MP Election: मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले की 7 विधानसभा सीटों का परिदृश्य देखा जाए तो शहर में कांग्रेस (Congress) बेहद कमजोर दिखाई देती है, जबकि गांव में बीजेपी को वोट हासिल करना चुनौती भरा है. सातों विधानसभा सीट को लेकर इस बार समीकरण बदलने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है. इस बार कुछ उम्मीदवारों में फेरबदल की भी उम्मीद जताई जा रही है. 


विधानसभा चुनाव को अब एक साल का वक्त बचा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने कमर कसनी शुरू कर दी है. जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) बूथ तक जाकर अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर रही है. वहीं, कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के जरिए जनता में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में लगी हुई है. ऐसा माना जाता है कि उज्जैन जिले के सीटों पर यदि कांग्रेस अपना सिक्का जमाने में सफल हो जाती है तो फिर सत्ता में वापसी हो सकती है, लेकिन अगर उज्जैन की सीटें बीजेपी के खाते में चली जाती हैं तो फिर प्रदेश की सत्ता पर कमल खिल सकता है. 


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उज्जैन उत्तर विधानसभा सीट का समीकरण
उज्जैन शहर में उत्तर विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी की सबसे सुरक्षित सिर्फ मानी जाती है. यहां पर वर्तमान में पूर्व मंत्री पारस जैन विधायक के रुप में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्होंने साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भारती को 25724 मतों से हराया था. हालांकि सिंधिया समर्थक पूर्व राजेंद्र भारती अभी बीजेपी में है. वे एक बार पारस जैन को भी शिकस्त दे चुके हैं. विधायक पारस जैन की उम्र 72 साल है और वे अगले साल 73 वर्ष के हो जाएंगे. ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में उनका विकल्प भी ढूंढ सकती है, लेकिन जैन वर्तमान में भी सबसे मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे हैं. इस सीट पर कांग्रेस के पास अभी तक कोई मजबूत दावेदार दिखाई नहीं पड़ता है. हालांकि कांग्रेस की ओर से दो दर्जन से ज्यादा दावेदार हर बार दावा करते हैं.


उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट का समीकरण
उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट पर शिवराज सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव प्रबल दावेदार हैं. वे दो बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने साल 2018 में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राजेंद्र वशिष्ट को 18,960 मतों से हराया था. इस बार भी राजेंद्र वशिष्ठ और मोहन यादव के बीच मुकाबला हो सकता है. वशिष्ठ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं और अभी भारत जोड़ो यात्रा के सह समन्वयक भी हैं. हालांकि, वशिष्ठ के साथ कई और दावेदार भी दौड़ में शामिल हैं. दूसरी तरफ बीजेपी की ओर से मोहन यादव ही उज्जैन दक्षिण का चेहरा हैं. यह सीट भी बीजेपी की सुरक्षित सीट मानी जाती है.


नागदा-खाचरोद विधानसभा सीट का समीकरण
उज्जैन जिले की नागदा खाचरोद विधान सभा सीट पर कांग्रेस की ओर से काफी मजबूत चेहरे के रूप में दिलीप सिंह गुर्जर को उतारा जाता है. दिलीप सिंह गुर्जर ने साल 2018 में बीजेपी उम्मीदवार दिलीप सिंह शेखावत को 5117 मतों से हराया था. दिलीप गुर्जर पूर्व में निर्दलीय विधायक भी चुने जा चुके हैं. कांग्रेस की ओर से दिलीप गुर्जर की सीट पक्की मानी जा रही है, जबकि बीजेपी दिलीप शेखावत के साथ-साथ कुछ नए विकल्पों पर भी विचार कर सकती है.


तराना विधानसभा सीट का समीकरण
तराना विधानसभा सीट पर कांग्रेस के महेश परमार साल 2018 में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के अनिल फिरोजिया को भविष्य मतों से हरा चुके हैं. वर्तमान में अनिल फिरोजिया सांसद हैं. तराना सीट से महेश परमार का टिकट शत प्रतिशत तय माना जा रहा है, जबकि बीजेपी से अनिल फिरोजिया को विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारा जा सकता है. फिरोजिया तराना से एक बार विधायक रह चुके हैं. यहां पर बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर होती है.


घटिया विधानसभा सीट का समीकरण
घटिया विधानसभा से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामलाल मालवीय प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. विधायक रामलाल मालवीय ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू के पुत्र अजीत बोरासी को 4628 वोट से हराया था. हालांकि बाद में फिर गुड्डू कांग्रेस में चले गए. इस विधानसभा सीट में एक बार कांग्रेस और दूसरी बार बीजेपी को जनता लगातार मौका देती आई है, लेकिन इस बार कांटे की टक्कर होने के साथ-साथ यहां पर विधायक रामलाल मालवीय से पूर्व विधायक सतीश मालवी का मुकाबला हो सकता है. यह विधानसभा सीट मालवीय समाज बाहुल्य है. विधायक रामलाल मालवीय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास समर्थक है. जब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा था तो प्रस्तावक के रूप में रामलाल मालवीय उनके साथ दिल्ली गए थे. विधायक रामलाल मालवीय की हुई विधानसभा क्षेत्र में गहरी पकड़ है. यही वजह है कि वह तीसरी बार विधायक चुने गए हैं.


बड़नगर विधानसभा सीट का समीकरण
बड़नगर विधानसभा सीट पर अभी कांग्रेस का कब्जा है. यहां पर एक बार चुनाव हारने के बाद मुरली मोरवाल जीत हासिल की है. कांग्रेस के मोरवाल बीजेपी के संजय शर्मा को 5381 वोटों से हरा दिया. यहां पर बीजेपी ने साल 2018 में जितेंद्र पंड्या को टिकट देने के बाद अपना प्रत्याशी बदल दिया था, जिसकी वजह से बीजेपी में घमासान मच गया था. इस बार बीजेपी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में है. हालांकि मोरवाल भी लगातार जनता के संपर्क में है. लोगों के बीच चर्चा है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी नए चेहरों पर दांव लगा सकती है.


महिदपुर विधानसभा सीट का समीकरण
महिदपुर विधानसभा सीट पर लगातार बीजेपी के प्रत्याशी बहादुर सिंह चौहान जीतते आ रहे हैं. साल 2018 में विधायक बहादुर सिंह चौहान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश जैन बॉस को 15220 वोटों से हराया था. यहां पर कांग्रेस के बागी ही कांग्रेस के लिए हमेशा मुसीबत बन जाते हैं. साल 2018 में कांग्रेस पार्टी ने सरदार सिंह चौहान को टिकट दिया था. उन्हें 22778 वोट मिले थे. यदि कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़े तो समीकरण बदल सकते हैं. हालांकि यहां पर सोंधिया समाज का बड़ा वोट बैंक है.  इसी के चलते दोनों ही पार्टी सोंधिया समाज के दावेदारों को प्राथमिकता देती है. इस बार कांग्रेस ने दावेदारों पर दाव लगा सकती है जबकि बीजेपी एक बार फिर बहादुर सिंह चौहान के रूप में प्रत्याशी मैदान में उतार सकती है.