Dhar Bhojshala News: हिंदू समाज, धार जिले में स्थित एसआई द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी के स्मारक भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता आया है. इसको लेकर 7 अप्रैल 2003 को एएसआई ने एक अहम व्यवस्था बनाई थी. इसके तहत हिंदू समुदाय भोजशाला परिसर में मंगलवार को पूजा करेंगे और मुस्लिम समुदाय शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करेंगे. यह व्यवस्था तब से चली आ रही है. 


इस मुद्दे पर कई बार धार्मिक मुद्दे पर तनाव पैदा हुआ है. इसको लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सोमवार (11 मार्च) को धार की विवादित भोजशाला को लेकर बड़ा फैसला दिया है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने भोजशाला का एएसआई सर्वे का आदेश दिया है. कोर्ट ने इसके लिए एएसआई को पांच सदस्य टीम गठित करने के निर्देश दिया.


सामाजिक संगठन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से दायर याचिका पर ये फैसला आया है. अब आप सोच रहे होंगे कि यह पूरा विवाद है क्या? जिसको लेकर हाई कोर्ट का अहम फैसला आया है.


दरअसल, धार जिले के भोजशाला को हिंदू समुदाय देवी वाग्देवी का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम इसे कमाल मौला की मस्जिद बता रहा है. इस मुद्दे पर कई बार धार्मिक उन्माद पैदा हुआ है. खासकर जब बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ती है, क्योंकि मुस्लिम भोजशाला में नमाज अदा करते हैं और हिंदू पूजा करने के लिए कतार में खड़े होते हैं. इस विवाद को समझने के लिए आपको 1000 साल से भी पीछे जाना होगा.


हिंदू और मुस्लिम समाज कर रहा ये दावा
इतिहास के पन्नों में धार पर परमार वंश का शासन था. इस दौरान राजा भोज 1000 से 1055 ई तक धार के शासक थे. खास बात यह थी कि राजा भोज देवी सरस्वती के बहुत बड़े भक्त थे. राजा भोज ने 1034 में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की. ये महाविद्यालय बाद में भोजशाला के नाम से जाना गया. इसको लेकर हिंदू धर्म की विशेष आस्था है. 


दूसरी तरफ दावा किया जा रहा है कि अलाउद्दीन खिलजी ने कथित तौर पर 1305 ई. में भोजशाला को नष्ट कर दिया. इसके बाद 1401 ई. में दिलावर खान ने भोजशाला के एक हिस्से में एक मस्जिद बनवाई. इसके बाद मोहम्मद शाह खिलजी ने 1514 ईस्वी में भोजशाला के अलग हिस्से में एक और मस्जिद बनवाई.


अंग्रेज उठा ले गए अपने साथ प्रतिमा
इस जगह पर 1875 में खुदाई के बाद मां सरस्वती की एक प्रतिमा निकली, जिसे बाद में अंग्रेज अपने साथ लंदन उठा ले गए. यह प्रतिमा अब लंदन के संग्रहालय में है. हिंदू समाज इसको सरस्वती को समर्पित हिंदू मानते हैं.


हिंदु पक्ष का मानना है कि राजवंश के शासनकाल के दौरान सिर्फ कुछ समय के लिए मुस्लिम समुदाय को भोजशाला में नमाज की अनुमति मिली थी. वहीं मुस्लिम पक्ष इस जगह पर लंबे समय से नमाज अदा करने की परंपरा का दावा करता रहा है.


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