MP Lok Sabha Elections 2024: 'किस्सा ए सियासत' में आज हम बात करेंगे दिल्ली के लुटियंस जोन के एक बंगले की जिसकी खातिर कांग्रेस के एक दिग्गज नेता को अपने राजनीतिक जीवन में एक मात्र हार का सामना करना पड़ा. दरअसल, साल 1997 में कमलनाथ (Kamal Nath) को सांसद न रहने के चलते दिल्ली के लुटियंस जोन के 7 तुगलक रोड के बड़े बंगले को खाली करने का नोटिस मिल गया.
कहते हैं कि कमलनाथ ने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी के नाम एलॉट हो जाए लेकिन उनकी पत्नी अलकनाथ पहली बार सांसद बनीं थीं. इस वजह से बड़ा बंगला नहीं मिल सका. कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने तैयार नहीं थे. बंगले की खातिर कमलनाथ ने अलकानाथ से लोकसभा से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा (Chhindwara) में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए. इसके बाद जो हुआ,वो इतिहास बन गया.
वो साल 1997 का मार्च-अप्रैल का महीना था. गर्मी दस्तक देने लगी थी.इसी समय मध्यप्रदेश की राजनीति भी उबाल मार रही थी. यहां लोकसभा का एक ऐसा उप चुनाव होने जा रहा था,जिस पर पूरे देश की नजर थी. 1952 से कांग्रेस की अजेय सीट पर इंदिरा गांधी के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कमलनाथ ने अपनी सांसद पत्नी को इस्तीफा दिलाकर उप चुनाव की राह पकड़ी थी.1980 से लगातार चार बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से सांसद कमलनाथ आत्मविश्वास से लबरेज थे. किसी को आभास नहीं था कि छिंदवाड़ा की जनता के मन में क्या पक रहा है? लेकिन, नामांकन जमा करने से एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी ने इतना बड़ा दांव चल दिया जो आज भी कमलनाथ के उजले राजनीतिक कैरियर में एक दाग की तरह है.
1997 का उपचुनाव रहा चर्चा का केंद्र
मध्य प्रदेश के चुनावी समर के तमाम ऐसे किस्से है,जिनकी चर्चा आज भी राजनीतिक गलियारों में होती है.एक ऐसा ही किस्सा 1997 के छिंदवाड़ा सीट के लोकसभा उप चुनाव का है. उससे पहले जानते है कि उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक का कमलनाथ का सफर कैसा रहा. साल 1979 में कमलनाथ ने मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबला करने में कांग्रेस की मदद की थी.
कमलनाथ, संजय गांधी के हॉस्टलमेट थे और आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई की सरकार में उनके लिए जेल भी गए थे. उन्हें इंदिरा गांधी अपना तीसरा पुत्र मानती थीं. तभी 1980 में उन्हें 1952 से छिंदवाड़ा से लगातार सांसद रहे गार्गी शंकर मिश्र का टिकट काटकर कमलनाथ को मैदान में उतारा गया था.1977 के आम चुनाव में सेंट्रल इंडिया से कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा की एक सीट जीती थी. गार्गी शंकर मिश्र जनता लहर में भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्य प्रदेश: राजनेताओं के किस्से' में लिखते हैं कि चार बार लगातार चुनाव जीतते आ रहे कमलनाथ को साल 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया. उन्होंने अपनी पत्नी अलका नाथ को चुनाव मैदान में उतार दिया. छिंदवाड़ा में अपने व्यापक जनाधार के कारण कमलनाथ पत्नी अलका नाथ को चुनाव जिता ले गए.
फिर अचानक आया ट्विस्ट
कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब कमलनाथ को दिल्ली में सांसद रहने के चलते लुटियंस जोन में मिला बड़ा बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया. कमलनाथ ने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी अलका नाथ के नाम एलाट हो जाए. उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं,जिसके कारण बड़ा बंगला नहीं मिल सका. उधर,कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने तैयार नहीं थे.इस बंगले की खातिर उन्होंने अपनी पत्नी से संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए.तब तक वे हवाला कांड के दाग से बरी भी हो चुके थे.
