Holi 2022: महाकालेश्वर मंदिर में होलिका दहन के बाद जमकर उड़ा गुलाल, भक्तों ने भगवान के साथ ऐसे खेली होली
Ujjain News: विश्व भर में सबसे पहले उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में होलिका दहन होता है. गुरुवार को भी होलिका दहने के बाद संध्या कालीन आरती हुई और होली पर्व की शुरुआत हो गई है.
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MP News: विश्व भर में सबसे पहले उज्जैन (Ujjain) के महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Mandir) में होलिका (Holika) दहन होता है. गुरुवार को भी होलिका दहने के बाद संध्या कालीन आरती हुई और होली (Holi) पर्व की शुरुआत हो गई है. भक्त और भगवान के बीच जमकर गुलाल उड़ा. महाकालेश्वर मंदिर में होली खेलने के लिए देशभर के श्रद्धालु उज्जैन पहुंचे हैं.
क्या बोले पुजारी
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में होली का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. यहां पर होली पर्व की शुरुआत एक दिन पहले हो जाती है. भगवान महाकाल के दरबार में जब त्यौहार की शुरुआत होती है तो किसी प्रकार का मुहूर्त नहीं देखा जाता है. महाकालेश्वर मंदिर के प्रदीप गुरु ने बताया कि पंडे पुजारियों और उनके परिवार के द्वारा होली को सजाई जाती है. महाकालेश्वर मंदिर में होलिका दहन क्या पहले विधि विधान के साथ पूजा अर्चना और आरती की जाती है. भगवान महाकाल के दरबार में होलिका दहन देखने के लिए पहुंचे सोमनाथ से आए श्रद्धालुओं ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर में होली का पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह देखकर उन्हें अद्भुत अनुभूति हुई है.
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कैसे मनती है होली
भगवान महाकाल के दरबार में संध्या कालीन आरती में जमकर गुलाल उड़ता है. वर्ष भर में एक बार ही यह नजारा देखने को मिलता है. महाकालेश्वर मंदिर के आशीष पुजारी बताते हैं कि भगवान महाकाल को फूलों के रस से स्नान भी कराया जाता है. इसके अलावा उन पर गुलाल चढ़ाकर आरती की जाती है. आरती के दौरान भक्त और भगवान के बीच जमकर होली खेली जाती है. इस होली का आनंद लेने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं. यह सिलसिला शरणार्थी में भी चलता है.
किस गुलाल का होता है उपयोग
महाकालेश्वर मंदिर के राजेश गुरु बताते हैं कि भगवान महाकाल को चढ़ने वाले गुलाल का विशेष ध्यान रखा जाता है. मंदिर में हर्बल गुलाल प्रयोग में लाया जाता है. मंदिर में किसी भी प्रकार के केमिकल युक्त रंग से होली नहीं खेली जाती है.
भस्म आरती का होता है आयोजन
होली पर्व के दौरान होने वाली भस्म आरती में भगवान महाकाल को फलों के रस से स्नान कराया जाता है. यह परंपरा केवल दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर में ही निभाई जाती है. इसके अलावा टेसू के फूलों से बने रंग को भी भगवान को अर्पित किया जाता है.
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