MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बगावती नेताओं की वजह से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के समीकरण बिगड़ रहे हैं. रतलाम जिले की पांच विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है. यहां पर कांग्रेस के बागी नेताओं ने अपनी ताकत दिखाते हुए कांग्रेस को मुसीबत में डाल दिया है. रतलाम जिले में राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले कई दिग्गज चुनाव लड़ रहे है.


रतलाम जिले में शहर और ग्रामीण क्षेत्र की मिलाकर कुल आठ विधानसभा सीटें हैं, जिन पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होना था, लेकिन यहां पर बागी नेताओं ने दोनों ही पार्टी के समीकरण बिगाड़ दिए हैं. यदि आलोट विधानसभा सीट की बात की जाए तो यहां पर कांग्रेस के पूर्व सांसद और आलोट के पूर्व विधायक प्रेमचंद गुड्डू बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. यहां पर बीजेपी ने पूर्व सांसद डॉक्टर चिंतामणि मालवीय को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने विधायक मनोज चावला को दोबारा टिकट दिया है.  प्रेमचंद गुड्डू ने पार्टी से इस्तीफा देकर टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर निर्दलीय फॉर्म भर दिया है. 


इस तरह से बिगड़ रहा है समीकरण
ऐसे में कांग्रेस मुसीबत में आ गई है. इसी प्रकार यदि जावरा की बात की जाए तो यहां पर करणी सेना परिवार के प्रदेश अध्यक्ष जीवन सिंह शेरपुर निर्दलीय नामांकन भरा है. जीवन सिंह भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें नहीं मिल पाया. ऐसी स्थिति में यहां भी कांग्रेस के वीरेंद्र सिंह सोलंकी के लिए परेशानी खड़ी हो गई है. जावरा में बीजेपी ने डॉक्टर राजेंद्र पांडे को टिकट दिया है. हालांकि जीवन सिंह शेरपुर बीजेपी के भी वोट काटेंगे. इसी प्रकार सैलाना सीट पर भी जयस ने कमलेश्वर को मैदान में उतरकर बीजेपी प्रत्याशी संगीता चोरल, कांग्रेस प्रत्याशी हर्ष विजय गहलोत को मुसीबत में डाल दिया है.


त्रिकोणीय मुकाबला होने से मतदाता असमंजस में
आलोट के रहने वाले किसान राधेश्याम ने बताया कि मुकाबला त्रिकोणीय होने की वजह से मतदाताओं के मन मे अलग-अलग प्रकार के प्रश्न खड़े हो रहे हैं. इसी प्रकार सैलाना के मतदाता हरिराम चौधरी ने बताया कि मुकाबला दो लोगों में होता है तो विचारधारा से लेकर प्रत्याशी की छवि सब कुछ काम करती है, मगर त्रिकोणीय मुकाबले में मतदाताओं के सामने काफी बड़े सवाल खड़े हो जाते हैं. इसी प्रकार जावरा के रूपेश पांचाल बताते हैं कि इस बार चुनाव राजनीतिक के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी लड़ा जा रहा है, इसलिए मतदाता मौन होने के साथ-साथ पसोपेश में है.


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