Bhopal News: कांग्रेस (Congress) नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ गुजरात की एक अदालत ने मानहानि मामले में बहुत तेजी से फैसला सुनाया था. अगर उसी तेजी से मध्य प्रदेश की एमपी-एमएलए कोर्ट भी फैसला सुनाएं तो बीजेपी-कांग्रेस के राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा जाएं. मध्य प्रदेश के एमपी-एमएलए कोर्ट में 2 से 18 साल पुराने करीब 300 केस चल रहे हैं. इनमें से प्रदेश के 28 से ज्यादा मौजूदा सांसद-विधायकों पर 2 साल या उससे ज्यादा की सजा की तलवार लटक रही है. सजा मिलने पर इन सांसद-विधायकों को सदस्यता से हाथ धोना पड़ेगा और वे अगला चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे.
किन नेताओं पर चल रहे हैं केस
जिन लोगों के खिलाफ मामले लंबित हैं, उनमें शिवराज सिंह चौहान सरकार के तीन मंत्री भी शामिल हैं. 30 से ज्यादा सांसद-विधायक ऐसे हैं, जिन पर धोखाधड़ी, हत्या के प्रयास और आर्थिक अपराध के गंभीर मामले हैं. कुछ मौजूदा सांसद-विधायकों के खिलाफ चल रहे मुकदमों में 18 साल बाद भी फैसला नहीं आ पाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2017 में विशेष अदालतें बनाकर सांसद-विधायकों के मामलों में दो साल के अंदर फैसला सुनाने के आदेश दिए थे. सबसे पहले भोपाल में विशेष अदालत बनी.इसके दो साल बाद इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में भी 2-2 यानी कुल 8 विशेष अदालतें एमपी-एमएलए के मामलों का निपटारा करने के लिए बनाई गई हैं. राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद अपने पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं पर दर्ज मामले वापस ले लेती हैं. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने बिना अदालत की सहमति के माननीयों पर दर्ज मामलों के वापस लेने पर रोक लगा रखी है.
क्यों समय पर नहीं हो पाता है समय से निपटारा
इन मुकदमों के निपटारे में देरी का बड़ा कारण समय से समन तामील नहीं होना भी है. इसका जिम्मा पुलिस के पास है. जानकार बताते हैं कि विशेष अदालतों में ज्यादातर मामले दूरस्थ जिलों के हैं. अदालत से दूरी के चलते अक्सर गवाह तारीखों पर नहीं पहुंचते. मुकदमों की सूची में सबसे चौंकाने वाला नाम पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा का है. उन पर अकेले इंदौर में ही चेक बाउंस के करीब 165 केस हैं. ज्यादातर में वह पेश ही नहीं हुए हैं.
जबलपुर हाई कोर्ट के रजिस्टार जनरल का क्या कहना है
जबलपुर हाई कोर्ट के रजिस्टार जनरल रामकुमार चौबे ने अखबार 'दैनिक भास्कर'को बताया कि अधीनस्थ न्यायालयों की न्यायिक प्रक्रिया में हाईकोर्ट का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है, लेकिन लंबित मुकदमों का जो विषय संज्ञान में आया है वह बहुत अच्छा है. दो-तीन दिन में सभी अदालतों का डाटा एकत्र कर ही कुछ कह पाएंगे.
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