Madhya Pradesh Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश में पहले चरण की 6 सीटों पर चुनाव प्रचार के लिए चार दिन तो मतदान को सिर्फ 6 दिन बचे हैं. यहां मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. दोनों ही दलों ने जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. सूबे में बीजेपी सरकार का नया फेस डॉ मोहन यादव और कांग्रेस में पार्टी के नए नेतृत्व जीतू पटवारी के कंधों पर लोकसभा चुनाव की पूरी जिम्मेदारी है.


मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं, जिनमें से छह पर पहले चरण में 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. जबलपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट, मंडला, सीधी और शहडोल संसदीय सीट में 17 अप्रैल को शाम 5 बजे चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा. हालांकि, महाकौशल और विंध्य इलाके की इन 6 सीटों पर चुनाव प्रचार के लिए बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और कांग्रेस की ओर से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी रैलियां कर चुके हैं. 


लेकिन, चुनावी लड़ाई का असल मोर्चा मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने संभाल रखा है. दोनों नेता अभी तक 40 से अधिक विधानसभा सीटों पर रैलियां या रोड शो कर चुके हैं.


साल 2014 में 25 और 2019 में 28 सीटों पर मिली थी जीत
गौरतलब है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सूबे की 29 में से 28 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस केवल कमलनाथ के प्रभुत्व वाली लोकसभा सीट पर बीजेपी को परास्त कर सकी थी, जहां से उनके पुत्र नकुलनाथ निर्वाचित हुए थे. वही, साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को 25 और कांग्रेस को चार सीटें मिली थी.


साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 29 तो कांग्रेस 28 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रही है. खजुराहो सीट को कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के अपने सहयोगी समाजवादी पार्टी को दिया था. लेकिन यहां पर समाजवादी पार्टी की कैंडिडेट मीरा यादव का प्रचार निरस्त होने के बाद अब इंडिया गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति है.


जीत-हार का क्रेडिट नए नेतृत्व के हिस्से में आएगा
उधर, मध्य प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ओर से जीत-हार का क्रेडिट नए नेतृत्व के हिस्से में आएगा. पिछले कई सालों से बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ चुनाव अभियान की अगुवाई करते थे.


नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद बीजेपी की सरकार और कांग्रेस के संगठन में नेतृत्व नए हाथों में चला गया. पुरानी पीढ़ी के नेता या तो अपने निर्वाचन क्षेत्र में उलझे हुए हैं या फिर उनका चुनाव अभियान से दूर रखा गया है.


बेटे के जीत के लिए बहा रहे है पसीना
विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों ही दलों के क्षत्रप शिवराज सिंह चौहान, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और कांतिलाल भूरिया इस बार सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्र में सिमट कर रह गए हैं. शिवराज सिंह चौहान, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जहां खुद लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं छिंदवाड़ा में कमलनाथ अपने पुत्र नकुल नाथ को जीत दिलाने के लिए पसीना बहा रहे हैं.


हालांकि, शिवराज सिंह चौहान ने अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा के साथ होशंगाबाद और छिंदवाड़ा में भी बीजेपी उम्मीदवार के लिए कुछ चुनावी सभाएं की हैं. अगर बात 6 महीने पहले विधानसभा चुनाव की करें तो शिवराज सिंह चौहान ने 200 से ज्यादा सभाएं और रैलियां की थी.


बीजेपी के सभी वरीष्ठ दिख रहे है सक्रिय
बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान की जगह अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हर दिन प्रदेश के किसी ने किसी सीट पर रैली, सभा और रोड शो करने पहुंच रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा खजुराहो से चुनाव लड़ते हुए आसपास की लोकसभा सीटों पर भी प्रचार में सक्रिय हैं. नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल भी महाकोशल इलाके में सक्रिय है.


वहीं, कांग्रेस में प्रदेश स्तर पर प्रचार का सर्वाधिक दारोमदार प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी पर ही है. उनके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा भी सामूहिक दौरे कर रहे हैं. प्रदेश मुख्यालय पर पार्टी के कार्यक्रमों में भी यही चारों नेता प्रमुख रूप से नजर आ रहे हैं.


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