मध्य प्रदेश में 18 दिनों से लगातार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका अपने-अपने जिले में अनिश्चित काल के लिए हड़ताल पर बैठी हुई हैं. इस दौरान सभी कार्यकर्ता और सहायिकाओं ने शासन की तरफ से किसी प्रकार की कोई सुनवाई न होने के कारण विरोध स्वरूप विदिशा में हाथों में कटोरा और बर्तन लेकर व्यापारियों से भीख मांगी. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ की जिला अध्यक्ष मिथिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि इतने दिनों के दौरान भी शासन प्रशासन की तरफ से कोई सुध नहीं ली गई है. जिसके कारण हम अपने बच्चों को पालने और घर चलाने के लिए सड़कों पर उतर कर व्यापारियों से भीख के रूप में सहयोग मांग रहे हैं.


सहयोग नहीं मिलने पर उठाया ये कदम


सरकार की तरफ से सहयोग न मिल पाने के कारण यह कदम उठाया गया है. सीएम के गृह जिले सीहोर में भी आशा उषा, पर्यवेक्षकों, संयुक्त मजदूर एकता यूनियन, एलआईसी यूनियन और जीआईसी के साथियों ने मिलकर संयुक्त धरना दिया. धरने में मजदूर सभी लोगों ने कई नारे लगाए.


MP News: पांच लाख से ज्यादा बेघरों को मिलेगी मकान की सौगात, कल पीएम मोदी वर्चुअली कराएंगे 'गृह प्रवेश'


सीटू यूनियन के जिला संयोजक ने कही ये बात


सीटू यूनियन के जिला संयोजक राजीव कुमार गुप्ता ने कहा कि सरकार जनविरोधी मजदूरों की कर्मचारी विरोधी नीतियों को तत्काल वापस ले. सरकार एलआईसी का आईपीओ लाकर जनता पालिसी धारकों और कर्मचारियों के साथ धोखा कर रही है. सरकार को निजीकरण की मुहिम तत्काल रोकनी चाहिए. देश भीषण बेरोजगारी से अभिशप्त है और ऐसे में सरकार चार काली श्रम संहिताएं लाकर देश की जनता को गुलामी के दलदल में ले जाने का काम किया है. इन कानूनों को सरकार को वापस लेना ही होगा.


दिनेश मालवीय ने कही ये बात


मजदूर यूनियन के दिनेश मालवीय ने कहा कि कोरोना वायरस से मजदूरों की कमर टूट गई. केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने मजदूरों को एक रुपए की भी सहायता नहीं दी, जबकि हमारी मांग थी कि प्रतिमाह  ₹7500 मजदूरों को दिया जाए. किराए में रहने वाले मजदूरों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ देकर उनका घर बनाया जाना चाहिए.


कम वेतन मिलने से परेशान


आशा-उषा और आशा पर्यवेक्षक यूनियन की शकुन पाटिल ने कहा कि हम आशाओं को जीने लायक वेतन भी मयस्सर नहीं हैं. कम से कम सरकार को हमें जीने लायक वेतन देना चाहिए. हमने कोरोना काल  में स्वास्थ्य सेवाएं देकर जनता की सबसे ज्यादा सेवा की और हम लोग ही वेतन के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. अन्य राज्यों में सरकार अपनी ओर से वेतन मिला कर देती है लेकिन मिशन संचालक के निर्णय को भी सरकार लागू नहीं कर रही है. हमारी मांग है कि हम पूरा काम सरकारी करते हैं और स्थाई प्रकृति का काम है. इसलिए हमें सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए. साथ ही न्यूनतम वेतन ₹26000 किया जाए. सरकार काले कानूनों को तत्काल वापस ले. जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होगी इंकलाब का नारा लगाते रहेंगे और संघर्ष जारी रहेगा.


धरने में प्रमुख रूप से दिनेश मालवीय, नरेश राय, लखनलाल, बाबूलाल गौर, शकुन पाटिल और और काफी संख्या में मजदूर और कर्मचारी मौजूद थे.


ये भी पढ़ें-


MPPSC: मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग 2019 की भर्ती प्रक्रिया से जुड़ी बड़ी खबर, हाई कोर्ट ने उठाया ये कदम