Ujjain News: द्वारकाधीश के दरबार पहुंचे बाबा महाकाल, शाही ठाठ-बाट से निकली सवारी
उज्जैन: परंपरा के मुताबिक देवसुनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपना पूरा कार्यभार भगवान महाकाल अर्थात शिव को सौंप कर देव लोक में निवास करने चले जाते हैं. और तब करीब 4 महीने तक कोई मांगलिक नहीं होता.
उज्जैन: वैकुंठ चतुर्दशी एक ऐसी धार्मिक परंपरा की साक्षी बनती है जो हरि और हर के मिलन के रूप में जानी जाती है. ये अदभुत मिलन भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में होता है. भगवान शिव स्वयं पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश के दरबार में पहुंचकर सृष्टि का भार उन्हें सौंपते हैं. जानिए पूरी खबर.
भगवान विष्णु भगवान शिव को सौंपते हैं कार्यभार
महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी आशीष गुरु के मुताबिक देवसुनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपना पूरा कार्यभार भगवान महाकाल अर्थात शिव को सौंप कर देव लोक में निवास करने चले जाते हैं. सनातन मान्यताओं के मुताबिक लगभग 4 महीने का समय रहता है, जब कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. इस दौरान भगवान शिव के पास सृष्टि का भार रहता है. वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान महाकाल साल में एक बार रात्रि के समय पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश के आंगन में पहुंचते हैं. द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पर भगवान राजाधिराज की सवारी पहुंचती है. जहां हरि और हर का मिलन होता है. ये अदभुत मिलन केवल दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की धार्मिक परंपराओं में ही देखने को मिलता है.
ऐसी है परंपरा
पंडित आशीष पुजारी के मुताबिक ये मान्यता है कि वैकुंठ चतुर्दशी पर एक बार फिर भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को सौंप कर कैलाश लोक में निवास करने चले जाते है. ये अद्भुत परंपरा भगवान महाकाल के पंडे पुजारियों के साथ-साथ द्वारकाधीश के पंडे पुजारियों द्वारा संयुक्त रुप से निभाई जाती है.
श्रद्धालु ऐसे करते हैं भगवान को प्रसन्न
श्रद्धालुओं द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं जबकि भगवान विष्णु की तुलसी प्रिय है लेकिन हरिहर मिलन के दौरान भगवान महाकाल को तुलसी की माला पहनाई जाती है जबकि भगवान विष्णु को बेलपत्र की माला अर्पित की जाती है. ये सब कुछ वर्ष में एक बार वैकुंठ चतुर्दशी पर उज्जैन में देखने को मिलता है.
आतिशबाजी के साथ निकलती है सवारी
वैकुंठ चतुर्दशी पर रात्रि के समय भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है. इस दौरान महाकाल मंदिर के पंडे पुजारियों द्वारा जमकर आतिशबाजी भी की जाती है. भगवान महाकाल की सवारी शाही ठाठ बाट के साथ गोपाल मंदिर पहुंची है. यहां पर सभी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन कर शिव और विष्णु की एक साथ आरती उतारी जाती है, जिसके बाद फिर भगवान महाकाल की पालकी मंदिर के लिए रवाना हो जाती है.
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