जबलपुर: मामला दो राज्य सरकारों के बीच का है, लेकिन पिस रहे हैं पेंशनर्स. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच मतभेद के कारण करीब साढ़े 4 लाख पेंशनर्स अभी भी महंगाई राहत (डीआर) के मामले में सेवाधीन कर्मचारियों से 12 प्रतिशत पीछे हैं. इस वजह से उन्हें हर महीने न्यूनतम 850 रुपये से अधिकतम 12 हजार रुपये तक का नुकसान हो रहा है.
किस नियम की वजह से हो रहा है नुकसान
अब इस मामले के पेंच को समझते हैं. एक नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर नया राज्य छत्तीसगढ़ बना था. इसके बाद कर्मचारियों के बंटवारे के समय दोनों राज्यों ने आपसी सहमति से एक समाधान खोजा. दोनों के बीच संपत्ति, कर्मचारियों के बंटवारे और पेंशनर्स की महंगाई राहत बढ़ाने के मामले में परस्पर सहमति की बात कही गई थी. इसी के तहत पेंशनर्स को महंगाई राहत दिए जाने के मामले में मध्य प्रदेश को राज्य पुनर्गठन अधिनियम-2000 के अनुसार छत्तीसगढ़ से सहमति लेना होता है. अधिनियम की धारा 49 की छठवीं अनुसूची के अनुसार दोनों राज्यों के बीच बंटवारे में मध्य प्रदेश को 73 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ की 27 प्रतिशत शेयर देना होता है. इसी के अनुसार महंगाई राहत दिए जाने में यह स्थिति बनती है.यह धारा 2035 तक रहेगी. यानी 1999 में जो कर्मचारी सेवा में आए हैं, जो 2035 में रिटायर होंगे. इनके रिटायरमेंट होने के बाद धारा 49 खत्म हो जाएगी.
क्या है मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का पेंच
हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में पेंशनर्स को 11 प्रतिशत महंगाई राहत दिए जाने का प्रस्ताव भेजा था, इसमें छत्तीसगढ़ ने सिर्फ 5 फीसदी बढ़ाने की सहमति दी है.मध्य प्रदेश सरकार की ओर से मंगलवार शाम को आदेश जारी कर दिए गए हैं, इसके बाद पेंशनर्स का डीआर 22 फीसदी हो गया है, जबकि पिछले दिनों 3 प्रतिशत की वृद्धि के बाद कर्मचारियों को 34 प्रतिशत डीआर मिलने लगा है.
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने क्या दिया है आश्वासन
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को अपने निवास पर कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों से चर्चा की. इसमें उन्होंने इस बात के संकेत दिए कि पेंशनर्स के मामले में धारा-49 का मामला मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच का है. इस विसंगति को दूर करने के लिए वो शासन स्तर पर विचार करेंगे. लेकिन,एक तथ्य और सामने आया है,जो सरकारों की उदासीनता बताता है. बताया जाता है कि 2017 में छत्तीसगढ़ के वित्त विभाग की ओर से मध्य प्रदेश के वित्त विभाग को पत्र लिखा गया था. इसमें धारा-49 खत्म किए जाने के बारे में स्थायी सहमति की बात कही गई थी, लेकिन मध्य प्रदेश ने इस पर असहमति जता दी थी.
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