MP High Court: निचली अदालत के इस अजब फैसले पर हाई कोर्ट ने दिखाई सख्ती, न्यायिक अधिकारी से जवाब तलब
MP HC News: मारपीट के आरोपियों को दोषी मानते हुए उन पर लगाया गया जुर्माना बढ़ा दिया था, लेकिन दोषियों को कोई सजा नहीं सुनाई. हाई कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताया और अपर सत्र न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगा.
MP News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (MP High Court) ने निचली अदालत के अजब फैसले पर जवाब तलब किया है. हाई कोर्ट ने एक क्रिमिनल केस (Criminal Case) में दोषी होने के बावजूद आरोपियों को सजा (कारावास) नहीं देने के मामले में छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा में पदस्थ तत्कालीन अपर सत्र न्यायाधीश निशा विश्वकर्मा से स्पष्टीकरण मांगा है. अदालत ने इसके साथ ही इस मामले को हाई कोर्ट की संबंधित कमेटी के समक्ष विचारार्थ पेश करने को कहा है.
हाई कोर्ट ने क्या निर्देश दिए हैं
जस्टिस अंजुली पालो की सिंगल बेंच ने हाई कोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिए हैं कि न्यायिक अधिकारी निशा विश्वकर्मा से स्पष्टीकरण तलब कर उनका मामला हाई कोर्ट की संबंधित कमेटी के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करें. इसके साथ ही, हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अपर सत्र न्यायाधीश का यह आचरण बेहद आपत्तिजनक है. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार कर अनावेदक चारों आरोपियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर उन्हें दो मार्च को हाजिर होने के निर्देश भी दिए हैं.
दरसअल,छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा निवासी बृजराज कुमारी,बाबूलाल और अन्य ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील प्रस्तुत की थी.अपीलार्थियों की ओर से अधिवक्ता ब्रम्हानंद पांडे ने बताया कि आरोपियों रामप्रसाद,कालेश,गोलू उर्फ अरविंद और लता बाई ने अपीलार्थियों पर हमला किया था.ट्रायल कोर्ट ने चारों आरोपियों को एक वर्ष का कारावास व जुर्माने की सजा सुनाई थी.
क्या है पूरा मामला
अमरवाड़ा की तत्कालीन अपर सत्र न्यायाधीश निशा विश्वकर्मा ने अपील पर सुनवाई के बाद चारों आरोपियों को दोषी तो करार दिया,लेकिन उन्हें सजा नहीं दी.केवल जुर्माने की राशि बढ़ा दी.अधिवक्ता पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत का हवाला देते हुए कहा कि भादंवि की धारा 325 में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि पीड़ित को गंभीर चोटें आई हैं तो आरोपी को जमानत के साथ एक निश्चित अवधि की सजा जरूर होनी चाहिए.इस मामले मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यह विधि का प्रस्थापित सिद्धांत है कि अपराध की गंभीरता के अनुपात में आरोपी को कारावास की सजा मिलनी चाहिए.
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