भारत भले ही आधुनिक और विश्व का सकारात्मक रूप से चर्चित देश हो गया हो लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ जिले के हजारों आदिवासी आने वाले साल में बारिश के मौसम का हाल का हाल जानने के लिए एक अंध विश्वासी परंपरा पर ही यकीन करते है. दरअसल यह तरीका आपको हैरान व परेशान कर सकता है. सोचने पर मजबूर कर सकता है कि इस आधुनिक युग में भी ऐसा होता है. पहाड़ी पर 20 हजार से अधिक आदिवासियों के बीच भैंसे की बलि के बाद उसका धड़ पहाड़ से नीचे फेंका जाता है. 


मान्यता यह है कि यह भैंसे के धड़ की दूरी और उसकी रफ्तार आगामी बरसात के मौसम को तय करती है. 50 से अधिक गांवों के लोग इसको देखने के लिए यहां पहुंचते हैं. मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले के चुई गांव की एक पहाडी पर जुटे यह हजारों आदिवासी सरकार के मौसम को बताने वाले सेटेलाइट से इतर यहां अपने तरीके से आने वाले साल मे बारिश कैसी होगी यह जानने के लिए जुटते है. असल मे यहां एक भैंसे की पूजा-पाठ के बाद बलि दी जाती है और भैंसे के धड़ को लुढ़काया जाता है. तय मानक दूरी कितनी तय करता है इस पर आदिवासी समाज के बुजुर्ग एलान करते हैं कि आने वाले साल मे बारिश कैसी होगी और फसल के साथ क्षेत्र में बीमारी होगी या सब कुछ अच्छा रहेगा.


वहीं इस आयोजन में शिरकत करने आए सागर सिंह कनेश का कहना है कि हमारे बाप दादा के समय से होता आ रहा है अब अब हम देख रहे है. यहां पर ऊपर एक भैंसे को बांधा गया फिर मंत्रोचार किए गए जिसके बाद उसकी बलि चढ़ाई और उसे बाहर से फेंका गया मान्यता है कि अगर बीच नहीं है शाहरुख जाएगा तो बारिश रुक जाएगी और नीचे तेजी से जितना आएगा उतनी ही बारिश होगी. बता दें की इस पूरे आयोजन में पहाड़ी पर महिलाओं का प्रवेश नही होता है वो पहाड़ी के नीचे से इस आयोजन को निहारती है. इस बार भैंसा धीरे धीरे नीचे आया इस कारण ये कहा जा रहा है कि बारिश औसत और ठीक ठीक होगी. हजारों लोग इस कार्यक्रम को देखने आते हैं.


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