जीत को लेकर आश्वस्त थे कमलनाथ
छिंदवाड़ा के बाहर लगभग सभी को लग रहा था कि कमलनाथ पांचवीं बार लोकसभा के सदस्य बनने वाले हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे. सरकार होने का फायदा भी उन्हें मिलने की पूरी उम्मीद थी. भारी ताम झाम के साथ कमलनाथ ने अपना नामांकन दाखिल किया और दावा किया कि चुनाव में जीत सुनिश्चित है. इसी बीच नामांकन से पहले भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव चलते हुए अपने मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता सुंदरलाल पटवा को कमलनाथ के खिलाफ छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतार दिया.
पत्नी से इस्तीफा दिलवाने से नाराज थी जनता
पार्टी ने अपने फैसले को बेहद गोपनीय रखा था. दोनों पार्टियों की ओर से देशभर के तमाम दिग्गज नेता चुनाव प्रचार के लिए छिंदवाड़ा पहुंचने लगे. इस चुनाव की कवरेज के लिए छिंदवाड़ा गए वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे बताते हैं कि बीजेपी ने यह मुद्दा बना दिया कि जब अलका नाथ यहां से सांसद थी तो उन्हें इस्तीफा दिलाकर फिर से नया चुनाव कराने की क्या आवश्यकता थी? यह बात मतदाताओं को इतनी अपील कर गई कि उन्होंने भी तय कर लिया कि यह चुनाव कमलनाथ को हरवाना है. लोग कहते भी थे इस बार कमलनाथ को हरवा देंगे,भले अगली बार उन्हें फिर से जीत कर छिंदवाड़ा का सांसद बना देंगे.
मतदान करीब आते खिसक गई कमलनाथ की जमीन
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि छिंदवाड़ा में जैसे-जैसे मतदान की तिथि पास आती जा रही थी,वैसे-वैसे चुनावी मैदान में कमलनाथ की जमीन की खिसकती नजर आने लगी थी. कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ से बाहुबलियों का डेरा भी छिंदवाड़ा में डाल गया था. सरकार को इंटेलिजेंस की तरफ से लगातार रिपोर्ट मिल रही थी कि मतदान के दिन बड़े पैमाने पर हिंसा और गड़बड़ी हो सकती है.काशीनाथ कहते हैं कि तब के एडीजी इंटेलिजेंस ए एन सिंह के मशविरे पर मतदान के दिन जिले भर में चार पहिया वाहनों को सड़क में उतारने पर रोक लगा दी गई.इससे हुआ यह कि जो जहां था,वहीं फंसा रह गया.
बीजेपी दिग्गज पटवा ने छिंदवाड़ा में पार्टी के कैडर, नेतृत्व कौशल, चुनाव प्रबंधन और वक्तृत्व कला से माहौल पूरी तरह अपने पक्ष में कर लिया.जब नतीजा घोषित हुआ तो वो कमलनाथ के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. 73 साल के पटवा ने कमलनाथ को 38 हजार से ज्यादा मतों से परास्त कर दिया. हालांकि,1998 के आम चुनाव में कमलनाथ ने बड़े अंतर से सुंदर लाल पटवा को पराजित करके अपनी हार का बदला ले लिया. इसके बाद कमलनाथ की छिंदवाड़ा पर पकड़ कभी ढीली नहीं हुई.
बीजेपी की लहर के बीच भी जीत गए कमलनाथ के बेटे
अपने जीवन की एकमात्र हार ने कमलनाथ को आत्मावलोकन को मजबूर किया.उन्होंने लगातार दौरे करके लोगों से मुलाकात की और अपनी हार की वजह जानी.इन गलतियों से सबक लेकर कमलनाथ फिर से छिन्दवाड़ा के अपराजेय योद्धा बन गए.यहां तक की 2019 की मोदी लहर में कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की 29 में से जो एक सीट जीती थी,वह छिंदवाड़ा थी.यहां से कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ ने जीत हासिल की थी.
कमलनाथ 9 बार रहे सांसद
1980-1884
1984-1988
1989-1981
1991-1996
1998-1999
1999-2004
2004-2009
2009-2014
2014-2018
1996-1997 (पत्नी अल्कानाथ जीतीं)
2019-2024 (पुत्र नकुल नाथ जीते)
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