MP Election Result: वो पांच वजहें जिसने मध्य प्रदेश में डुबा दी कांग्रेस की नांव
Madhya Pradesh Assembly Election Results 2023: मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी एकबार फिर सरकार बनाने जा रही है तो कांग्रेस के लिए जीत अब बहुत दूर दिख रही है.
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MP Elections 2023: जिस मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में कांग्रेस को जीत की सबसे ज्यादा उम्मीद थी. वहां कांग्रेस (Congress) की नाव पूरी तरह से डूब चुकी है. बीजेपी (BJP) ने एमपी में इतिहास की सबसे बड़ी जीत हासिल की है. और इसकी तमाम वजहे हैं, जिनपर अलग से वीडियो में बात हुई है, लेकिन कांग्रेस हारी क्यों, इसको समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. चलिए आपको बताते हैं कांग्रेस के हार की पांच बड़ी वजहें...
कमलनाथ Vs दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हार की सबसे बड़ी वजह उसकी गुटबाजी है. जब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे, तीन गुट हुआ करते थे. कमलनाथ का गुट, दिग्विजय सिंह का गुट और सिंधिया का गुट. सिंधिया बीजेपी में गए, तब भी कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हुई. टिकट बंटवारे के दौरान जब एक सीट के प्रत्याशी को कमलनाथ ने कहा कि ''जाकर दिग्विजय सिंह और जयवर्धन के कपड़े फाड़ो'' तो उसने खूब सुर्खियां बटोरीं. डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी कामयाब नहीं हुई और अंतिम-अंतिम तक वोटर तो छोड़िए, कांग्रेस के कार्यकर्ता भी दोनों नेताओं के गुटों में अलग-अलग बंटे नज़र आए. और इसका असर नतीजों में साफ दिख रहा है.
कमलनाथ का सॉफ्ट हिंदुत्व
बीजेपी की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी की है. कभी बीजेपी ने इससे इनकार भी नहीं किया है. लेकिन कांग्रेस और खास तौर से कमलनाथ ने इस चुनाव में बीजेपी की पिच पर खेलने की कोशिश की. चाहे बाबा बागेश्वर का प्रवचन हो या फिर मंदिरों में पूजा-अर्चना, कमलनाथ ने सब किया. और जितना किया, उससे ज्यादा उसका प्रचार किया. लेकिन वोटर को ये बात समझ में आ गई कि अगर वोट हिंदुत्व के नाम पर देना है तो फिर सॉफ्ट हिंदुत्व को क्यों, कट्टर हिंदुत्व को क्यों नहीं. बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व और उसके कट्टर हिंदुत्ववादी नेताओं के आगे कमलनाथ का सॉफ्ट हिंदुत्व घुटने टेक गया.
सवर्ण बनाम ओबीसी की कमजोर कड़ी
अंतिम वक्त में कांग्रेस ने भले ही जातिगत जनगणना की मांग का समर्थन किया, लेकिन मध्य प्रदेश का इतिहास बताता है कि कांग्रेस एक भी ऐसा ओबीसी चेहरा नहीं खोज पाई, जिसे वो मुख्यमंत्री बना सके. इस बार भी अगर कांग्रेस जीतती तो तय था कि मुख्यमंत्री कमलनाथ बनेंगे. उनसे पहले जब कांग्रेस को मौका मिला तो दिग्विजय सिंह या फिर उससे पहले अर्जुन सिंह ही मुख्यमंत्री बने. और ये सब के सब सवर्ण हैं. वहीं बीजेपी को जब भी मौका मिला, तो उसने ओबीसी को सीएम बनाया. चाहे उमा भारती हों या फिर शिवराज सिंह चौहान. तो सोशल इंजीनियरिंग की इस लड़ाई में बीजेपी कांग्रेस पर भारी पड़ गई. वहीं एमपी में शेड्यूल ट्राइब की कुल 47 सीटें हैं. पिछली बार बीजेपी को महज 16 सीटें ही मिलीं. तो शिवराज ने सिंधिया के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद आदिवासी वोटों के लिए वादों की झड़ी लगा दी.
राहुल-प्रियंका की कमजोर अपील
यूं तो कहा जा रहा था कि 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद राहुल गांधी ने बीजेपी की ओर से बनाई गई छवि को ध्वस्त कर दिया है. प्रियंका गांधी के बारे में भी खूब बातें हुईं. और इन दोनों ने ही मध्य प्रदेश चुनाव की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी. लेकिन न तो राहुल गांधी की अपील काम आई और न ही प्रियंका गांधी वाड्रा के भाषण. राहुल-प्रियंका ने रैलियां कीं, उसमें लोग भी आए, भीड़ भी जुटी, लेकिन वो भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो सकी. दूसरी तरफ बीजेपी के स्टार प्रचारक थे, जिनमें सबके बराबर अकेले प्रधानमंत्री मोदी ही थे. रही-सही कसर गृहमंत्री अमित शाह, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा खुद शिवराज सिंह चौहान ने पूरी कर दी. और नतीजा बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के रूप में सामने है.
कांग्रेस का कमजोर मॉनिटरिंग सिस्टम
मॉनिटरिंग सिस्टम कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी है, जो हर चुनाव में सामने आ ही जाती है. प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, और शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी के बावजूद बीजेपी ने भूपेंद्र यादव जैसे कद्दावर नेता को प्रभारी बनाया. अश्विनी वैष्णव की मौजूदगी प्रदेश में ही रही. वहीं कांग्रेस में कमलनाथ ने अकेले ही संभाला. हाई कमान से ऐसा फ्रीहैंड लिया कि कमलनाथ के किसी भी फैसले पर कोई सवाल उठ ही नहीं सकता. कहने को रणदीप सिंह सुरजेवाला प्रभारी थे, लेकिन वो कमलनाथ पर कोई प्रभाव रख ही नहीं पाए. लिहाजा हाईकमान को फीड बैक वही मिला, जो कमलनाथ ने दिया. क्योंकि अगर सुरजेवाला की चली होती तो शायद समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर एमपी में उतरी होती, तो 2024 में यूपी की राह कांग्रेस के लिए थोड़ी आसान होती. लेकिन एमपी में कमलनाथ ने सपा के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी तो किस मुंह से कांग्रेस यूपी में सपा से सीट शेयरिंग की बात कर पाएगी.
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