MP News: अंतरजातीय विवाह मामले में अभी लागू नहीं होगा धर्म स्वतंत्रता एक्ट, हाई कोर्ट ने दी अंतरिम राहत
Madhya Pradesh News: इस मामले को लेकर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है. वकील ने इसे मौलिक अधिकार का हनन बताया. जानिये वकीलों ने क्या दलील दी.
MP High Court: मध्य प्रदेश में अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अंतरजातीय विवाह कर रहा है तो फिलहाल उस पर धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 के तहत किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की जाएगी. आज शुक्रवार को हाई कोर्ट ने यह अंतरिम आदेश जारी किया. इस मामले को लेकर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है. बता दें कि अंतरजातीय विवाह पर मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 के तहत कार्रवाई हो सकती है या नहीं, इससे जुड़ी एक याचिका पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई.
हाई कोर्ट के द्वारा इस मामले में आर्डर रिजर्व कर लिया गया था. इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लागू धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई. यह अंतरजातीय विवाह पर कार्रवाई पर रोक की मांग से जुड़ा मामला है. याचिका में अधिनियम की धारा 10 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी. यह याचिका एलएस हरदेनिया और आजम खान सहित आठ लोगों की ओर से दायर कर की गई.
जज सुजय पाल और जज पीसी गुप्ता की डिविजन बेंच ने अपने अंतरिम फैसले में धारा 10 के उल्लंघन पर कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी. धारा 10 में धर्म परिवर्तन के इच्छुक को कलेक्टर को आवेदन देने की शर्त लगाई गई थी. हाई कोर्ट ने इस सिलसिले में राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है.
वकील ने मौलिक अधिकार का हनन बताया
जज सुजय पाल और जज पीसी गुप्ता की डिविजन बेंच के समक्ष याचिकाकर्ताओं के अंतरिम आवेदनों पर वरिष्ठ वकील मनोज शर्मा और हिमांशु मिश्रा सहित अन्य द्वारा बहस की गई. हाई कोर्ट को बताया गया कि यदि धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के दायरे से अंतरजातीय विवाह के बिंदु को अलग ना किया गया तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होगा. इससे स्वेच्छा से मतांतरण और धर्मनिर्पेक्षता की मूलभूत भावना भी आहत होगी.
यदि अंतरिम राहत की मांग पूरी नहीं हुई तो अंतरजातीय विवाह की सूरत में आरोप साबित होने पर विवाह शून्य होने के अलावा संबंधितों को 3 से 10 साल तक की सजा हो सकती है. शिकायतकर्ता के रूप में माता-पिता से लेकर अन्य रक्त संबंधियों को दिया गया अधिकार भी घातक साबित होगा. ऐसे में अंतरजातीय विवाद की अर्जी दाखिल करने वालों की जान को भी खतरा बना रहेगा.
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