भिंड: मध्यप्रदेश  के भिंड के बस स्टैंड पर संचालित इंसानियत युवा मंडल समिति इंसानियत की मिसाल पेश कर रही है. इंसानियत युवा मंडल के सदस्य भिंड बस स्टैंड के पास जानवरों का एक छोटा सा टेक केयर होम संचालित करते हैं. यहां देखभाल करने वाले कोई प्रफेशनल लोग नहीं है.बल्कि शहर के ही युवा है जो खुद आपस मे पॉकेट मनी इकट्ठा कर इस जगह को संचालित कर रहे हैं.


इंसानियत युवा मंडल समिति की नींव रखने वाले अनंत इंसानियत कहते हैं कि आदमी की  मदद करने वाले तो बहुत है. लेकिन बेज़ुबानों की मदद को कोई आगे नही आता है. गौवंश राजनीति का विषय बन चुकी जिस वजह से जगह-जगह गौशालाएं खोली जा रही हैं.लेकिन गौवंश के अलावा भी कई जानवर हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत होती है.


बेसहारा और बीमार जानवरों का होता है इलाज


खास बात यह है कि एनिमल केयर सेंटर ना सिर्फ सुविधाओं से लैस है बल्कि ऐसे जानवरों और पक्षियों के लिए बनाया गया है जो बेसहारा, घायल या बीमार होते हैं,  शुरुआत में यहां एक घायल कुत्ते का इलाज किया गया, लेकिन अब ये संस्था सैकड़ों जानवरों को ठीक कर चुकी है. अनंत ने  बताया कि इस छोटे से केयर सेंटर में धीरे धीरे जानवरों की संख्या बढ़ने लगी. जिससे यहां इलाज में परेशानी होने लगी, तो एक जगह किराये पर लेकर एक छोटी सी फैसिलिटी बनाई. जहां घायल जानवरों को इलाज देने लगे, लेकिन एक दिन वो जगह भी कम पड़ने लगी. इंसानियत समूह के सदस्य बड़ी जगह की तलाश में कई लोगों से मिले लेकिन निराशा हाथ लगी.


 ऐसी मिली टेक-केअर होम के लिए बड़ी जगह


फिर चार साल पहले वो तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी से मिले. उन्हें अपने काम के बारे बताया तो उन्होंने इस काम की तारीफ की. शुरआत में थोड़ी मदद भी की साथ ही उन्होंने इस समूह को रजिस्ट्रेशन भी कराया जो कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय स्तर पर भी रजिस्टर हो गया है. वहीं वर्तमान कलेक्टर सतीश कुमार एस भी इस काम से प्रभावित हुए जब उन्हें पता चला कि जानवरों के इलाज के लिए जगह काम पड़ रही है तो उन्होंने बस स्टैंड के पास वैटनरी विभाग की खाली पड़ी ज़मीन इस समूह को अलॉट कर सेंटर स्थापित करने के लिए दे दी और आज यहां एक छोटा सा लेकिन अच्छा अस्पतालनुमा एनिमल टेक केयर सेंटर बनकर संचालित हो रहा है. इस जगह को संचालित करने के लिए प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला.


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इन सुविधाओं से लैस है टेक-केअर होम


अनंत इंसानियत ने बताया कि, जहां कलेक्टर ने वैटनरी विभाग से ज़मीन दिलाई वहीं नगर वालिका द्वारा इसमें शेड, किचिन, तार फेंसिंग और बाउंड्री वॉल बनवाकर दी.  यहां जानवरों के इलाज के लिए लगने वाले इक्विपमेंट, टेबल्स, एनिमल बेड्स, व्हील वॉकर्स, पिंजड़े, और ज़रूरत के लिए एक एम्बुलेंस भी खुद इंसानियत युवा मंडल समिति के सदस्यों ने आपस मे चंदा कर खरीद ली.  अनंत के मुताबिक यहां करीब आधा सैकड़ा जानवरों को इलाज दिया जा रहा है. जिनमे कुत्ते, बंदर, बिल्ली समेत कुछ पक्षी भी हैं. ऐसे में इनके रहने की ज़िम्मेदारी भी सभी मिलकर उठाते हैं, फिलहाल हर सदस्य अपने घर से कुछ रोटियां बनवा कर लाता है. और 400 रोटियां इन जानवारों को हर रोज़ खिलाई जाती हैं.


240 से ज्यादा लोग करते हैं सेवा


बताया जा रहा है कि आने वाले समय में यहां किचन की भी शुरुआत हो जाएगी और जानवरों का भोजन इसी सेंटर पर बनने लगेगा. अनंत ने बताया कि समूह के सभी सदस्यों ने मिलकर शुरुआत में जानवरों का घर पर इलाज शुरू किया. देखते ही देखते और भी कई लोग इस कार्य से प्रभावित और प्रेरित हुए शुरुआत में 8-10 लोग ही इस काम को करते थे. लेकिन आज 240 से ज्यादा सदस्य हर रोज़ सेवा के लिए समय देते हैं.कोई रिक्शा चलता है तो कोई शिक्षक है. लेकिन यह सभी अपनी शिफ्ट के अनुसार आते हैं और सेवा करते हैं. इन्ही में से समूह की एक सदस्य कहती हैं की वह पिछले सालों से इस समूह से जुड़ी हैं, यहीं उन्होंने जानवरों को ट्रीटमेंट देना सीखा है, उन्हें जानवरों से बेहद लगाव है.इस वजह से यह सेवा कर रही हैं.


परिवार का सरनेम नहीं यूज करते समूह के सदस्य


कुछ ऐसे ही विचार एक और सदस्य अक्षय इंसानियत के भी हैं. वो भी शुरू से ही इस समूह का हिस्सा हैं. वो कहते हैं कि शिक्षक होने के बावजूद इस सेवा कार्य के लिए समय निकलते हैं. उनका मानना है कि अगर जीवन मे कुछ अच्छा करना है तो यह सेवा भाव आपको एक अच्छा इंसान बनने में मददगार साबित करेगा. इंसानियत युवा मंडल समिति के सदस्यों की एक और खास बात है जो सबसे निराली और अलग है वह यह कि इस समूह के सभी सदस्य अपने नाम के साथ माता-पिता का सरनेम नहीं लगाते बल्कि इंसानियत को सरनेम लिखते हैं. इसके पीछे सभी सदस्यों का मानना है कि इंसानियत कोई जाति, धर्म, रंग रूप से नहीं होती.  शुरू में कुछ लोग इसका विरोध करते थे.लेकिन आज उनकी पहचान ही इंसानियत है.


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