MP: मध्य प्रदेश में नगरीय और पंचायत चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के बगैर आरक्षण के चुनाव कराने का फैसला सुनाया. इन चुनाव और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पिछड़ा वर्ग के वोटों का गणित अहम है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते शिवराज सरकार बैकफुट पर खड़ी है. कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर चारों तरफ से हमला कर दिया है. 


अपनी सरकार के बचाव में आये मंत्री भूपेन्द्र सिंह


अपनी सरकार के बचाव में आये हैं पिछड़ा वर्ग के कद्दावर नेता नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण के संबंध में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन दायर करके पुनः अदालत से आग्रह करेगी कि मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव सम्पन्न हों.


मंत्री सिंह ने यह भी कहा कि वर्तमान परिस्थिति कांग्रेस के कारण निर्मित हुई है. मध्य प्रदेश में तो 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव प्रक्रिया चल ही रही थी. कांग्रेस ही इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट गई और महाराष्ट्र की नजीर वहां प्रस्तुत की.


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600 पेज की रिपोर्ट प्रस्तुत


मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने जारी एक बयान में कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने संवैधानिक आयोग बनाकर 600 पेज की जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की उसमें प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों के साथ एरिया वाईज संख्या के आंकड़े विस्तृत रूप से प्रस्तुत किए थे. जिसमें बताया गया था कि 48 फीसदी से ज्यादा ओबीसी मतदाताओं की औसत संख्या मध्य प्रदेश में है.


कुल मतदाताओं में से अजा/जजा के मतदाताओं के अतिरिक्त शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या 79 फीसदी है. यह भी आयोग की रिपोर्ट में पेश किया गया था. आयोग ने स्पष्ट अभिमत दिया था कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों और समस्त नगरीय निकाय चुनावों के सभी स्तरों में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को कम से कम 35 फीसदी स्थान आरक्षित होना चाहिए.


उन्होंने कहा कि वह कमलनाथ सरकार ही थी जिसने विधानसभा में 8 जुलाई 2019 को मध्य प्रदेश लोकसेवा आरक्षण संशोधन विधेयक में यह भ्रामक और असत्य आंकड़ा प्रस्तुत किया कि अन्य पिछड़े वर्ग की मध्य प्रदेश में कुल आबादी सिर्फ 27 फीसदी है. यह कांग्रेस का वह असली ओबीसी विरोधी चेहरा है जो मध्य प्रदेश की विधानसभा के दस्तावेजों में सदैव के लिए साक्ष्य बन गया है.


कांग्रेस पर लगाए ये आरोप


उन्होंने कहा कि प्रदेश की बीजेपी सरकार ने विधानसभा में यह संकल्प पारित कराया कि बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव नहीं होना चाहिए. इसके लिए सरकार अध्यादेश तक लेकर आई थी. लेकिन कांग्रेस ने हमेशा की तरह क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थ में पूरे प्रकरण को अपने याचिकाकर्ताओं जया ठाकुर और सैयद जाफर के माध्यम से न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर ओबीसी हितों को कुचलने का काम किया है.


मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी के लाभार्थिंयों को आरक्षण का उचित अनुपात में लाभ मिल सके इसलिए अध्यादेश वर्ष 2021 की धारा 9(अ) को लागू किया था. कांग्रेस के याचिकाकर्ताओं ने धारा 9(अ) को लागू किए जाने का सर्वोच्च न्यायालय में तीव्र विरोध किया था. इसे संविधान के अनुच्छेद 243(सी) और (डी) का उल्लंघन बताते हुए इस संशोधन का निरस्त करने की मांग की थी.


मंत्री ने कही ये बात


मंत्री सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का 50 फीसदी से अधिक का मुद्दा नहीं उठाया होता तो माननीय सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र के गवली केस में दिए गए सिद्धांत का उल्लेख नहीं करती और संपूर्ण आरक्षण को निरस्त नहीं करती. कांग्रेस के पक्षकार चाहते तो महाराष्ट्र गवली केस से अलग के रोटेशन सिस्टम पर विचार करने का निवेदन कर सकते थे. अब यह तथ्य स्पष्ट है कि कांग्रेस एक तरफ तो ओबीसी का आरक्षण स्थगित और निरस्त कराती है और दूसरी तरफ ओबीसी वर्ग का हितैषी होने का ढिंडोरा पीटती है.


कमलनाथ पर साधा निशाना


मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि कमलनाथ को बताना चाहिए कि जब जबलपुर हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के लिए सिर्फ तीन परीक्षाओं पर स्टे लगाया था तब एक साल मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने सारी परीक्षाओं और नियुक्तियों में 27 फीसदी के बजाए 14 फीसदी आरक्षण देकर ओबीसी वर्ग के अभ्यार्थियों के साथ अन्याय क्यों किया.


यह सर्वमान्य तथ्य है कि कमलनाथ ने अपनी सरकार के रहते पिछड़ा वर्ग के एक भी अभ्यर्थी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं मिलने दिया. जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के एक महीने के भीतर ही यह संभव कर दिखाया था.


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