MP Assembly Election 2023: कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है, लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी के बीच पुरानी दोस्ती अब शायद ही कभी देखने को मिले. तीन साल पहले तक जो दोस्त राजनेताओं के लिए बड़ी मिसाल बने हुए थे. आज उनकी सियासी दुश्मनी मिसाल बन रही है. सिंधिया ने राहुल गांधी के खिलाफ सीधे सियासी हमले तेज कर दिए हैं.


दरअसल, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी की दोस्ती उनके स्कूल समय से हो गई थी. दोनों ही देहरादून के धुन स्कूल में स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद पढ़ाई के लिए विदेश चले गए. उनका स्कूल से ही एक दूसरे के प्रति गहरा लगाव रहा. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के बीच भी गहरा दोस्ताना था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राजीव गांधी के साथ-साथ माधवराव सिंधिया को भी अपने बेटे की तरह दुलार करती थीं. यही वजह रही कि राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोस्ती भी पारिवारिक होकर राजनीति के क्षेत्र में मिसाल बनती चली गई. हालांकि उनकी दोस्ती पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी भारी पड़ गई.


पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से नाराज होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी में चले गए. इसके बाद से ही राहुल गांधी और सिंधिया एक दूसरे को अपना सबसे बड़ा सियासी दुश्मन मानने लगे. दोनों ही एक दूसरे पर निशाना साधने में कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. हाल ही में एनडीए के खिलाफ तैयार किए गए गठबंधन 'इंडिया' को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने निशाना साधा है. उन्होंने 2023 में 'इंडिया' गठबंधन को भ्रष्टाचार और सत्ता हासिल करने वाला गठबंधन करार दिया है. इसकी आड़ में उन्होंने राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने लिखा है कि साल 2022 में सत्ता के लिए तुष्टीकरण से ओतप्रोत भारत जोड़ो यात्रा निकाली गई. ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह राहुल गांधी पर सबसे बड़ा हमला था.


आखिर कैसे बढ़ गई सिंधिया और राहुल गांधी में दूरी?


जिस तरह इंदिरा गांधी माधवराव सिंधिया को अपने बेटे की तरह मानती थीं उसी तरह कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी राहुल गांधी की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने बेटे के समान मानती थी. भाई बहन का रिश्ता भी प्रियंका वाड्रा गांधी ने लगातार निभाया, लेकिन पार्टी बदलने से विचार भी बदल गए. राजनीति से जुड़े वरिष्ठ नेता मानते हैं कि जब 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी उस समय पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी सभी फैसले ले रही थी. इस दौरान सिंधिया का राजनीतिक कद एक दायरे तक सीमित रह गया. सिंधिया के पास उनके समर्थक मंत्रियों के लगातार शिकायतें भी पहुंचने लगी. समर्थक मंत्रियों ने बार-बार कहा कि सरकार में उनकी सुनवाई नहीं हो पा रही है.


इसके बाद जब राज्यसभा चुनाव का समय आया तो मध्य प्रदेश से दिग्विजय सिंह को पहले नंबर पर और ज्योतिरादित्य सिंधिया को दूसरे नंबर पर भेजे जाने की रणनीति तैयार की गई. इससे भी भी सिंधिया नाराज हो गए. अब कहा यह भी जाता है कि सिंधिया ने उस समय राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मिलने की कोशिश की मगर उनकी मुलाकात नहीं हो पाई. यह प्रमुख वजह रही कि सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी. हालांकि उस समय राहुल गांधी इस बात को बार-बार कहते हुए दिखाई दिए कि सिंधिया के लिए उनके घर के दरवाजे हमेशा खुले थे. 


भारत जोड़ो यात्रा के बाद खुलकर आमने-सामने


राहुल गांधी ने पूरे देश में भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस को जोड़ने और मजबूत करने की कोशिश की. जब भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश से गुजरी तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उस पर जमकर निशाना साधा. इसके बाद राहुल गांधी की ओर से भी पलटवार किए जाने लगे. इस प्रकार उनके बीच दूरियां इतनी बढ़ गई कि अब दोनों ही एक दूसरे के बड़े सियासी दुश्मन माने जाते हैं. 'इंडिया' गठबंधन के बहाने भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2022 में निकाली गई भारत जोड़ो यात्रा को निशाना बनाते हुए सीधे-सीधे राहुल गांधी पर राजनीतिक प्रहार किया है.


सिंधिया और गांधी की खामियाजा दिग्विजय-कमलनाथ ने भी भुगता


जब भी बड़े स्तर पर राजनेताओं की दोस्ती दुश्मनी में बदलती है तो उसका खामियाजा कई लोगों को भुगतना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक दुश्मनी का दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को फायदा पहुंचा है, बल्कि साल 2018 में बनी कांग्रेस की सरकार गिर गई. इससे कमलनाथ को सबसे बड़ा झटका लगा. कमलनाथ 5 साल के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 15 महीने में ही उनकी कुर्सी चली गई. कमलनाथ की सरकार में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह और भतीजे प्रियव्रत सिंह मंत्री थे. इसके अलावा उनके कई समर्थक भी सरकार में प्रभावशाली पदों पर काबिज थे. मध्य प्रदेश के आधे हिस्से में दिग्विजय सिंह की हुकूमत चल रही थी, लेकिन सरकार जाने के बाद उनका भी राजनीतिक कद फिर विपक्ष की भूमिका में आ गया.


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