MP Election 2023 News: बीजेपी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर काफी एक्टिव है. सियासी जानकारों ने आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पर मध्य प्रदेश के चुनावों से काफी फर्क पड़ने की संभावना जताई है. यही वजह है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और सीएम शिवराज सिंह चौहान समेत पार्टी के दूसरे सीनियर लगातार प्रचार प्रसार करने में जुटे हैं. इस बीच चर्चा है कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में सभी चुनौतियां पार करते हुए सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला कर सकती है.


दावा है कि दलीय गुटबाजी और स्थानीय स्तर पर टिकट बंटवारे से शुरू हुई कलह को शांत करने के लिए पार्टी कई नेताओं को एक मंच पर साथ ला सकती है. इन सबके बीच यह जानना जरूरी है कि वह कौन सी वजहें हैं जिनकी वजह से एमपी में बीजेपी ऐसा प्रयोग करने जा रही है जो उसने राज्य में कभी नहीं किया. साल 2018 के विधानसभा चुनाव तक यह स्पष्ट था कि राज्य में अगर बीजेपी चुनी जाती है तो शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे लेकिन 5 साल में ऐसी कौन सी परिस्थितियां आ गईं जहां पार्टी नेताओं को एक मंच पर लाना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हो गई है. 


आपसी कलह से जूझ रही है एमपी बीजेपी, पार्टी में सीएम के कई दावेदार


साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कुछ सीटों के अंतर से बहुमत से दूर रही बीजेपी इस चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. हालांकि पार्टी के बीच आंतरिक कलह और गुटबाजी के चलते सीएम फेस को लेकर कई चेहरे सामने आ गए हैं. पार्टी फोरम पर तो कोई ऐसी बात नहीं कहता और न ही कहीं कोई कलह सामने आती है लेकिन अंदरखाने, अलग-अलग गुटों के नेता खुद को सीएम फेस मानकर बैठे हैं. नेताओं का मानना है कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं भी घोषित किया जाता तो उनके करीबी लोगों को टिकट दिए जाएं और सरकार बनने पर महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलें. 


विपक्ष का आरोप एमपी बीजेपी 3 हिस्से में बंटी


कांग्रेस भले ही बीजेपी की गुटबाजी को उनका आंतरिक मामला बताती हो लेकिन वह भी इसको लेकर सत्ता पक्ष पर हमला करने से चूकती नहीं हैं. कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह कई मौकों पर कह चुके हैं कि बीजेपी तीन हिस्सों में बंटी हुई है. दिग्विजय सिंह का दावा है कि बीजेपी शिवराज, महाराज (ज्योतिरादित्य सिंधिया) और नाराज यानी कार्यकर्ता में बंटी हुई है. कांग्रेस का दावा है कि साल 2023 के चुनाव में बीजेपी को विपक्ष के मुकाबले के अपनों से ज्यादा चुनौती है. चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबियों को टिकट देने का मामला हो या शिवराज सिंह चौहान के सीएम फेस बने रहने का या प्रत्याशियों के एलान करने का. पार्टी में तीनों मुद्दों पर पेंच फंसता हुआ दिख रहा है. 


सिंधिया समर्थक विधायकों को बीजेपी में एडजस्ट करना बड़ी चुनौती


साल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में हार जीत का अंतर बहुत मामूली था. कांग्रेस आलाकमान से नाराजगी के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से बगावत कर दी. जिसके बाद उन्होंने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है और बीजेपी ने कांग्रेस की 18 महीने शासन को खत्म कर दोबार सत्ता में वापसी की. ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आये इन विधायकों को बीजेपी की अगुवाई वाली शिवराज सिंह चौहान सरकार में कई अहम मंत्रालय में जगह दी गई. 2023 विधानसभा चुनाव से पहले ये विधायक बीजेपी के गले की फांस बन गये. पार्टी आलाकमान इन नेताओं की नारजगी से बचने के लिए एडजस्ट करने में काफी माथापच्ची करनी पड़ रही है. बीजेपी कार्यकारिणी ये नहीं तय कर पा रही है कि वो यहां से बीजेपी के पुराने उम्मीदवारों को टिकट दे जो यहां पहले से पार्टी के साथ जुड़े थे, या उन नेताओं को टिकट दे जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आये थे. हालांकि उनमें से कुछ नेता बीजेपी का दामन छोड़ अपने पुराने ठिकाने की तरफ लौटने के फिराक में हैं.


39 सीटों पर प्रत्याशियों के एलान के बाद कई जिलों में कलह सामने आई


बीजेपी ने प्रदेश के 230 सीटों में लगभग 39 सीटों पर 17 अगस्त को उम्मीदवारों के नामों का एलान कर चुकी है. सियासी जानकारों की मानें तो बीजेपी ने ऐसा पार्टी उम्मीदवारों को अधिक समय देने के लिए चुनाव से लगभग 3 महीने पहले नामों का एलान किया है. ये वो सीटें हैं जहां बीजेपी को साल 2018 विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. इसमें पार्टी के कई पुराने नेताओं को मौका दिया गया है, जबकि पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार 39 में से 22 सीटों पर उम्मीदवारों को बदल दिया गया है. पार्टी की इस लिस्ट से कई लिस्ट से स्थानीय नेताओं समेत अन्य सीनियर नेताओं ने नाराजगी जताई है. गाहे बगाहे यहां से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अलग-अलग मंचों से अपनी नारजगी जाहिर भी कर रहे हैं. इनमें वे नेता भी शामिल हैं, जो बड़े गुटों में शामिल हैं. बीजेपी के कई नेताओं को ये भी कहते हुए सुना जा सकता है कि अगर उन्हें पार्टी का टिकट नहीं मिला तो वे इंडिपेंडेंट या अन्य पार्टी से चुनाव लड़ने लेंगे. 


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