MP Assembly Elections 2023: मध्य प्रदेश में कांग्रेसी दिग्गज कमलनाथ (Kamal Nath) को चुनावी राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. फिलहाल में वे मध्य प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी नाव के मुख्य खेवईया हैं. टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार और कैंडिडेट को जिताने की जिम्मेदारी कमलनाथ ने अपने सिर पर ले रखी है. वे कांग्रेस का प्रदेश में फेस भी हैं. हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर उनके नाम पर कई चुनावी जीत दर्ज हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि उन्होंने एक बार हार का स्वाद भी चखा था. आइए आज कमलनाथ के राजनीतिक जीवन की एकमात्र हार का किस्सा बताते हैं.


वो 1998 का मार्च-अप्रैल का महीना था. गर्मी दस्तक देने लगी थी. इसी समय मध्य प्रदेश की राजनीति भी उबाल मार रही थी. यहां लोकसभा का एक ऐसा उप चुनाव होने जा रहा था, जिस पर पूरे देश की नजर थी. 1952 से कांग्रेस की अजेय सीट पर इंदिरा गांधी के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कमलनाथ ने अपनी सांसद पत्नी अलका नाथ को इस्तीफा दिलाकर उप चुनाव की राह पकड़ी थी. 1980 से लगातार चार बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से सांसद कमलनाथ आत्मविश्वास से लबरेज थे. किसी को आभास नहीं था कि छिंदवाड़ा की जनता के मन में क्या पक रहा है? लेकिन नामांकन जमा करने से एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी ने इतना बड़ा दांव चल दिया जिसने कमलनाथ के उजले राजनीतिक कैरियर में एक दाग लगाने का काम किया.


मध्य प्रदेश के चुनावी समर में हैं कई किस्से
मध्य प्रदेश के चुनावी समर के तमाम ऐसे किस्से हैं, जिनकी चर्चा आज भी राजनीतिक गलियारों में होती है. एक ऐसा ही किस्सा 1998 के छिंदवाड़ा सीट के लोकसभा उपचुनाव का है. उससे पहले जानते है कि उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक का कमलनाथ का सफर कैसा रहा. साल 1979 में कमलनाथ ने मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबला करने में कांग्रेस की मदद की थी. कमलनाथ संजय गांधी के हॉस्टलमेट थे और आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई की सरकार में उनके लिए जेल भी गए थे. उन्हें इंदिरा गांधी अपना तीसरा पुत्र मानती थीं. तभी 1980 में 1952 से छिंदवाड़ा से लगातार सांसद रहे गार्गी शंकर मिश्र का टिकट काटकर कमलनाथ को मैदान में उतारा गया था.


1996 में हवाला कांड में आया कमलनाथ का नाम
1977 के आम चुनाव में सेंट्रल इंडिया से कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा की एक सीट जीती थी. गार्गी शंकर मिश्र जनता लहर में भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश: राजनेताओं के किस्से' में लिखते हैं कि चार बार लगातार चुनाव जीतते आ रहे कमलनाथ को साल 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया. उन्होंने अपनी पत्नी अलका नाथ को चुनाव मैदान में उतार दिया.


छिंदवाड़ा में अपने व्यापक जनाधार के कारण कमलनाथ पत्नी अलका नाथ को चुनाव जिता ले गए. कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब कमलनाथ को दिल्ली में सांसद रहने के चलते लुटियंस जोन में मिला बड़ा बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया.


पत्नी के इस्तीफे के बाद लड़े उपचुनाव
कमलनाथ ने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी अलका नाथ के नाम एलॉट हो जाए. उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं, जिसके कारण बड़ा बंगला नहीं मिल सका. उधर,कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने तैयार नहीं थे. इस बंगले की खातिर उन्होंने अपनी पत्नी से संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए. तब तक वे हवाला कांड के दाग से बरी भी हो चुके थे. छिंदवाड़ा के बाहर लगभग सभी को लग रहा था कि कमलनाथ पांचवीं बार लोकसभा के सदस्य बनने वाले हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे. सरकार होने के फायदा भी उन्हें मिलने की पूरी उम्मीद थी.


