MP News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) का शुक्रवार 18 नवंबर को जबलपुर आएंगे. भागवत 20 नवंबर तक जबलपुर में रहेंगे. इस दौरान वो पूरे महाकौशल प्रांत से आने वाले संघ कार्यकर्ताओं की बैठक लेंगे और कार्यकर्ताओं के परिवारों से भेंट करेंगे. बता दें कि संघ भले ही इसे सरसंघचालक का सामान्य प्रवास बता रहा है लेकिन राजनीतिक जानकर 2023 के विधानसभा चुनाव की फील्डिंग के तौर पर भी इसे देख रहे हैं.
कहा जा रहा है कि सरसंघचालक इस दौरान जबलपुर के राजनीतिक ताप का भी आंकलन कर सकते हैं. कभी संघ का गढ़ माने जाने वाले जबलपुर में इस वक्त बीजेपी और कांग्रेस के आधे-आधे विधायक हैं. महाकोशल के प्रमुख नगर जबलपुर को प्रदेश के आदिवासी जमात की राजनीति का केंद्र भी माना जाता है.
3 दिनों का है दौरा
संघ की स्थानीय शाखा के मुताबिक 19 नवम्बर को मानस भवन में शाम 6 बजे सरसंघचालक भागवत एक प्रबुद्धजन संगोष्ठी को भी संबोधित करेंगे. संघ की परंपरा है कि केंद्रीय अधिकारियों का एक निश्चित अंतराल में हर प्रांत में जाना होता है. इसी क्रम में सरसंघचालक भागवत का जबलपुर आना हो रहा है. इन तीन दिनों में वो कार्यकर्ताओं से शाखा कार्य, सेवा कार्य, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता, महिला सशक्तिकरण, कृषि और श्रमिक कल्याण आदि विषयों पर चर्चा करेंगे.
इस दौरान भागवत स्वयंसेवकों द्वारा संगठन की दृष्टि से किये जा रहे कार्यों, सामाजिक कार्यों और नूतन प्रयोगों की जानकारी लेंगे. साथ ही देशभर में स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न रचनात्मक कार्यों से कार्यकर्ताओं को अवगत कराएंगे. सरसंघचालक के आगमन की दृष्टि से प्रांत के सभी जिलों में विगत अनेक माहों से बैठकों और कार्यक्रमों का क्रम जारी है.
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों समुदाय के लिए आरक्षित है. करीब 22 फीसदी वोट आदिवासियों के हैं. पिछले कई चुनावों से आदिवासी समुदाय मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र में रहा है. 2003 में दिग्विजय सिंह के खिलाफ बीजेपी की जीत में आदिवासी समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग होना बड़ा कारण था. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने ना केवल 6 विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की थी, बल्कि आदिवासी सीटों पर कांग्रेस के वोट भी काटे थे.
2018 चुनाव में आदिवासी वोट कांग्रेस के पक्ष में गया था
आदिवासी वोट 2013 तक के चुनाव में बीजेपी के साथ बना रहा. इस चुनाव में जहां बीजेपी को 31 सीटें मिली थी, वहीं कांग्रेस को 16 सीट पर संतोष करना पड़ा था. 2018 के चुनाव में कांग्रेस का भाग्य बदलने की बड़ी वजह आदिवासी समुदाय के वोट थे. इस चुनाव में आदिवासियों का बीजेपी से मोह भंग हो गया. कांग्रेस के खाते में आदिवासी समुदाय की 31 सीटें गईं तो 16 सीटें बीजेपी को मिली. बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी थी, जो उसकी चिंता की बड़ी वजह है.
वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र दुबे के मुताबिक इसी आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में लाने के लिए बीजेपी ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है. हाल ही में समीपी जिले शहडोल में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की मौजूदगी में सरकार ने आदिवासियों को रिझाने के लिए बड़ा कार्यक्रम किया था. पिछले साल जबलपुर में गृह मंत्री अमित शाह भी कुंवर रघुनाथ शाह-शंकर शाह जयंती पर आदिवासी जननायकों के कार्यक्रम में आये थे. आदिवासी वोटों को ध्यान में रखकर शिवराज सरकार ने अनगिनत घोषणाएं भी कर रखी हैं.