Revolution Of 1857: गोंडवाना राजवंश के अमर हुतात्मा राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने वनवासी क्रांति का सूत्रपात कर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था. 1857 की क्रांति में दोनों क्रांतिवीरों का अहम योगदान था जो 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत के रूप में फलित हुआ. कहते हैं कि दोनों राजवंशी राजा 1857 की क्रांति के प्रथम अमर शहीद थे.
बंदा वाला जगह बन गया तीर्थ
जबलपुर शहर में अब वह स्थान आजादी का तीर्थ बन चुका है, जहां पिता-पुत्र को बंदी बनाकर रखा गया था. अभी यहां वन विभाग का ऑफिस है, जिसे स्मारक बनाने की तैयारी है. 18 सितंबर, 1857 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुंह पर बांध उड़ा दिया गया था. दोनों ने हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया, लेकिन अंग्रेजों के सामने झुकना पसंद नहीं किया. इस घटना के बाद पूरे गोंडवाना साम्राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई. शंकर शाह-रघुनाथ शाह के बलिदान ने लोगों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ एक ऐसी चिंगारी को जन्म दे दिया जो बाद में शोला बन गई.
अमर क्रांतिकारी राजा का इतिहास
आइए,जानते हैं कि कौन थे अमर क्रांतिकारी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह और क्या थी उनके बलिदान की कहानी. इतिहासकार डॉ आनंद राणा के मुताबिक गोंड राजवंशों का उत्थान काल 1292 से माना जाता है. एक लंबे कालखंड तक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपनी पहचान कायम कर चुके गोंड राज्य में एक समय ऐसा भी आया, जब सत्ता के लिए संघर्ष शुरू होने लगा.
यह दौर था 1789 का जब राजा सुमेर शाह की रानी ने शंकर शाह को जन्म दिया. उस समय राजा सुमेर सिंह को मराठों ने बंदी बना लिया था और उन्हें सागर के किले में कैद कर रखा था. एक लंबे समय तक राजा के आने का इंतजार करने के बाद रानी अपने बेटे शंकर शाह के साथ जबलपुर राजधानी में गढ़ा पुरवा में आकर रहने लगी थीं.
शंकर शाह की रुचि धनुष बाम में थी
शंकर शाह जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उनकी रुचि धनुष बाण की ओर बढ़ने लगी. लगातार अभ्यास के बाद एक दिन ऐसा आया जब धनुष बाण की कला में निपुण हो गए. शाह ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक मंडली तैयार की, जिसका नाम गोंटिया दल रखा. वहीं, दूसरी ओर मराठों ने सुमेर शाह को कैद से मुक्त कर दिया. सुमेर शाह के पहुंचने के बाद शंकर शाह को युवराज घोषित कर दिया गया.
राजा सुमेर सिंह के गुजर जाने के बाद शंकर शाह को राजा नियुक्त किया गया. इसके बाद शंकर शाह का विवाह हुआ, विवाह के दो साल बाद कुंवर रघुनाथ शाह का जन्म हुआ. राजा शंकर शाह ने अब मराठों से अपना राज्य पाने का मन बना लिया था. इसके लिए उन्होंने पिंडारी सरदार अमीर खां से मदद मांगी पर पिंडारियों ने उनके साथ मिलकर दगाबाजी की.
1817 को अंग्रेजों ने भोंसले से जबलपुर को छीन लिया
एक समय ऐसा आया जब 20 दिसंबर 1817 को अंग्रेजों ने भोंसले से जबलपुर को छीन लिया. शंकर शाह ने ब्रिगेडियर जनरल हार्डीमेन से मुलाकात कर राज्य पर अपना दावा पेश किया. अंग्रेजों ने उनकी मांग को सिरे से खारिज कर दिया. अब यहां से राजा शाह का संघर्ष मराठों से ना होकर अंग्रेजों के साथ शुरू हो गया.
यहीं से शंकर शाह ने बिना सामने आए अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया. 1857 आते-आते देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी थी. इसमें राजा शंकर शाह भी बेटे रघुनाथ शाह के साथ शामिल थे. हालांकि किसी तरह गुरिल्ला युद्ध के बारे में अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर लेफ्टिनेंट क्लार्क को भनक लग गई. क्लार्क ने सेना के साथ शाह की सेना पर आक्रमण कर दिया. इस हमले में शंकर शाह के हजारों सैनिक मारे गए.
अंग्रेजों राजा को देशद्रोही साबित किया
इसके बाद अंग्रेजों का आक्रोश शाह के खिलाफ लगातार बढ़ता चला गया. थोड़ा बहुत ही सही इस युद्ध में अंग्रेजों का भी नुकसान हुआ, जो उन्हें बर्दाश्त नहीं था. अंग्रेज एक दिन अचानक राजा के घर जा पहुंचे, जहां से उन्होंने राजा शंकर शाह, उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह समेत अन्य सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया. अंग्रेजी सरकार राजा को देशद्रोही साबित करते हुए उन्हें तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देने की सजा सुनाई.
तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया
18 सितंबर की वो काली रात भी आई, जब उन्हें तोप के मुंह पर बांधा गया. तोप के मुंह से बांधे जाने के बाद भी शंकर शाह की आंखों में पहले वाली चमक बरकार थी, भय मानों उनसे कोसों दूर हों. राजा ने तोप से बांधने वाले अंग्रेजी सैनिक से कहा कि कसकर बांधो, कहीं कसर ना रह जाए. इसके बाद उन्होंने अपनी बुलंद आवाज में भारत मां का जयकार लगाया और फिर राजा वीरगति को प्राप्त हो गए.
वहीं, दूसरी ओर मौत करीब होने के बाद भी गिरफ्तार कुंवर रघुनाथ शाह ने बिना डरे अंग्रेजों से लगातार सिर उठाकर बात की. इतिहासकार बताते हैं कि पिता-पुत्र के बलिदान के बाद रानी फूलकुंवरि ने अंग्रेजों से घिर जाने के बाद खुद ही कटार सीने में उतार ली.