल 31 दिन तो दूसरा कार्यकाल 18 महीने से थोड़ा ज्यादा रहा.
दूसरे सीएम के रूप में ली शपथ
मध्य प्रदेश की स्थापना एक नवंबर 1956 को हुई. पंडित रवि शंकर शुक्ला मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने. लेकिन, उनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं चल सका. 31 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया. पंडित रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी के कई दावेदार कांग्रेस पार्टी में सामने आए. विवाद के बाद आलाकमान ने भगवंतराव मंडलोई को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया. आज़ादी के बाद उन्हें रविशंकर शुक्ल के कैबिनेट में मंत्री पद मिला हुआ था. भगवंतराव मंडलोई सिर्फ 31 दिन के सीएम बन पाए. 1 जनवरी 1957 को उन्होंने शपथ ली और 31 जनवरी 1957 को इस्तीफा दे दिया. इस तरह वह मध्य प्रदेश के पहले कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने. 31 दिन की कार्यवाहक सरकार चलाने के बाद कांग्रेस हाई कमान के आदेश पर उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
कैलाशनाथ काटजू को बनाया गया सीएम
इसके बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कभी उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री रहे कैलाशनाथ काटजू को भोपाल भेजकर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी. कैलाश नाथ काटजू को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के बाद 1957 में ही विधानसभा के नए चुनाव करवाये गए. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की और उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. वह पंडित जवाहर लाल नेहरू की उम्मीद पर खरे उतरे. कैलाशनाथ काटजू मध्य प्रदेश के पहले ऐसे सीएम बने, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
खुद अपनी सीट हार गए मुख्यमंत्री
बताते चलें कि 1962 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस पार्टी ने कैलाशनाथ काटजू के नेतृत्व में लड़ा. कांग्रेस चुनाव तो जीत गयी, लेकिन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू अपनी सीट से चुनाव हार गए. कैलाशनाथ काटजू की हार के बाद विधानसभा में मंडलोई के कद को देखते हुए उन्हें 12 मार्च 1962 को फिर से मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया. लेकिन, इस बार भी वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र दुबे बताते हैं कि इस दौरान द्वारका प्रसाद मिश्रा ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरू से अपने मतभेद सुलझा लिए और 29 सितंबर 1963 को भगवंतराव मंडलोई को प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद द्वारका प्रसाद मिश्रा की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी हुई.
मंत्री बनने के बाद सक्रिय हुए भगवंतराव मंडलोई
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी पुस्तक 'राजनीतिनामा मध्य प्रदेश: 1956 से 2003 कांग्रेस युग' में बताते है कि 1892 में पैदा हुए भगवंतराव मंडलोई खंडवा से थे. वही खंडवा जहां फ़िल्म स्टार अशोक कुमार और किशोर कुमार का जन्म हुआ था. वकालत से करियर शुरू करने के बाद भगवंतराव मंडलोई स्वतंत्रता आंदोलन और कांग्रेस से जुड़ गए. अपनी जिंदगी के 50 साल उन्होंने खंडवा में ही बिताए. आज़ादी के बाद रविशंकर शुक्ल के कैबिनेट में उन्हें मंत्री पद मिला, तब जाकर वह सूबे की राजनीति में सक्रिय हुए.
भवंतराम मंडलोई को मिला पद्मभूषण सम्मान
भगवंतराव मंडलोई का जन्म 15 दिसम्बर 1892 को हुआ था. वे स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनेता थे. वे मध्य प्रांत और बरार राज्य से भारतीय संविधान सभा के लिए चुने गए थे. बाद में उन्हें 1970 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था. 15 नवम्बर 1977 को 84 वर्ष की आयु में भगवंतराव मंडलोई का निधन हो गया.
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