Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सीएम हेल्पलाइन की शिकायत वापस लेने के मामले में पुलिस विभाग के रवैये पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने पक्षकारों को नोटिस जारी करते हुए पुलिस अधीक्षक नरसिंहपुर से इतने गंभीर आरोपों के मामले में शपथ पत्र में जवाब मांगा गया है. इस मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी. दरअसल, पूरा मामला नरसिंहपुर जिले का है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विशाल बघेल के मुताबिक पुलिस ने दुर्भावनापूर्ण ढंग से उनके मुवक्किल का मोबाइल जब्त कर उसके फोन से सीएम हेल्पलाइन की शिकायत वापस ले ली.
नरसिंहपुर निवासी अभिषेक राय ने याचिका दायर कर बताया कि उसके दो रिश्तेदारों का फर्जीवाड़ा उजागर करने और उनसे प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए अवैध लाभ की शासकीय राशि की वसूली करवाने से खिन्न होकर यह षड्यंत्र किय गया. रिश्तेदारों ने पुलिस से मिलीभगत कर उनके खिलाफ दुर्भावनावश दो झूठे अपराधिक प्रकरण दर्ज करवाए गए थे. इसकी कोई जानकारी याचिकाकर्ता को नही थी. 21 जून 2022 को नरसिंहपुर के थाना कोतवाली पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता को एक लंबित शिकायत में एफआईआर दर्ज करने का आश्वासन देकर फोन करके बुलाया गया था.
झूठे आरोपों में किया गया गिरफ्तार
याचिकाकर्ता जैसे ही थाने पहुंचा उसके मामले में तो शिकायत दर्ज कर उसे एफआईआर की कॉपी प्रदान की गई, लेकिन उसके तुरंत बाद उसे दो अन्य झूठे अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान थाना कोतवाली पुलिस द्वारा उसका मोबाइल फोन जब्त कर सीएम हेल्पलाइन की शिकायत का निराकरण बताने का षडयंत्र किया गया. उसके मोबाइल के माध्यम से सीएम हेल्पलाइन नंबर 181 में फोन कर आवेदक द्वारा की गई एक अन्य शिकायत को पुलिस द्वारा दर्ज निराकरण से सहमति व संतुष्टि व्यक्त करते हुए बंद करा दिया गया. इसके बाद आवेदक को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जमानत मिल गई.
मोबाइल से पूरा डेटा डिलीट
जमानत मिलते ही पुलिस द्वारा मोबाइल वापस लौटाते हुए उससे पावती ले ली गई और गिरफ्तारी प्रपत्र में मोबाइल लौटाने की बात का उल्लेख कर दिया गया. जब याचिकाकर्ता ने अपना मोबाइल देखा तो उसका पूरा डेटा डिलीट कर दिया गया था. याचिकाकर्ता के कॉल स्टेटमेंट से गिरफ्तार रहने के समय सीएम हेल्पलाइन में उसके मोबाइल से ही फोन लगा कर शिकायत बंद करने का खुलासा हुआ. इसके बाद आवेदक द्वारा पूरे घटनाक्रम की शिकायत पुलिस मुख्यालय से लेकर गृह मंत्रालय तक की गई, लेकिन जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. इसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा हाई कोर्ट की शरण ली गई.