भारी तामझाम के साथ कमलनाथ ने अपना नामांकन दाखिल किया और दावा किया कि चुनाव में जीत सुनिश्चित है. इसी बीच नामांकन से पहले भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव चलते हुए अपने मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता सुंदरलाल पटवा को कमलनाथ के खिलाफ छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतार दिया. पार्टी ने अपने फैसले को बेहद गोपनीय रखा था. दोनों पार्टियों की ओर से देशभर के तमाम दिग्गज नेता चुनाव प्रचार के लिए छिंदवाड़ा पहुंचने लगे. इस चुनाव की कवरेज के लिए छिंदवाड़ा गए वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे बताते हैं कि बीजेपी ने यह मुद्दा बना दिया कि जब अलका नाथ यहां से सांसद थीं तो उन्हें इस्तीफा दिलाकर फिर से नया चुनाव कराने की क्या आवश्यकता थी? 


छिंदवाड़ा में जब कमलनाथ की चुनावी जमीन खिसक
यह बात मतदाताओं को इतनी अपील कर गई कि उन्होंने भी तय कर लिया कि यह चुनाव कमलनाथ को हरवाना है. लोग कहते भी थे इस बार कमलनाथ को हरवा देंगे, भले अगली बार उन्हें फिर से जीत कर छिंदवाड़ा का सांसद बना देंगे. उस समय कमलनाथ के चुनाव पर बारीक नजर रखने वाले मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि छिंदवाड़ा में जैसे-जैसे मतदान की तिथि पास आती जा रही थी, वैसे-वैसे चुनावी मैदान में कमलनाथ की जमीन खिसकती नजर आने लगी थी. कांग्रेस बीजेपी दोनों तरफ से बाहुबलियों का डेरा भी छिंदवाड़ा में डल गया था. सरकार को इंटेलिजेंस की तरफ से लगातार रिपोर्ट मिल रही थी कि मतदान के दिन बड़े पैमाने पर हिंसा और गड़बड़ी हो सकती है.


छिंदवाड़ा में कमलनाथ को पटवा ने किया था चित
काशीनाथ कहते हैं कि तब के एडीजी इंटेलिजेंस ए एन सिंह के मशवरे पर मतदान के दिन जिले भर में चार पहिया वाहनों को सड़क में उतारने पर रोक लगा दी गई. इससे हुआ यह कि जो जहां था,वहीं फंसा रह गया. बीजेपी के दिग्गज पटवा ने छिंदवाड़ा में पार्टी के कैडर, नेतृत्व कौशल, चुनाव प्रबंधन और वक्तृत्व कला से माहौल पूरी तरह अपने पक्ष में कर लिया.जब नतीजा घोषित हुआ तो वो कमलनाथ के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. 73 साल के पटवा ने कमलनाथ को 38 हजार से ज्यादा मतों से परास्त कर दिया. हालांकि,1998 के आम चुनाव में कमलनाथ ने बड़े अंतर से सुंदर लाल पटवा को पराजित करके अपनी हार का बदला ले लिया. इसके बाद कमलनाथ की छिंदवाड़ा पर पकड़ कभी ढीली नहीं हुई. अपने जीवन की एकमात्र हार ने कमलनाथ को आत्मावलोकन को मजबूर किया.उन्होंने लगातार दौरे करके लोगों से मुलाकात की और अपनी हार की वजह जानी.


गलतियों से सबक लेकर कमलनाथ फिर से छिन्दवाड़ा के अपराजेय योद्धा बन गए. यहां तक की 2019 की मोदी लहर में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की 29 में से जो एक सीट जीती थी, वह छिंदवाड़ा थी. यहां से कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ ने जीत हासिल की थी. इससे पहले 2014 में आखिरी बार उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता था.2018 में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर दिल्ली की जगह भोपाल की राजनीति शुरू की. इस बार भी कमलनाथ छिंदवाड़ा सीट से प्रत्याशी हैं और कांग्रेस के सीएम फेस हैं.


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