Makar Sankranti 2023: जबलपुर के तिलवारा घाट का इतिहास, यहां 1100 साल से लग रहा संक्रांति मेला, जानें मान्यताएं
Makar Sankranti Mela: ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे के मुताबिक इस साल 15 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी. संक्रांति में सकारात्मक प्रभाव से व्यापारी वर्ग को लाभ होगा.
Makar Sankranti Fair Jabalpur: भगवान सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी की रात्रि या 15 जनवरी की भोर से शुरू हो रहा है. मध्य प्रदेश में यूं तो नर्मदा किनारे जगह-जगह मकर संक्रांति का मेला लगता है, लेकिन जबलपुर के तिलवारा घाट की बात कुछ अलग है. तिलवारा घाट में त्रिपुरी राजवंश के समय से यानी करीब 11 साल से अलग-अलग स्वरूप में मकर संक्रांति का मेला लग रहा है. इतिहासकार आनंद राणा कहते हैं कि इस दिन नर्मदा जी में तिल वारने (अर्पित करने) की परंपरा से ही इसका नाम तिलवारा घाट पड़ा है. ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे के मुताबिक इस साल 15 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी. संक्रांति में सकारात्मक प्रभाव से व्यापारी वर्ग को लाभ होगा.
नर्मदा नदी का महत्व
तिलवारा घाट के सदियों पुराने संक्रांति के मेले के ऐतिहासिक पक्ष पर बात करने से पहले आपको नर्मदा नदी का महत्व बताते हैं. कहा जाता है कि गंगा में डुबकी लगाने का जो महत्व है, वही महत्व नर्मदा के दर्शन मात्र में है. नर्मदा से जीवन मिलता है, नर्मदा से मोक्ष मिलता है और नर्मदा से ही आरोग्य मिलता है, इसीलिए मध्य प्रदेश में नर्मदा पूज्यनीय है. नर्मदा तट हमेशा से ऋषि-मुनियों की साधना स्थली रही है. बता दें कि नर्मदा नदी का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश का अमरकंटक है, वहीं यह गुजरात के भरूच जिले में जाकर खंभात की खाड़ी में समाहित हो जाती है.
मध्य प्रदेश में जगह-जगह नर्मदा तट पर जगह-जगह मकर संक्रांति का मेला भरता है. उत्तर और मध्य भारत में इसे खिचड़ी का त्योहार भी कहा जाता है. इस दिन श्रद्धालु पवित्र नर्मदा नदी में डुबकी लगाकर तिल और खिचड़ी का भोग लगाते हैं. इन सबमें जबलपुर के तिलवारा घाट का संक्रांति का मेला बेहद खास और ऐतिहासिक है. यहां 1100 साल से संक्रांति मेला भरने का इतिहास मिलता है.
तिलवारा घाट का इतिहास
इतिहासकार डॉ आनंद राणा कहते है कि कलचुरि राजवंश के युवराज देव प्रथम (वर्ष 915-945) बड़े प्रतापी राजा था. राजा युवराज देव का विवाह दक्षिण के चालुक्य वंश के राजा अवनि वर्मा की बेटी नोहला देवी से हुआ था. कहते हैं कि नोहला देवी शिव उपासक थीं और नर्मदा शिव की पुत्री हैं. जनश्रुति है कि नोहला देवी तिलवारा घाट पर मकर संक्रांति पर तिल वारने आती थी. यह भी मान्यता है कि नर्मदा तट पर सूर्य को तिल अर्पण करने से मां नर्मदा के वाहन मकर के कष्टों का निवारण होता है. इससे मां नर्मदा प्रसन्न होकर भक्तों को सुख-समृद्धि का प्रतिफल देती हैं. इसी मान्यता के कारण मकर संक्रांति पर तिलवारा घाट में मकर संक्रांति का मेला भरने लगा. यहां हर साल लाखों की संख्या में लोग 14 जनवरी को आस्था की डुबकी लगाते है. इसके साथ ही तिल-गुड़ और खिचड़ी की सामग्री का दान करते हैं.
पौराणिक मान्यता है कि जनवरी माह के मध्य में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, जिसमें सूर्य मकर राशि में आते हैं. मगरमच्छ को संस्कृत में मकर कहा जाता है. मकर मां नर्मदा का वाहन है और मकर राशि का स्वामी शनि है. जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तो मकर को कष्ट होता है, जिसके निवारण के लिए शनि ने सूर्य भगवान को तिल अर्पण किया था. धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सूर्य को तिल अर्पण करने से शनि प्रसन्न होते हैं. इसलिए नर्मदा के तिलवारा घाट में विशेष रूप से तिल का दान किया जाता है.
कब शुभ होगा मकर संक्रांति का स्नान
ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे के अनुसार हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है. इस दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं. इस दिन पवित्र नदी में स्नान और उसके पश्चात दान किया जाता है.
वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल यानि 2023 में मकर संक्रांति शनिवार 14 जनवरी को मनाई जाएगी. इस दिन रात्रि 3:11 पर मकर संक्रांति अर्की है. 15 जनवरी को सूर्योदय से प्रातः 11:11 तक पुण्य काल रहेगा. इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी नहीं, बल्कि 15 जनवरी को मनाई जाएगी. इस साल 14 जनवरी की अर्ध्य रात्रि में माघ मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो रहा है. इसलिए पुण्य काल 15 जनवरी को अष्टमी तिथि पर सुबह से रहेगा.
आइए जानते हैं मकर संक्रांति के दिन किन चीजों का दान करना चाहिए. मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद गरीब और जरूरतमंद को काले तिल का दान करने से शनि दोष दूर होता है. 15 जनवरी को स्नान, दान, जप, तुलादान, गौदान, स्वर्णदान, वृक्षारोपण करना शुभ होगा.