Manoj Parmar Suicide Case: मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में कारोबारी मनोज परमार और उनकी पत्नी नेहा का शव दो दिन पहले उनके आष्टा स्थित घर में फंदे से लटका मिला था. वहीं अब इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने खुलासा किया कि सुसाइड से एक दिन पहले मनोज परमार ने ईडी के भोपाल जोनल ऑफिस में फोन करके बताया था कि वह जांच में शामिल होने के लिए आ रहे हैं, लेकिन वे पहुंचे नहीं थे.


ईडी ने शनिवार (14 दिसंबर) को दावा किया कि इस हफ्ते की शुरूआत में तलाशी कार्यवाही खत्म होने के बाद ईडी के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी ने मनोज परमार या उनकी पत्नी से कोई संपर्क नहीं किया है. दरअसल, मनोज परमार और नेहा गुरुवार को अपने तीन बच्चों के साथ सुसनेर में एक मंदिर गए थे और देर रात वापस लौटे. वहीं शुक्रवार की सुबह जब दंपति नहीं जागे तो बड़ा बेटा उन्हें देखने गया तो वो मृत पाए गए. 


ED ने किया ये खुलासा
ईडी के एक अधिकारी ने बताया कि "दंपति को 9 और 10 दिसंबर को ईडी ने तलब किया था. तलाशी पूरी होने के चार दिन बाद उन्हें बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया था. हालांकि, दोनों पेश नहीं हुए थे. अधिकारी ने बताया, उनके भतीजे रोहित परमार ने स्थगन की अपील की जिसे स्वीकार कर लिया गया और नई तारीख (12 दिसंबर) दी गई."


"इस दौरान 10 दिसंबर को मनोज परमार की ओर से एक ईमेल आया, जिसमें उन्होंने 12 दिसंबर को दोपहर 3.30 बजे बयान देने के लिए कहा था. वहीं 12 दिसंबर को दोपहर 12 बजे ईडी के भोपाल जोनल ऑफिस के रिसेप्शन पर एक फोन आया, जिसमें परमार ने कहा कि वह रास्ते में हैं और वह 3:30 बजे तक ऑफिस पहुंच जाएंगे, लेकिन फिर भी वह पेश नहीं हुए."


सुसाइड नोट में क्या?
जानकारी के अनुसार, मनोज परमार ने अपने कथित सुसाइड नोट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को संबोधित करते हुए लिखा, "वह यह कदम उठाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि ईडी उसे परेशान कर रही है क्योंकि वह आपके (राहुल गांधी) के साथ जुड़े हैं और कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं. मेरी मौत के बाद इन बच्चों की जिम्मेदारी आपकी और कांग्रेस की है, इससे यह संदेश जाएगा कि पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के साथ खड़ी है."


क्यों पड़ी थी ED की रेड?
5 दिसंबर को ईडी के भोपाल जोनल ऑफिस ने मनोज परमार के खिलाफ जांच के तहत सीहोर और इंदौर में चार ठिकानों पर छापेमारी की. ईडी ने परमार और पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ प्रबंधक के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर अपनी जांच शुरू की थी. सीबीआई के अनुसार, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम और मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना के तहत छह करोड़ रुपये का लोन लिया गया था. हालांकि, इन पैसों को कथित तौर पर डायवर्ट कर दिया गया.


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