MP Election News: चुनावी साल में राजनीतिक दलों और उसके नेताओं को कार्यकर्ता बेहद प्रिय हो जाते हैं. तभी तो 'रूठे- रूठे पिया को मनाऊं कैसे' हिंदी फिल्म के इसी पुराने गाने की तर्ज पर मध्य प्रदेश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां यानी बीजेपी और कांग्रेस अपने रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने का जतन कर रही हैं. कहा जा रहा है कि सूबे की राजनीति में इन दिनों 'कार्यकर्ता काल' चल रहा है.


अभी जमकर किया जा रहा कार्यकर्ताओं का महिमा मंडन 


अमूमन हर राजनीतिक पार्टी में होता है कि सत्ता में आने के बाद कार्यकर्ताओं की पूछ परख बेहद कम हो जाती है. मंत्री,सांसद या विधायक के आसपास दलालों का चक्रव्यूह बन जाता है. पार्टी कैडर या कार्यकर्ता को हाशिए पर धकेल दिया जाता है. वहीं, जब चुनावी साल आता है तो नाराज कार्यकर्ताओं के मान-मनौव्वल का दौर शुरू होता है. मध्यप्रदेश में अभी ऐसे ही नजारे देखने को मिल रहे हैं, जिसमें जमीनी कार्यकर्ता को प्राणों से प्रिय या भगवान तक की संज्ञा दी जा रही है.


मध्य प्रदेश सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन जिला,शहर और ब्लॉक स्तर तक में हो रहे हैं. इसमें कार्यकर्ताओं की पूछ परख के साथ उनका जमकर महिमा मंडन किया जा रहा है. बड़े नेताओं को नसीहत दी जा रही है कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा उन्हें अगले चुनाव में डुबा सकती है.


भ्रम में मत रहिए, कार्यकर्ताओं की वजह से हैं सरकार में


मंत्रियों से वन-टू-वन बातचीत में बीजेपी के संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने स्पष्ट कहा कि चुनाव नजदीक हैं. प्रभार वाले जिलों पर गंभीरता से ध्यान दें. परफॉर्म नहीं करेंगे तो मुश्किल होगी. संगठन व कार्यकर्ताओं की वजह से ही सरकार में हैं. जिले में या किसी कार्यक्रम में जाएं तो इसकी सूचना जिले के संगठन को जरूर हो. प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी अपनी बैठकों में बार-बार कार्यकर्ताओं के मान सम्मान की बात तो कर ही रहे हैं, साथ में उन्हें चुनाव में टिकट या सत्ता में भागीदारी का आश्वासन भी देते नजर आ रहे हैं.


कार्यकर्ता को भूले तो पार्टी खत्म


कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को लेकर इसी तरह की खरी-खरी बात कांग्रेस खेमे में भी सुनाई दी. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मध्यप्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने जबलपुर में पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक में कहा कि जिन कार्यकर्ताओं के कंधों पर चढ़कर नेता सांसद या विधायक बनें ,उन्हें भुलाया जाता रहा है. जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से ही पार्टी कमजोर हो गई. इस तरह की बात पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी कह चुके हैं कि यदि कार्यकर्ताओं को साथ लेकर नहीं चला गया तो इस चुनाव के बाद पार्टी खत्म हो जाएगी.


चुनाव आते-आते धराशाई हो जाते हैं सारे दावे


इसी वजह से बीजेपी और कांग्रेस दोनों तरफ से यह सब सुनाई दे रहा है कि पार्टी कर्मठ कार्यकर्ता,अच्छी छवि वाले कार्यकर्ता, युवा कार्यकर्ता या सर्वे में जीत की संभावना वाले कार्यकर्ता को ही टिकट देगी. यानी अभी का इशारा तो ही है कि जमीनी कार्यकर्ता को टिकट मिलेगा .लेकिन सत्तारूढ़ दल के एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह सारे दावे चुनाव आते-आते धराशाई हो जाते हैं. अंत में रॉकेट उम्मीदवार चुनाव मैदान में नजर आते हैं.


बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जूझ रहीं कार्यकर्ताओं की नाराजगी से 


मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे कहते हैं कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जूझ रही हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में देखा गया था कि बीजेपी को कार्यकर्ताओं की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ा. वही, कांग्रेस ने भी सवा साल की सरकार में कार्यकर्ताओं की जमकर उपेक्षा की, जिस वजह से 2018 के मुकाबले 2023 में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में वैसा उत्साह नहीं देखा जा रहा है. इस कार्यकर्ताओं को मनाना दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.


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