MP News: बैंक मैनेजर को 'चोर' कहने के मामले में पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन को HC से राहत नहीं, चलता रहेगा मुकदमा
MP News Today: साल 2014 में जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष ने पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन पर मानहानि का केस दायर किया था. इस पर रोक लगाने के लिए पूर्व मंत्री बिसेन ने हाईकोर्ट का रुख किया था.
MP High Court on Gauri Shankar Bisen Case: जिला सहकारी बैंक के एक मैनेजर को सार्वजनिक रूप से 'चोर' कहने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन को हाईकोर्ट से झटका लगा है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ ग्वालियर की एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट में मानहानि के परिवाद को चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब उनके खिलाफ ग्वालियर की एमपी-एमएलए कोर्ट में मानहानि का लंबित मुकदमा जारी रहेगा.
दरअसल, जिला सहकारी बैंक पन्ना के तत्कालीन अध्यक्ष संजय नगायच ने 15 मई 2014 को ग्वालियर की ट्रायल कोर्ट के समक्ष बिसेन समेत पांच अन्य के खिलाफ मानहानि का परिवाद दायर किया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि बिसेन ने एक आमसभा में उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए उन्हें 'चोर' कहकर संबोधित किया था. इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हुई. मानहानि का मामला अभी एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट ग्वालियर में लंबित है.
'दुर्भावनावश दायर किया गया परिवाद'
पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने नगाइच के परिवाद को निरस्त करने की मांग को लेकर साल 2019 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. बिसेन की ओर से दलील दी गई कि उनकी शिकायतकर्ता के साथ पुरानी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है. तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि आम सभा कब और कहां हुई थी? दुर्भावनावश यह परिवाद दायर किया गया है.
दर्ज गवाहों के आधार पर हस्तक्षेप से इनकार
सुनवाई के दौरान तर्क दिया गया कि बिसेन सहकारिता मंत्री थे और उन्होंने संजय नगाइच के खिलाफ सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के मामले में कार्रवाई की थी. इसलिए पुरानी दुश्मनी के कारण मानहानि का परिवाद दायर किया गया है. वहीं, शिकायतकर्ता की ओर से दलील दी गई कि यह तय करना ट्रायल कोर्ट का क्षेत्राधिकार है कि मानहानि का परिवाद प्रचलन योग्य है या नहीं?
सुनवाई के बाद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने कहा कि परिवाद में स्पष्ट आरोप हैं कि बिसेन ने सार्वजनिक सभा में शिकायतकर्ता के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी. उनके आरोप के पक्ष में दो गवाहों ने भी बयान दर्ज कराए हैं. इस मत के साथ कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.