MP Elections 2023: MP में मान-मनौव्वल के बाद भी बढ़ रही दिग्गजों की बगावत, क्या BJP के लिए मुसीबत बनेंगे ये बागी नेता?
MP Elections: बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय पर्चा भर दिया है. राजनीतिक जानकार कहते है कि इसका असर बीजेपी पर पड़ सकता है.
MP Elections 2023: मध्य प्रदेश में बड़े नेताओं की बगावत बीजेपी (BJP) के लिए बड़ी मुसीबत बनती जा रही है. इनमें कुछ इतने बड़े नाम हैं कि पार्टी को उनकी बगावत से निपटने का उपाय नहीं सूझ रहा है. बड़े केंद्रीय नेताओं और प्रदेश के संगठन की मान-मनौव्वल के बाद भी ये नेता चुनाव मैदान में डटे हैं. बता दें कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस (Congress) के तकरीबन 50 बागी मैदान में हैं. इनमें से कुछ निर्दलीय उतरे हैं तो कुछ को बसपा, सपा और आप ने टिकट दे दिया है. बीजेपी को सबसे बड़ा धक्का बुरहानपुर सीट पर लगा है.
दरअसल, बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद नंद कुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय पर्चा भर दिया है. बताते हैं कि हर्षवर्धन ने साल 2019 में खंडवा लोकसभा सीट से भी टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी ने उनके नाम पर गौर नहीं किया. राजनीतिक जानकार कहते है कि हर्ष की ताकत उनके पिता नंद कुमार चौहान की विरासत है. इसका असर स्थानीय बीजेपी पदाधिकारियों के इस्तीफे से दिख रहा है. उनकी दावेदारी से कांग्रेस उम्मीदवार के राजपूत वोटरों का बंटवारा हो सकता है. बुरहानपुर सीट पर अल्पसंख्यक और मराठा सबसे बड़े मतदाता हैं. बीजेपी से पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस और कांग्रेस से मौजूदा विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा मैदान में हैं.
सीधी पेशाब कांड के कारण कटा बीजेपी विधायक का टिकट
इसी तरह सीधी पेशाब कांड के कारण बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला को टिकट से हाथ धोना पड़ा. सीधी पेशाब कांड का आरोपी उनका समर्थक है, जो अभी जेल में बंद है. बीजेपी से टिकट कटने से नाराज केदारनाथ शुक्ला अब निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने सीधी से सांसद रीति पाठक को केदारनाथ शुक्ला की जगह चुनाव मैदान में उतारा है. यहां ब्राह्मण और वैश्य समाज के वोटर निर्णायक हैं. कांग्रेस ने यहां से ज्ञान सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. कहा जा रहा है की सीधी सीट पर मुकाबला अब त्रिकोणीय हो चुका है.
कटनी में पूर्व मंत्री मोती कश्यप ने निर्दलीय ताल ठोंकी
वहीं कटनी जिले में बीजेपी के पूर्व मंत्री मोती कश्यप भी निर्दलीय ताल ठोक कर चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. उन्होंने सुरक्षित बड़वारा सीट से अपना नामांकन दाखिल किया है. इस सीट पर कांग्रेस ने अपने विधायक विजय राघवेंद्र सिंह पर दांव लगाया है. वहीं बीजेपी ने धीरेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है. कहा जा रहा है कि मोती कश्यप की बगावत का असर आस-पास की सीटों पर भी पड़ सकता है. बड़वारा सीट पर मांझी समाज के तकरीबन 35 हजार वोटर निर्णय को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. मोती कश्यप मांझी समाज के बड़े नेताओं में शामिल हैं.
मुरैना में बीजेपी में बगावत
मुरैना से पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह और उनके बेटे राकेश सिंह ने भी बीजेपी से बगावत कर दी है. इस सीट पर सीधे तौर पर गुर्जर उम्मीदवारों की भिड़ंत है. बीजेपी ने रघुराज कंसाना को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने 2013 का चुनाव हार चुके दिनेश गुर्जर को मौका दिया है. रुस्तम सिंह यहां से अपने बेटे राकेश सिंह के लिए बीजेपी से दावेदारी कर रहे थे, लेकिन टिकट न मिलने पर राकेश सिंह गुर्जर बसपा के सिंबल पर मैदान में हैं. राकेश के पिता पूर्व आईपीएस अफसर रुस्तम सिंह बीजेपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. गुर्जर समाज में भी उनका खासा दखल है. बेटे के प्रचार की कमान रुस्तम ने संभाल रखी है. यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार विप्लव अग्रवाल का कहना है कि बगावत तो दोनों पार्टियों में है, लेकिन इस बार मुश्किल बीजेपी को ज्यादा होती दिख रही है. सत्तारूढ़ बीजेपी के पास दावेदारों की संख्या बहुत ज्यादा थी. टिकट 230 लोगों को ही दी जा सकती थी. इस वजह से कई बड़े नाम टिकट की लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए और उन्होंने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए चुनावी मैदान में कूदने का निर्णय ले लिया. हालांकि, अब यह तो 3 दिसंबर के बाद ही पता चलेगा कि बगावती नेताओं ने अपने-अपने दलों को कितना नुकसान पहुंचाया है.