Bhind: मेहगांव की रामलीला को पूरे हुए 100 साल, राम विवाह में विधिवत किया गया माता सीता का कन्यादान
MP News: नगर भ्रमण करते हुए भगवान राम की बारात जनक जी के द्वार पहुंची. जहां विधिवत सीता जी का कन्यादान और विवाह की सभी रस्मे संपन्न हुई और विदाई के साथ राम बारात आगे बढ़ चली.
Madhya Pradesh News: त्रेता युग के रामायण काल को गुजरे भले ही सदियां बीत चुकी हो लेकिन आज भी रामायण लोगों के दिलों में बसी हुई है. आधुनिकता भरे टेलीविजन के दौर में भी रामलीला का मंचन सालों से जारी है. लोगों ने दूरदर्शन पर प्रसारित रामानन्द सागर के सीरियल रामायण को खूब सराहा था. इसने अपने आप में वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित किया था. फिर भी आज कही रामलीला का मंचन होता है तो उसे देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ आती है.
विधिवत सीता जी का हुआ कन्यादान
भिंड के मेहगांव में तो हर साल दिवाली के बाद रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. इस सिलसिले को एक शताब्दी वर्ष पूरा हो चुका है. रामलीला का कार्यक्रम कुछ इस तरह हुआ की दरभंगा गांव के वार्ड नंबर 14 के रहने वाले मनोज चौधरी के घर राम की बारात पहुंची और वहां पर विधिवत सीता जी का कन्यादान और उनके घर पर विदाई की रस्म पूरी हुई.
पूरे हुआ 100 साल
दरअसल रामलीला मैदान से राम बारात का शुभारम्भ हुआ पूरा नगर भ्रमण करते हुए भगवान राम की बारात जनक जी के द्वार पहुंची. जहां विधिवत सीता जी का कन्यादान और विवाह की सभी रस्मे संपन्न हुई और विदाई के साथ राम बारात आगे बढ़ चली. शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने मेहगांव में रहते राम बारात में हिस्सा ना लिया हो. इस बार का आयोजन मेहगांव की रामलीला मंचन के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर किया गया.
त्रेता युग की परंपराओं को आज भी निभा रहे
मां सरस्वती सामाजिक और धार्मिक रामलीला मण्डल के सदस्य अशोक श्रीवास्तव ने बताया की त्रेता युग में जो परम्पराएं थी उन्हीं परंपराओं को आज हम विरासत के रूप में निभा हैं. वे खुद 27 सालों से रामलीला मंच से जुड़े हुए हैं. वहीं समिति के अध्यक्ष दंदरौआ सरकार महंत महामण्डलेश्वर रामदास महाराज का कहना है कि राम के काज में सभी भेदभाव मिटाकर सार्थक प्रयास करना चाहिए. प्रत्येक मनुष्य को धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए इससे धर्म का प्रचार प्रसार होता है और आने वाली पीढ़ी को संस्कार मिलते हैं.
कलाकार बनाएं रखते हैं पवित्रता
इस लिए जब रामलीला का मंचन हो तो उसके दर्शन लाभ लेना चाहिए. रामलीला का मंचन जब भी होता है तो उसका मंचन देखने वालों की भीड़ भी बहुत होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि भगवान की लीला का अनुकरण करने या मंचन देखने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है. यहीं वजह है कि रामलीला के दौरान ईश्वर और लीला के अवतारों का अनुकरण करने वाले कलाकारों को भी इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए भक्ति भावना के साथ अभिनय करना पड़ता है.
दीपावली के बाद होती है रामलीला
दशहरा के दिन अखंड भारत के साथ ही कई अन्य देशों में भी रामलीला का मंचन विशेष रूप से किया जाता है लेकिन ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली बाद रामलीला मंचन करने की परंपरा है. दरअसल ज्यादातर जगह पर रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकारों में सामान्य नौकरी करने वाले लोग भी होते हैं, जो दीपावली के त्योहार के समय अपने घर आते हैं. इसी दौरान वे रामलीला में अपनी अदाकारी का प्रदर्शन करते हैं. इस वजह से रामलीला के मंचन के लिए यह सबसे अनुकूल समय माना जाता है.
किसी भी किरदार को निभाना सौभाग्य
रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकार मानते हैं कि रामलीला के दौरान किसी पात्र की भूमिका को निभाना भगवान की आराधना से कम नहीं होता है. रामलीला के समय श्रीराम ही नहीं बल्कि असुर राज रावण का किरदार निभाने वाला कलाकार भी खुद को भाग्यशाली मानता हैं. यही वजह है कि इन आस्थावान किरदारों की वजह से दर्शकों में भी आस्था और निष्ठा का भाव आता है.