'माफी देना ठीक नहीं, बाल कोर्ट में हो सुनवाई', हत्यारोपी के FB पोस्ट पर एमपी हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
MP High Court Order: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्यारोपी एक किशोर से जुड़े मामले पर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान उसके एफबी पोस्ट और पुराने क्राइम का भी जिक्र किया है.
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MP News Today: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंड पीठ ने हत्या के एक मामले में आरोपी किशोर को लेकर अहम आदेश दिया है. इसके तहत आरोपी किशोर की क्राइम हिस्ट्री और फेसबुक पोस्ट का दूसरों पर हावी होने को हवाला देते हुए बाल न्यायालय में सुनवाई करने का आदेश दिया है.
इस मामले की सु्नवाई करते हुए जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा कि आरोपी के प्रति कोई भी नरमी दिखाने से उसका आचरण और खराब होगा, क्योंकि यह 'फॉल्स सिम्पैथी' को बढ़ावा देगा. न्यायालय ने पाया कि कथित घटना (फरवरी 2019) के समय किशोर आरोपी की उम्र 16 वर्ष और दो महीने थी.
'दूसरों पर हावी होने में महसूस करता है गर्व'
इस दौरान वह याचिकाकर्ता के भाई की हत्या में शामिल था. न्यायालय के सामने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि आरोपी मानसिक रूप से और कथित जघन्य अपराध करने में सक्षम था. अदालत को बताया गया कि आरोपी पर पहले भी आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जा चुका है.
आरोपी 20 दिन किशोर सुधार गृह में रह चुका है. सुनवाई के दौरान अदालत ने आरोपी के सभी फेसबुक पोस्ट को भी खंगाला, जिससे ये जाहिर होता है कि वह अपराध से पहले और बाद में अपराध करने की प्रवृत्ति रखता है और खुद दूसरों पर हावी होने में गर्व महसूस करता है.
'15 साल की उम्र से अपराध में लिप्त'
मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने आरोपी के खिलाफ बाल न्यायालय में मुकदमा चलाने की याचिका स्वीकार कर ली. कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड के 2019 और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के 2022 में पारित आदेशों को खारिज कर दिया.
कोर्ट ने कहा, "प्रतिवादी बुरी संगत में था और जब वह लगभग 15 साल का था, तब से आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है. साथ ही उसने आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम के तहत क्राइम किया. जिसके लिए उसने बच्चों के किशोर गृह में लगभग बीस दिन भी बिताए हैं.
एफबी पोस्ट पर कोर्ट ने क्या कहा?
जहां तक उसके फेसबुक पोस्ट का सवाल है, तो अदालत ने इसे आचरण और कानून के प्रति सम्मान की कमी होने का सबूत बताया है. कोर्ट ने कहा कि फेसबुक पोस्ट से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी अपनी उम्र के अन्य समान विचारधारा वाले बच्चों पर रौब जमाना चाहता है.
इसकी वजह बताते हुए कोर्ट ने 20.05.2019 को फेसबुक पोस्ट में धारा 302 का हवाला दिया है. यही वजह है कि कोर्ट ने आरोपी को लेकर बाल न्यायालय में सुनवाई करने का आदेश दिया है.
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