भोपाल: मध्य प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. विभिन्न विभागों में पदों के रिक्त होने की बातें अक्सर निकल कर सामने आती हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात शिक्षा विभाग से जुड़ी है. आंकड़ों की माने तो मध्य प्रदेश के अंदर सबसे अधिक शिक्षकों की आवश्यकता इस वक्त स्कूलों को है. मध्य प्रदेश में 21 हजार 77 स्कूल केवल एक 1 शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. प्रदेश में इस समय करीब 87 हजार 630 शिक्षकों की जरूरत है. 


प्रतियोगी परीक्षाओं का हाल क्या है


राजधानी भोपाल हो या व्यवसायिक राजधानी इंदौर, बड़े शहरों, छोटे कस्बे हो या ग्रामीण अंचल सभी जगह शिक्षा की यही हालात है. मध्य प्रदेश में इस समय करीब 87 हजार 630 शिक्षकों की वर्तमान समय में आवश्यकता है. लेकिन फिर भी योग्य युवा शिक्षक उम्मीदवार सड़कों की धूल छान रहे हैं. बीते 3 सालों में अंदर शिक्षक भर्ती वर्ग 1, 2 और 3 की परीक्षाएं आयोजित हुईं, लेकिन तीनों की तीनों ही परीक्षाएं विवादों के चलते अपने निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाई हैं.


वर्ग तीन की परीक्षा का रिजल्ट आना बाकी है, जो कि विवादित है. वहीं वर्ग 1 और 2 में अपेक्षा के अनुरूप भर्ती नहीं की जाने से उम्मीदवार लगातार नाराज हैं.यदि मध्य प्रदेश के मिडिल स्कूलों की बात की जाए तो भोपाल राजधानी के अंदर ही लगभग 7 स्कूल ऐसे हैं, जो केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. वही लगभग 21 हजार 77 स्कूल ऐसे हैं, जो एक शिक्षक के भरोसे पूरे प्रदेश में चल रहे हैं. चाहे चंबल का इलाका हो या मालवा, निमाड़ के जिले सभी स्थानों पर स्कूलों में शिक्षकों की कमी देखी जा रही है.


क्यों खाली हैं शिक्षकों के पद


इसके साथ ही साथ विषय विशेषज्ञों की अनुपलब्धता भी मध्य प्रदेश के शैक्षणिक स्तर को दर्शाने के लिए काफी है. इतनी समस्या होने के बावजूद भी बड़े स्तर पर शिक्षक भर्ती कराकर इस समस्या को दूर करने का प्रयास ना तो शिक्षा विभाग कर रहा है ना ही सरकार इसकी ओर ध्यान दे रही है. शिक्षा मामलों की जानकार डॉक्टर रश्मि गुप्ता और रमाकांत पांडे ने बताया कि मध्य प्रदेश में पिछले 12 साल में दो बार ही शिक्षक भर्ती हुई है. शिक्षाकर्मी अध्यापक संविदा शिक्षक और फिर साथ में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षक बनाने की प्रक्रिया चलती रही. उन्होंने बताया कि प्रदेश में शिक्षकों के एडजस्टमेंट और स्कूलों में सरप्लस शिक्षकों की समीक्षा कर उन्हें स्कूलों में भेजने की प्रक्रिया भी धीमी रही, इस कारण स्कूल में शिक्षकों और विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की कमी बनी रही.


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