Madhya Pradesh News: साल 2023 में शरद यादव के निधन के साथ देश में समाजवादी आंदोलन का एक और सूर्य अस्त हो गया. शरद यादव जेपी आंदोलन की उपज थे. कभी देश की राजनीति की धुरी रहने वाले शरद यादव ने अपनी कर्मभूमि जबलपुर से जनता उम्मीदवार या पीपुल्स कैंडिडेट के रूप में पहला चुनाव जीता था. यहां के लोगों को आज भी याद है कि कैसे वह एक छात्र नेता से जबलपुर के जनता उम्मीदवार के रूप में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी लोकसभा में पहुंचे थे. आज मध्यप्रदेश की सियासी किस्सा सीरीज में शरद यादव की इसी ऐतिहासिक जीत पर चर्चा करेंगे.
तीन राज्यों से पहुंचे लोकसभा
शरद यादव राजनीतिक पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उन्होंने बिहार के मधेपुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया. वे दो बार मध्य प्रदेश के जबलपुर और एक बार उत्तर प्रदेश के बदायूं से लोकसभा के लिए चुने गए थे. उनका इसी साल 13 जनवरी को 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. समाजवादी नेता शरद यादव का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के अखमऊ गांव में हुआ था. अपनी कर्मभूमि जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले शरद यादव ने अपनी जनसेवा की यात्रा उत्तर प्रदेश और बिहार के रास्ते दिल्ली तक तय की. वे शायद इकलौते नेता थे जो तीन राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से लोकसभा का चुनाव जीतकर दिल्ली की राजनीति में ध्रुव तारे की तरह चमकते रहे.
अब बात करते हैं, देश की राजनीति में अपनी तरह के पीपुल्स कैंडिडेट के पहले प्रयोग की. जनसंघ के समर्थन से शरद यादव को 1974 में जबलपुर के लोकसभा उप चुनाव में पीपुल्स कैंडिडेट बनाया गया था. इस दौरान उन्होंने रायपुर जेल में रहते हुए अपना पर्चा दाखिल किया था. इस चुनाव में शरद यादव ने शहर के सबसे प्रतिष्ठित बखरी परिवार के सदस्य रवि मोहन दास को पराजित करके अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. रवि मोहन अपने पिता और पांच बार के सांसद सेठ गोविंद दास के निधन से रिक्त हुई जबलपुर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे.
हर दुकान में शरद यादव की तस्वीर
छात्र राजनीति से ही शरद यादव के साथ ही रहे तिलकराज यादव बताते हैं कि जबलपुर में शरद यादव की लोकप्रियता का यह आलम है कि देवा मंगोड़े वाले की दुकान में उनकी सबसे ज्यादा तस्वीरें लगी हुई हैं. शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था. उन्होंने साल 1974 में सिर्फ 25 साल एक माह सात दिन की उम्र में जीवन का पहला चुनाव लोकसभा का लड़ा और जीत हासिल की. यह जबलपुर लोकसभा का उपचुनाव था. शरद यादव ने पीपुल्स कैंडिडेट के रूप में (संपूर्ण विपक्ष के उम्मीदवार) हलधर किसान चिन्ह से यह चुनाव लड़ा था. यहीं से देश में पहली बार संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार की अवधारणा शुरू हुई और वर्ष 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी का गठन इसी अवधारणा के तहत हुआ था.
जेल से ही दाखिल किया पर्चा
बकौल तिलक राज यादव, जयप्रकाश आंदोलन का शरद यादव पर बड़ा प्रभाव था. 1974 के उपचुनाव में विपक्ष के पास कांग्रेस के मुकाबले कोई दमदार उम्मीदवार नहीं था. जनसंघ के बड़े नेता बाबूराव परांजपे भी पिछला चुनाव हार जाने के कारण इस बार उम्मीदवार बनने को तैयार नहीं थे. इसी बीच छात्र नेताओं ने तय किया कि शरद यादव को चुनाव मैदान में उतारा जाना चाहिए. इसके पीछे एक स्वार्थ यह भी था कि चुनाव लड़ने के बहाने उन्हें जेल से बाहर आने का मौका भी मिल जाएगा. शरद यादव ने रायपुर जेल से ही अपना पर्चा दाखिल किया और चुनाव लड़ने के लिए उन्हें जेल से बाहर आने का मौका मिल गया. बताते हैं कि जब शरद यादव रायपुर स्टेशन पहुंचे थे तो उन्हें सिर्फ एक परिचित छोड़ने आया था लेकिन मैं जब चुनाव लड़ने के बाद वापस रायपुर लौटे तो उनका स्वागत करने के लिए हजारों की भीड़ मौजूद थी.
