MP Tourism: मुंबई दर्शन की तरह अब Bhopal Darshan की डिमांड, 50 से 60 KM की दूरी पर कई प्राकृतिक ऐतिहासिक स्थल
MP News: मुंबई दर्शन की तर्ज पर अब भोपाल दर्शन की डिमांड होने लगी है. मुंबई में एक गाड़ी के माध्यम से सुबह से लेकर शाम तक सभी स्थलों के दर्शन हो जाते हैं वैसे ही अब डिमांड भोपाल में भी होने लगी है.
Madhya Pradesh News: धार्मिक प्राकृतिक पुरातत्व और ऐतिहासिक स्थलों को समेटे राजधानी भोपाल व उसके आसपास के 50 से 60 किलोमीटर क्षेत्र में भ्रमण के लिए सैलानियों को असुविधाओं का सामना करना पड़ता है. इन स्थलों से सालाना करोड़ों रुपये की कमाई के बाद भी परिवहन सुविधा की कमी है. ऐसे में अब पर्यटकों द्वारा मुंबई दर्शन की तर्ज पर भोपाल दर्शन की मांग होने लगी है. दरअसल, देश का दिल कहे जाने वाले भोपाल में अनेक प्राकृतिक ऐतिहासिक स्थल हैं. झीलों की नगरी भोपाल में बड़ा तालाब, छोटा तालाब, वन विहार, लेक व्यू, शहीद भवन, बिड़ला मंदिर, शौर्य स्मारक जैसे अनेक ऐतिहासिक स्थल हैं. इसके अलावा भी राजधानी भोपाल से 50 से 60 किलोमीटर की दूरी पर ऐतिहासिक मां विजयासन धाम सलकनपुर, भीम बैठका, सांची स्तूप, सीहोर के प्राचीन सिद्ध गणेश मंदिर सहित अनेक स्थल मौजूद हैं.
मुंबई दर्शन की तर्ज पर अब भोपाल दर्शन की डिमांड होने लगी है. जैसे मुंबई में एक वाहन के माध्यम से सुबह से लेकर शाम तक मुंबई के सभी स्थलों के दर्शन हो जाते हैं वैसे ही अब डिमांड भोपाल में भी होने लगी है. एक वाहन की मदद से संपूर्ण भोपाल व उसके आसपास के दर्शन सुलभता से हो सके. बता दें कि राजधानी भोपाल में प्रतिमाह करीब चार लाख से अधिक पर्यटकों का आना होता है, लेकिन पर्यटकों के सामने विडंबना यह होती है कि ऐतिहासिक स्थलों तक पहुंचने के ट्रांसपोर्टेशन व्यवस्था नहीं होने की वजह से पर्यटकों को असुविधाओं का सामना करना पड़ता है. यदि जिला व नगर निगम प्रशासन बीसीएलएल के माध्यम से शहर के पर्यटन स्थलों को जोड़ते हुए टूरिस्ट ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करें तो पर्यटकों को आसानी होगी.
बेहद खास हैं झीलों की नगरी भोपाल के यह आठ मनोरम दृश्य
ताल-तलैया और झीलों की नगरी के नाम से फेमस भोपाल देश भर के सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है, जो एक बार यहां आ जाता है वह भोपाल की तारीफ किए बिना नहीं रहता. झीलों की नगरी भोपाल के आठ सबसे अधिक मनोरम दृश्य है जो बरबस सैलानियों को अपनी और आकर्षित करते हैं.
भोपाल का म्यूजियम
भोपाल व आसपास के आठ मनमोहक दृश्य में सबसे पहले हम जनजातीय संग्रहालय की बात करें तो इस संग्रहालय में आदिवासी कला और संस्कृति की एक अमिट छाप देखने को मिली है. यहां आदिवासियों के इस्तेमाल की हर छोटी बड़ी चीज मौजूद है. जनजातीय संग्रहालय की स्थापना राजधानी भोपाल के श्यामला हिल्स पर छह जून 2013 को की गई थी. 35 करोड़ 20 लाख रुपये की लागत से बनाया गया. यह संग्रहालय में दो एकड़ में बना है. इस संग्रहालय का प्रतीक चिन्ह बिरछा है. संग्रहालय में अलग-अलग छह कला दीर्घाएं बनी है. यहां जनजातीय जीवन शैली के अलग-अलग हिस्सों को चित्रों और वस्तुओं के माध्यम से दर्शाया गया है. जनजातीय संग्रहालय में प्रदेश की बैगा, सहरिया, गोंड, भील, कोरकू, कोल और भारिया जनजातियों की झलकियां देखने को मिलती है.
संग्रहालय में बैगा घर, गोंड स्थापत्य, भील घर, सहरिया, आंगन, मग रोहन, गोंड घर, पत्थर का घर, कोरकू घर बने है जो बताते हैं कि अलग-अलग आदिवासी समूह किस तरह के घरों में रहते हैं और उनकी दिनचर्या कैसी होती है. संग्रहालय में आदिवासी बच्चों के खेलों जैसे मछली पकड़ना, चौपड़, गिल्ली डंडा, बुड़वा, चक्ताक, गोंदरा, पोशंबा, घर-घर, पंच गुट्टा, गेड़ी, पिठ्टू, गूछू हुड़वा भी बना है. प्राचीन परंपरा को देखने के लिए देश भर के सैलानी यहां जरुर आते हैं.
