Bhopal:  राजधानी भोपाल के नजदीक सीहोर जिले के आदिवासी क्षेत्रों में इन दिनों भगोरिया मेले की धूम मची है. इन भगोरिया मेलों में आदिवासी लोक संस्कृति के रंग चरम पर नजर आ रहे हैं. मेले में आदिवासी संस्कृति और आधुनिकता की झलक देखने को मिल रही है. भगोरिया पर्व आदिवासियों के जीवन में यह उल्लास और आनंद भर रहा है. एक दिन पहले ही सीहोर जिले के आदिवासी अंचल बिलकिसगंज व लाडक़ुई में भगोरिया मेले का आयोजन किया गया. मेलों में आदिवासी युवक और युवती व समाज के लोग आदिवासी परिधानों में नजर आए. हालांकि इस बार भगोरिया मेले में आधुनिकता भी चरम पर रही.

 

आदिवासी अंचलों में होली के एक हफ्ते पहले हो जाती है भगोरिया मेले की शुरुआत

 

बता दें कि होली के सात दिन पहले से ही जिले के आदिवासी अंचलों में भगोरिया मेले की शुरुआत हो जाती है. इस बार भी एक मार्च से मेले की शुरुआत हो चुकी है, जिले के कई आदिवासी क्षेत्रों में भगोरिया मेला लगा. एक दिन पहले राजधानी भोपाल से 25 किलोमीटर दूर बिलकिसगंज व लाडक़ुई गांव में भगोरिया मेले का आयोजन किया गया. इस दौरान हर तरफ आदिवासी युवाओं की टोली मस्ती करती नजर आ रही है. लाडक़ुई गांव में बारेला समुदाय की ओर से भगोरिया पर्व मनाया गया. आयोजन में समाज की महिला, पुरुष व बच्चे अपनी पारंपरिक व सामाजिक वेशभूषा में सज-धजकर ढोल-ढमाके व रंग गुलाल के साथ धूमधाम से त्यौहार मनाते नजर आए. आदिवासियों ने ढोल और मांदल की थाप पर जमकर नृत्य भी किया. 

 

नाचते-गाते मनाया पर्व

 

आदिवासी ग्राम बिलकिसगंज व लाडक़ुई में आयोजित हुए भगोरिया मेले में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली. आदिवासी लोगों की अलग-अलग टोलियां मेले में बांसुरी, ढोल और मांदल बजाते नजर आई. इस दौरान आदिवासी युवतियां भी मेले में सजधज कर आईं. 

 

कभी पान के जरिए होता था प्यार का इजहार

 

बता दें कि भगोरिया मेले में आदिवासी युवक-युवतियों को अपने जीवन साथी मिलते हैं. परम्परा थी कि पहले आदिवासी युवक युवती को पान देता था, युवती के पान खाते ही प्यार का इजहार माना जाता था, हालांकि, अब यह परम्परा आधुनिकता के साथ बदल गई है. अब पान के जरिए नहीं, बल्कि आंखों के जरिए प्यार होता नजर आया. इधर भगोरिया मेले में खाने- पीने की दुकानें लगीं तो वहीं युवक-युवतियों और महिला, बच्चों ने झूलों का भी आनंद लिया. बता दें सात दिवसीय भगोरिया पर्व अब अंतिम दौर में है.