MP Cabinet Expansion: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज शनिवार (26 अगस्त) को अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में तीन विधायकों को तीन माह के लिए मंत्री बना दिया है. मंत्रिमंडल के इस आखिरी विस्तार से सत्तारूढ़ बीजेपी और मंत्री बनने वाले विधायक भले ही खुश है लेकिन विपक्षी कांग्रेस के दिग्गज नेता इस पर तंज कस रहे हैं. माना जा रहा है कि अगर नवंबर में विधानसभा के चुनाव होते हैं तो इन मंत्रियों का कार्यकाल सिर्फ 3 महीने का होगा.10 अक्टूबर के आसपास आचार संहिता लगने की भी खबर है. इस हिसाब से इन मंत्रियों को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए सिर्फ डेढ़ महीने मिलेंगे.


मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल में पूर्व सीएम उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी, राजेंद्र शुक्ला और गौरी शंकर बिसेन को जाति एवं क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से चुनाव के ठीक पहले जगह दी है. इसमें से राहुल लोधी और गौरी शंकर बिसेन राज्य के सबसे बड़े वोट बैंक (ओबीसी) से आते है. वहीं, राजेंद्र शुक्ला शिवराज कैबिनेट में बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में शामिल किए गए हैं.


चुनाव के लिहाज से ये 3 इलाके मुश्किल
यहां बताते चलें कि रीवा से विधायक राजेंद्र शुक्ला विंध्य, बालाघाट से विधायक गौरीशंकर बिसेन महाकोशल और टीकमगढ़ जिले के खरगापुर से विधायक राहुल लोधी बुंदेलखंड का प्रतिनिधित्व करेंगे. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि फिलहाल इन तीनों ही इलाकों में बीजेपी के लिए अगले चुनाव के लिहाज से काफी मुश्किलें हैं.


सबसे पहले राजेंद्र शुक्ला को मंत्री बनाने की बड़ी वजह को जानते हैं. राजेन्द्र शुक्ला को विंध्य क्षेत्र का बड़ा ब्राम्हण चेहरा होने के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान से नजदीकी का फायदा भी मिला है. उन्हें मंत्री बनाकर विंध्य इलाके के ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश की गई है. विंध्य इलाके में करीब 15 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर्स हैं.
विंध्य के पेशाब कांड से नाराज ब्राह्मण वोटरों को मनाने के लिए भी राजेंद्र शुक्ला की ताजपोसी करने की चर्चा हो रही है.


बीजेपी का विंध्य इलाके पर क्यों है फोकस?
दरअसल, साल 2018 के चुनाव में विंध्य की 30 में से 24 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी. इस बार जनता में नाराजगी और पार्टी के भीतर अंतर्विरोध की खबरों के बीच बीजेपी लगातार विंध्य इलाके पर फोकस कर रही है. यहां के रीवा और शहडोल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो मेगा इवेंट बीजेपी आयोजित कर चुकी है. इसी तरह गृह मंत्री अमित शाह भी आदिवासी कोल समाज के शबरी सम्मेलन में शिरकत करने विंध्य आ चुके हैं.


अब बात सात बार के विधायक गौरीशंकर बिसेन और राहुल लोधी की करते हैं. ये दोनों विधायक सूबे के सबसे बड़े वोट बैंक यानी ओबीसी (OBC) वर्ग से आते हैं. प्रदेश में ओबीसी की आबादी तकरीबन 50 प्रतिशत है. खरगापुर से विधायक राहुल लोधी के बारे में कहा जाता है कि उनकी पैरवी पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जमकर की थी. राहुल लोधी बीजेपी की दिग्गज नेता उमा भारती के भतीजे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि बुंदेलखंड को प्रतिनिधित्व देने के साथ राज्य के बड़े लोधी (ओबीसी के अंतर्गत) वोट बैंक को साधने के लिए राहुल लोधी को राज्य मंत्री के रूप में शिवराज कैबिनेट में शामिल किया गया है. महाकौशल, बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल अंचल में लोधी वोट बड़ी संख्या में है.


2018 विधानसभा चुनाव के समीकरण
बात 2018 के विधानसभा चुनाव की करें तो बुंदेलखंड की 26 सीटों में से 17 पर बीजेपी और 7 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. यहां से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के खाते में भी एक-एक सीट आई थी. बाद में कमलनाथ सरकार का तख्ता पलट होने के बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के विधायक राजेश शुक्ला ने बीजेपी का दामन थाम लिया, जबकि बसपा की राम बाई अहिरवार ने अंतिम समय में बीजेपी खेमे में जाने से इनकार कर दिया था. 


इस बार कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बुंदेलखंड की सीटों पर जमकर पसीना बहाया है. इसी वजह से बीजेपी के खेमे में चिंता है. यहां भी सागर में 100 करोड़ की लागत से संत रविदास के मंदिर और स्मारक की आधारशिला रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ा गांव चल चुके हैं.


बीजेपी के सीनियर और मुखर लीडर गौरीशंकर बिसेन 7 बार के विधायक हैं. बिसेन बालाघाट की मजबूत पवार (ओबीसी के अंतर्गत) जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं. इनकी 35 फीसदी आबादी बालाघाट के अलावा महाकौशल के अन्य जिलों में भी है. बालाघाट विधानसभा सीट का जातीय समीकरण देखें तो 26 फीसदी हिस्सा लोधी समाज का है.


22 फीसदी मतदाता गवारी, कलार और कुनबी समाज से आते हैं. 6 फीसदी आदिवासी और 10 फीसदी दूसरी जाति के वोटर्स भी चुनाव में हार-जीत तय करते हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जो यहां के जाति समीकरण को साधने में सफलता हासिल करता है, उसे बड़ा सियासी फायदा होता है. चर्चा है कि गौरीशंकर बिसेन अगले चुनाव में अपनी बेटी मौसम बिसेन को मैदान में उतारना चाहते हैं.


यहां बताते चले कि कांग्रेस दिग्गज कमलनाथ मध्यप्रदेश के महाकोशल इलाके से आते है.महाकोशल में जबलपुर संभाग के आठ जिले जबलपुर, छिंदवाड़ा, कटनी, सिवनी, नरसिंहपुर, मंडला, डिंडोरी और बालाघाट हैं. यहां के परिणाम हमेशा ही चौकाने वाले रहे हैं.2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को महाकोशल इलाके से निराशा हाथ लगी थी.इसकी बड़ी वजह आदिवासियों की नाराजगी मानी गईं थी. कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था. इससे उनके गृह जिले छिंदवाड़ा की सभी 7 सीटें कांग्रेस ने जीत ली थीं.


इसी तरह महाकोशल के एपिसेंटर जबलपुर जिले में कांग्रेस को 8 में से 4 सीट मिली थी.महाकोशल के आठ जिलों की कुल 38 विधानसभा सीटों में से 24 कांग्रेस के खाते में गई थी,जबकि बीजेपी को सिर्फ 13 सीट पर संतोष करना पड़ा.एक सीट निर्दलीय ने जीती थी.वहीं,2013 के चुनाव में बीजेपी ने 24 और कांग्रेस ने 13 सीट जीती थी.उस बार भी एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी.


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