एशिया की सबसे बड़ी झील है बड़ा तालाब
भोपाल में स्थित बड़ा तालाब एशिया की सबसे बड़ी झील के रूप में पहचाना जाता है. इस तालाब का निर्माण 11वीं सदी में किया गया था. अंग्रेजी में इस तालाब को अपर लेक कहते हैं, जबकि हिन्दी में यह बड़ा तालाब कहलाता है. भोपाल का यह बड़ा तालाब राजधानीवासियों के लिए पीने के पानी का सबसे मुख्य स्त्रोत भी है. इस झील के समीप ही कमला पार्क नाम का बहुत बड़ा गार्डन है, जो इस तालाब की शोभा और अधिक बढ़ाता है. भोपाल आने वाले सैलानी बड़ा तालाब को जरुर निहारने आते हैं. सुबह छह बजे से लेकर रात 10 बजे तक यहां पर्यटकों के आने जाने का सिलसिला बना रहता है.
वनविहार में तब्दील हुई पहाड़ी
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बड़े तालाब के पास की जिस पहाड़ी पर वन विहार स्थित है वह लगभग चार दशक पूर्व वीरान थी. साल 1981 में इस पहाड़ी के वनक्षेत्र का संरक्षण सघन रूप से शुरु हुआ और जल्दी ही यह पहाड़ी हरी भरी होने लगी. 26 जनवरी 1983 को पहाड़ी और उसके आसपास के 445.21 हेक्टेयर क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देकर वन विहार का नाम दिया गया. वन विहार में बाघ, सिंह, तेंदुआ, भालू, हायना, सियार, गौर, बारासिंगा, सांभर, चीतल, नीलगाय, कृष्णमृग, लंगूर, जंगली सुअर, सेही, खरगोश, मगर, घड़ियाल, कछुआ सहित विभिन्न प्रकार के सांप है. वन विहार प्रतिदिन बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. सुबह सात से रात रात बजे तक यहां घूमने के लिए लोग आते हैं. यहां प्रति व्यक्ति फीस के रूप में 15 व विदेशी सैलानियों से 200 रुपये लिए जाते हैं.
महल को चार चांद लगाती है जटिल नक्काशी
शौकत महल भोपाल शहर के इकबाल मैदान के बीचों बीच चौक क्षेत्र के प्रवेश द्वार पर स्थित है. इस महल का निर्माण सन् 1830 ई. में भोपाल राज्य की प्रथम महिला शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने कराया था. यह महल इस्लामिक और यूरोपियन शैली का मिश्रित रूप है. यहां पश्चिमी वास्तु और इस्लामी वास्तु का नायाब संगम है. यह महल लोगों की पुरातात्विक जिज्ञासा को जीवंत कर देता है. भोपाल दर्शन के लिए आने वाला हर पर्यटक शौकत महल जरुर जाता है. शौकत महल को देखे बिना भोपाल दर्शन अधूरा माना जाता है.
संगमरमर से बनी है मोती मस्जिद
महिला सिकंदर जहान बेगम ने सन् 1862 में देश की सबसे दिलचस्प मस्जिद मोती मस्जिद का निर्माण कराया था. सुंदर, शुद्ध सफेद संगमरमर से मोती मस्जिद तैयार की गई है. मस्जिद की वास्तुकला दिल्ली में ऐतिहासिक जामा मस्जिद के समान है. स्मारक के चमकदार सफेद हिस्से ने इसे पर्ल मस्जिद नाम दिया है. मस्जिद में एक भव्य आंगन है जहां की खिड़की से भोपाल शहर के खूबसूरत नजारे देख सकते हैं. इतिहास प्रेमियों के लिए मोती मस्जिद बेस्ट जगह है. इज्जिमा के दौरान देश से आने वाले मुस्लिम धर्मावलंबी मोती मस्जिद जरुर आते हैं.
पांच रुपये में देखे बिड़ला संग्रहालय
भोपाल की आठ खास मनमोहक दृश्यों में बिड़ला संग्रहालय भी गजब का पर्यटन स्थल है. महज पांच रुपये की फीस में शहर के भव्य संग्रहालय के मनोरम दृश्य देखने को मिलते हैं. सुबह दस से शाम छह बजे तक यहां पर्यटक आते हैं. यहां नाम मात्र पांच रुपये फीस ली जाती है, जबकि विदेशी सैलानियों से 50 रुपये लिए जाते हैं. संग्रहालय बिड़ला मंदिर परिसर का एक हिस्सा है, जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती जी का पवित्र मंदिर स्थापित है.
30 हजार साल पुरानी है भीमबेटका
भोपाल शहर के अलावा आसपास के क्षेत्रों में भी कई मनोहर दृश्य है. इनमें हम भीमबेटका की बात करें तो यह लगभग 30 हजार साल पुरानी है. भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है. इस स्मारक को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है. माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के भीम के चरित्र से संबंधित है, इसलिए इसका नाम भीमबेटका पड़ा है. भीमबेटका की गुफाओं को घूमने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. यहां भारतीयों के लिए इंट्री फीस दस रुपये है, जबकि विदेशी मेहमानों से महज 100 रुपये लिए जाते हैं. सुबह सात से शाम छह बजे तक यहां पर्यटक आते हैं.
सम्राट अशोक के शासन में बना सांची स्तूप
भोपाल से महज 46 किलोमीटर की दूरी पर सांची स्तूप स्थित है. गुंबद के आकार का यह स्मारक 120 फीट चौड़ा और 54 फीट ऊंचा है. स्तूप में प्रवेश करने के लिए यहां टिकट खरीदना पड़ता है. भारतीयों के लिए यहां 40 रुपये टिकट है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए 600 रुपये है जबकि 15 साल से कम उम्र के बच्चों को नि:शुल्क ही सांची स्तूप में प्रवेश दिया जाता है. राजधानी भोपाल आने वाले पर्यटक भोपाल के नजदीक इस दार्शनिक स्थल पर जरुर जाते हैं.