उज्जैन: 50 से ज्यादा ब्लाइंड मर्डर और चोरी के मामलों को सुलझा चुकी डीएसपी डॉली के डर से उज्जैन संभाग के अपराधी थरथर कांपते हैं. डॉली के कदम पड़ते ही इस बात की संभावनाएं बढ़ जाती है कि मामला सुलझ जाएगा. उज्जैन शहर और जिला ही नहीं बल्कि डॉली को जांच के लिए मंदसौर नीमच तक ले जाया जाता है. 


मंगलवार को उज्जैन के पुलिस लाइन ग्राउंड पर आईजी संतोष कुमार सिंह ने परेड का निरीक्षण किया. इस दौरान पुलिस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी वहां मौजूद थे. पुलिस महानिरीक्षक संतोष कुमार सिंह ने डॉग का भी प्रेजेंटेशन भी देखा. बता दें कि उज्जैन की पुलिस लाइन में पदस्थ डॉली डीएसपी रैंक का डॉग है. इसे ट्रेकर डॉग कहा जाता है.


डॉली डॉग का अपराधियों में भी है खौफ


ट्रैकर डॉग का कार्य प्रमुख रूप से अपराधियों तक पुलिस को पहुंचाना होता है. इस काम में डाली डॉग को लगातार सफलता मिल रही है. डॉली डॉग केवल पुलिस विभाग में ही नहीं बल्कि अपराधियों में भी खासी चर्चित है. जब वारदात के बाद डॉग को घटनास्थल पर ले जाया जाता है तो पुलिस कर्मचारी और अधिकारी ही नहीं बल्कि अपराधी भी इस बात को भांप जाते हैं कि कानून के हाथ अपराधियों तक कभी भी पहुंच सकते हैं.


पुलिस विभाग की तरफ से मिलता है हैंडलर


पुलिस मुख्यालय द्वारा प्रत्येक को हैंडलर दिया जाता है. डॉग को छोटी सी उम्र में हैंडलर के सुपुर्द कर दिया जाता है. इसी बीच डॉग की ट्रेनिंग भी होती है. हैंडलर का कार्य केवल डॉग की केयर करना और उसे हैवी डाइट देना होता है. उज्जैन में डॉली के हैंडलर सत्येंद्र कुमार ने बताया कि समय-समय पर डॉग का मेडिकल परीक्षण किया जाता है. मेडिकल ऑफिसर द्वारा जो डाइट लिखी जाती है वही डॉग को दी जाती है. 


बीडीएस भी डग के भरोसे


डॉग बम डिस्पोजल स्क्वाड का भी महत्वपूर्ण सदस्य होता है. प्रत्येक जोन में आवश्यकतानुसार डॉग को भेजा जाता है.  यदि हम खर्च की बात करें तो एक डॉग पर प्रतिवर्ष सरकार द्वारा कम से कम 3 लाख रूपए खर्च किया जाता है. 


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