MP News: धर्मनगरी चित्रकूट में आज पितृ विसर्जनी अमावस्या पर हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है. श्रद्धालुओं ने मंदाकिनी नदी किनारे मुंडन के बाद स्नान कर अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर पिंडदान किया है और भगवान कामतानाथ के दर्शन कर कामदगिरि की परिक्रमा लगाई. दरअसल, धर्म नगरी चित्रकूट में वैसे तो हर अमावस्या पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है लेकिन आज पितृ विसर्जनी अमावस्या होने के चलते हजारों-लाखों की संख्या में लोग चित्रकूट पहुंचे हैं.
पितरों का करते हैं तर्पण
श्रद्धालुओं ने मंदाकिनी नदी के तट पर स्नान, तर्पण और सिर मुंडन कराने के बाद पुन: स्नान करते हैं. इसके बाद कामतानाथ के दर्शन किए और कामदगिरि की परिक्रमा लगाई. शुक्रवार की रात से ही श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया था. आसपास जिलों के श्रद्धालुओं ने एक दिन पहले ही डेरा जमा लिया था और रात से ही स्नान का सिलसिला शुरू हो गया था. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम जब वनवास के दौरान चित्रकूट आए थे तो उन्हें अपने पिता दशरथ जी के स्वर्गवास की खबर यहीं मिली थी और चित्रकूट से ही उन्होंने मां मंदाकिनी नदी किनारे अपने पिता के मोक्ष के लिए तर्पण कर पिंडदान किया था, तब से यह परंपरा शुरू हो गयी थी, इसीलिए हजारों लाखों की तादाद में श्रद्धालु धर्म नगरी चित्रकूट पहुंच कर अपने पितरों का यहां तर्पण करते हैं.
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चित्रकूट में है विशेष महत्व
यही कारण है कि आज लाखों की संख्या में लोग चित्रकूट पहुंचकर मां मंदाकिनी नदी किनारे मुंडन के बाद मंदाकिनी में स्नान कर अपने पितरों को तर्पण और श्राद्ध कार्य किया है. इसके बाद वह भगवान कामदगिरि की पूजा अर्चना कर परिक्रमा लगाते हैं. वहीं लोगों का कहना है कि पितृ मास में अपने पितरों के मोक्ष के लिए 16 दिनों तक उन्हें तर्पण करते हैं और अमावस्या के दिन किसी धार्मिक स्थल पर पहुंच कर पिंडदान और श्राद्ध कार करते हैं. चित्रकूट में इसका विशेष महत्व है क्योंकि यहां भगवान श्रीराम ने खुद अपने पिता का श्राद्ध और पिंडदान का कार्य किया था इसलिए यहां का विशेष महत्व है. श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान और श्राद्ध कार्य करने के लिए चित्रकूट आते हैं.
दिव्य जीवनदास जी महाराज ने क्या कहा?
दिव्य जीवनदास जी महाराज ने बताया कि "इस परंपरा की शुरुआत मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के माध्यम से हुई, क्योंकि जब दशरथ जी का स्वर्गवास हो गया और जब उन्होंने सुना की मेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया है, तो उन्होंने श्राद्ध कार्य-पिंडदान का कार्य जो है यमुना मंदाकिनी के तट पर किया, उसी परंपरा के हिसाब से सभी श्रद्धालुगण ये मानते हुए कि उसी परंपरा का अनुसरण करते हुए यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध ,पिंडदान आदि यहां पर करते हैं."