आती थी मुख्यमंत्री की रैलियों से ज्यादा भीड़
छात्र नेता रहे तिलक राज यादव बताते हैं कि अपने चुनाव अभियान के दौरान शरद यादव को उस समय के सभी छात्र नेताओं ने अपना समर्थन दिया जबलपुर छात्र राजनीति का केंद्र हुआ करता था और छात्रों का इतना बड़ा मूवमेंट तैयार हुआ कि शरद यादव 87 हजार से ज्यादा वोटों से अपना पहला चुनाव जीतने में कामयाब हुए. तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी की सभा से ज्यादा शरद यादव की रैलियों में भीड़ उमड़ रही थी. इतना ही नहीं उन्हें वोट के साथ नोट का समर्थन भी जन-जन से मिल रहा था. किसी जनसमर्थन की दम पर शरद यादव ने जबलपुर में कांग्रेस का किला ध्वस्त कर दिया. बखरी परिवार के मुखिया सेठ गोविंददास इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 1952 से लगातार जीतते आ रहे थे.
कहा जाता था सामाजिक न्याय का हीरो
यहां बता दे कि शरद यादव को दो बार मीसा में बंद किया गया था. उस समय वे सात व ग्यारह माह जेल में बंद रहे. शरद यादव को सामाजिक न्याय का हीरो कहा जाता था. वे जबलपुर से निकल कर उत्तरप्रदेश के बदायूं पहुंचे और वहां से बिहार के मधेपुरा.इन दोनों जगहों से उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता. नर्मदा के किनारे के वासी शरद यादव का नक्षत्र राष्ट्रीय राजनीति में धूमकेतू की तरह चमका.
लोकसभा की सदस्यता से दिया था इस्तीफा
वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे कहते हैं कि शरद यादव और जबलपुर का मालवीय चौक एक दूसरे का पर्याय थे. मालवीय चौक उनका अड्डा हुआ करता था. मालवीय चौक में पंडित जी व खट्टू सिंधी की पान की दुकान उनका ठिया हुआ करता था. शरद यादव के दोनों पैर पुलिस के लाठी चार्ज में चोटिल हुए थे, जिसका असर जीपनपर्यंत रहा. हालांकि, वे ज्यादा दिन तक इस लोकसभा के सदस्य नहीं रहे. आपातकाल के दौरान 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब लोकसभा का कार्यकाल पांच से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया तो उनके इस कदम के विरोध में शरद यादव ने समाजवादी नेता मधु लिमये के साथ जेल में रहते हुए ही लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.
इसके बाद उन्होंने 1977 में फिर कांग्रेस के जगदीश अवस्थी को पराजित कर लोकसभा का चुनाव जीता था लेकिन 1980 में उन्हें यहां कांग्रेस के मुन्दर शर्मा से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद शरद यादव 1981 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने पहुंच गए. हालांकि यहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन 1984 में उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट से एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचने में कामयाब हुए.
लालू यादव को दी पटखनी
राजनीतिक जानकार काशीनाथ शर्मा बताते है कि 1977 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुकाबला करने के लिए देश के प्रमुख राजनीतिक दलों का विलय हुआ और एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया. 1977 में कांग्रेस पार्टी को हराकर जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई. हालांकि, आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गई और चौधरी चरण सिंह उससे अलग हो गए. इसके बाद उन्होंने अलग पार्टी बनाई उसका नाम 'लोकदल' था. एक समय में नीतीश कुमार, बीजू पटनायक, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव भी इसी लोकदल के नेता होते थे. मधेपुरा से एक बार उन्होंने लालू यादव को भी लोकसभा चुनाव में पटखनी दे दी थी. अपने लंबे राजनीतिक करियर के दौरान शरद यादव कई बार केंद्रीय मंत्री बने और उन्होंने अपनी कर्मभूमि जबलपुर को कई सौगातें भी दीं.
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