Mahakal temple: प्रसिद्ध दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकाल के दरबार में वैशाख और ज्येष्ठ मास में कुछ ऐसी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है, जो श्रद्धालुओं (devotees) के लिए भी काफी उत्साह बढ़ाने वाली है. यहां पर जलाधारी के साथ 11 गलंतिका (मटकी) बांधी जाती है. 


भगवान शिव को गर्मी से बचाने के लिए लगाया जाता है गलंतिका
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने हलाहल का पान किया था, इसी वजह से भगवान शिव के मंदिरों में जलाधारी के माध्यम से भगवान की शिव की गर्मी खत्म करने और भगवान को प्रसन्न करने के लिए जल प्रवाह मान कराया जाता है. प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकाल के दरबार में इसी से जुड़ी एक अनूठी परंपरा का भी निर्वहन होता है.  महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी राम शर्मा बताते हैं कि वैशाख और ज्येष्ठ मास में भगवान महाकाल के गर्भगृह में जलाधारी के पास 11 मटकियों को लटकाया जाता है. इन गलंतिकाओं के माध्यम से भगवान महाकाल पर जल धारा प्रवाहित की जाती है.  यह सिलसिला 60 दिनों तक सतत चलता रहता है. भगवान महाकाल को भीषण गर्मी से बचाने के लिए इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है. 


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पवित्र नदियों का प्रतीकात्मक जल प्रवाह 
जलाधारी के पास लगाई जाने वाली 11 मटकियों पर अलग-अलग पवित्र नदियों के नाम अंकित कर यह माना जाता है कि उन नदियों का जल भगवान महाकाल पर प्रवाहमान कराया जा रहा है. इनमें गंगा, यमुना, गोदावरी आदि नदियां प्रमुख है. महाकाल के दरबार में यह परंपरा अनादिकाल से निभाई जा रही है. 


सूर्योदय से सूर्यास्त तक चढ़ता है जल
महाकालेश्वर मंदिर के विकास गुरु बताते हैं कि सुबह सूर्योदय से पहले ही भगवान महाकाल को जल चढ़ना शुरू हो जाता है लेकिन मटकियों के माध्यम से सुबह 7 बजे से सूर्यास्त तक जल का प्रवाह समान होता है. सुबह भस्म आरती में भगवान को जल, दूध, दही, शहद, फलों के रस से स्नान कराया जाता है. इसके बाद प्रातः कालीन आरती के दौरान ही मटकिया लगा दी जाती है.


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