MP Politics News: गुजरात, हिमाचल प्रदेश और एमसीडी चुनाव के बाद अब सियासी दलों की नजर साल 2023 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव है. जहां तक मध्य प्रदेश की बात है तो वहां पर बीजेपी की सरकार है. शिवराज सिंह चौहान वहां के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव किसके नाम पर लड़ा जाएगा, इसको लेकर माथापच्ची का गेम अभी से शुरू हो गया है.
सीएम होने के नाते शिवराज सिंह प्रबल दावेदारों में से एक हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की नजर में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी को भी नकारा नहीं जा सकता है. हालांकि, ग्वालियर के महाराज की राह में केवल शिवराज ही नहीं बल्कि नरेंद्र तोमर, नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय, बीडी शर्मा सहित बीजेपी के कई दिग्गज नेता हैं, जो रोड़ा बन सकते हैं.
अभी उन्हें विकल्प बनने के लिए बहुत कुछ करना होगा
दरअसल, एमपी विधानसभा की 230 सीटें हैं. नवंबर 2023 में यहां विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. यहां नवंबर से पहले चुनाव कराए जाने की संभावना है. साल 2018 में मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई थी. सियासी जोड़तोड़ के जरिए सवा साल के बाद ही कमलनाथ सरकार गिर गई और ज्योतिरादित्य के सहयोग से शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बन गई. उसके बाद से ज्योतिरादित्य सिंधिया सीधे पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नजर आ गए हैं. दोनों से उनकी बढ़ी नजदीकियां जगजाहिर हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि वो इतने आसानी से आगामी विधानसभा चुनाव में सीएम फेस बन जाएंगे और चुनाव जीतने पर सीएम भी बन जाएंगे. वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें बहुत कुछ करना होगा.
ये हैं ज्योतिरादित्य के सामने चुनौतियां
1. वर्तमान में एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान हैं, वे खुद भी सीएम पद के दावेदार हैं. उनकी भी केंद्रीय नेतृत्व तक सीधे पहुंच है.. फिर शिवराज का एमपी में अपना जनाधार है. अगर शिवराज को अलग कर भी दें तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, बीडी शर्मा, पार्टी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय सहित एमपी बीजेपी के कई नेता हैं जो सीएम पद के दावेदार हैं. इन लोगों को सीएम पद की रेस में पीछे छोड़े बगैर वो सीएम नहीं बन सकते.
2. ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य मूल रूप से कांग्रेसी रहे हैं. 2018 विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में उपेक्षा का शिकार होने के बाद उन्होंने बीजेपी में शामिल होने का अहम फैसला लिया था, लेकिन उनकी संघ परिवार में पकड़ नहीं है. एमपी में संघ का मजबूत किला है. कहा जाता है एमपी में सीएम का फेस वही बनता है, जिसे आरएसएस का आशीर्वाद हासिल हो. इस मामले में सिंधिया बहुत पीछे हैं.
3. ये बात सही है कि एमपी बीजेपी सरकार के 30 मंत्री उनके संपर्क में हैं, लेकिन उन्हें सर्वमान्य चेहरा के रूप में उभरने के लिए बीजेपी संगठन के प्रदेश, जिला स्तर के नेताओं का भी समर्थन हासिल करना होगा. केंद्रीय नेतृत्व का पक्ष में होना तो पहली शर्त है. क्या महाराज इन सभी को अपने साध पाएंगे.
4. सीएम फेस बनकर उभरने के लिए उन्हें पूरे एमपी के नेता वाला कद हासिल करना होगा. हालांकि, इस बाधा को वो कुछ प्रयासों के बाद पार पा सकते हैं. ऐसा इसलिए कि एमपी के अधिकांश क्षेत्रों में लोग व पार्टी के कार्यकर्ता बेहतर नेता मानते हैं.
5. विधानसभा चुनाव अधिकांशतया प्रदेश स्तरीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं. अगर प्रदेश में सरकार के खिलाफ माहौल बनता है तो क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया एंटी इनकंबेंसी को रोक पाएंगे. एमपी के मतदाताओं को अपनी छवि के आधार पर बीजेपी के करीब ला पाएंगे.
सिंधिया के पक्ष में है ये बातें
1. फरवरी 2022 में ग्वालियर में जैन मुनि विहर्ष सागर महाराज ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जल्द ही मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने वाले हैं. उनकी इस बात पर काफी चर्चा भी हुई थी.
2. राजनीतिक नजरिए से देखें तो सिंधिया 2 साल में बीजेपी में 4 प्रमोशन पा चुके हैं. पहला ये कि वो अपने चहेतों को शिवराज मंत्रिमंडल में शामिल कराने में सफल रहे हैं. दूसरी बात ये कि वो सांसद बीजेपी में आने के बाद बने. इसके बाद बीजेपी राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल कराया. अंतिम प्रमोशन ये कि पीएम मोदी ने उन्हें न केवल अपने कैबिनेट में बतौर मंत्री शामिल किया, बल्कि अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी है.
3. बीजेपी में शामिल होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया विधानसभा उपचुनाव, स्थानीय निकय चुनावों में अपना असर छोड़ने में कामयाब रहे हैं.
4. पैदाईशी और वैचारिक धरातल पर मूल रूप से कांग्रेसी होने के बावजूद उन्होंने एमपी संगठन के नेताओं के बीच भी अपनी पकड़ तेजी बनाई है. इस काम में वो कइयों को पीछे छोड़ चुके हैं.
5. अब बीजेपी में उनके कद का अंदाजा इसी से लागया जा सकता है कि मध्य प्रदेश के गुना में नगरपालिका अध्यक्ष समेत 5 पार्षदों को भारतीय जनता पार्टी ने निष्कासित कर दिया गया है. बताया जाता है कि निकाय चुनाव के दौरान पार्टी से बागी होकर बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने की वजह से इन 6 नेताओं से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया नाराज थे और उनकी नाराजगी इन 6 नेताओं को भारी पड़ गई.
विधानसभा चुनाव 2023 सिंधिया के लिए अग्निपरीक्षा
करीब ढ़ाई साल पहले बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी में उनकी पकड़ को देखते हुए ये तो कहा जा सकता है कि सारी बातें सिंधिया के अनुकूल हैं, लेकिन उनकी असली पहचान तब होगी, जब अगले साल एमपी में विधानसभा चुनाव होंगे. उस समय पता चलेगा कि उनको कितना वजन बीजेपी देती है. साथ ही उस चुनाव के परिणाम पर भी उनका भविष्य निर्भर करता है. विधानसभा उपचुनाव में तो सिंधिया समर्थक जीत गए, लेकिन अगले चुनाव में यह देखना होगा कि क्या सिधिंया अपने समर्थकों को जितनी टिकट कांग्रेस में रहते दिलाते थे, उतनी आगे दिला पाएंगे?
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