MP Assembly Election 2023: अपनी बेहतर रणनीतियों के मामले में जानी पहचानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी की प्लानिंग प्रदेश के कई जिलों की विधानसभा में सफल नहीं हो सकी है. ऐसी ही एक विधानसभा है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले की सीहोर विधानसभा. सीहोर विधानसभा में साल 1980 के बाद से बीजेपी बाहरी प्रत्याशियों के भरोसे ही अपनी नैया पार लगा सकी है. पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के बाद से ही सीहोर विधानसभा में मूल बीजेपीई विधायक नहीं बन सका है.


दरअसल, सीहोर विधानसभा का गठन 66 साल पहले यानि 1957 में हुआ था. जबकि भारतीय जनता पार्टी 43 सालों से बीजेपी के नाम पर राजनीति कर रही है. इससे पहले भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी की ओर से सीहोर विधानसभा में विधायक चुने गए, लेकिन बीजेपी के गठन के बाद से सीहोर विधानसभा में मूल भाजपाई महज एक बार ही बन सके है. साल 1980 के चुनाव में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा सीहोर विधानसभा से विधायक चुने गए थे, इसके बाद से कांग्रेस से आए नेताओं ने ही बीजेपी की नैया पार लगाई है.


सीहोर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास
सीहोर विधानसभा के गठन के बाद पहली बार 1957 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से उमराव सिंह विधायक चुने गए थे, इसके बाद कांग्रेस के इनायतुल्ला खान विधायक बने. 1967 में भारतीय जनसंघ से आर मेवाड़ा, 1972 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अजीज कुरैशी, 1977 में जनता पार्टी से सविता बाजपेयी विधायक बनीं थी. जबकि साल 1980 में बीजेपी के गठन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा भारतीय जनता पार्टी से विधायक चुने गए. इसके बाद से ही सीहोर विधानसभा में मूल भाजपाई विधायक नहीं बन सका. साल 1985 में शंकरलाल साबू कांग्रेस से विधायक बने. 1990 में कांग्रेस से बीजेपी में आए मदनलाल त्यागी विधायक बने. 


1993 में कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय रमेश सक्सेना विधायक चुने गए. 1998 में रमेश सक्सेना बीजेपी से विधायक बने और वे 2013 तक बीजेपी की और से विधायक रहे. साल 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस से बगावत कर सुदेश राय ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और बीजेपी की उषा रमेश सक्सेना को हराया. वर्तमान में सुदेश राय ही बीजेपी की ओर से विधायक हैं. 


मूल भाजपाइयों पर नहीं भरोसा
बता दें सीहोर विधानसभा में बीजेपी के कई पुराने घराने ऐसे हैं, जिन्होंने शुरुआती दौर में बीजेपी को खड़ा करने में अहम योगदान दिया है. बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी के यह पुराने घराने काफी करीबी हुआ करते थे, लेकिन समय बदला और धीरे-धीरे सीहोर बीजेपी अपने पुराने घरानों को भूलती गई. यही कारण है कि सीहोर विधानसभा चुनावों के दौरान मूल भाजपाई को छोड़ बीजेपी बाहर से आए प्रत्याशियों पर विश्वास जताती है.


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