MP News: जबलपुर में चार साल में पांचवें कलेक्टर की आमद ने कई सवाल खड़े कर दिए है. पूछा जा रहा है कि क्या बेहतर काम करने वाले अधिकारियों को जबलपुर में रहने का हक नहीं है? या फिर यहां आने वाले आईएएस बेहतर काम नहीं कर पा रहे है. यह सवाल इसलिए भी पूछा जा रहा है कि करीब 9 महीने पूर्व कलेक्टर की जिम्मेदारी संभालने वाले डॉक्टर इलैयाराजा टी का तबादला भी अचानक इंदौर कर दिया गया. माना जा रहा है कि इंदौर जैसे महानगर में डॉक्टर इलैयाराजा की पदस्थापना उनका प्रमोशन है लेकिन क्या बेहतर काम करने वाले अधिकारी जबलपुर के लिए उपयोगी साबित नहीं हो सकते.
बता दें कि शासन ने पिछले दिनों एमपी में अनेक कलेक्टर के तबादले किए हैं, जिनमें जबलपुर के कलेक्टर डॉक्टर इलैयाराजा टी भी शामिल है. इन्हें जबलपुर में आए हुए करीब 8 या 9 महीने हुए थे और इस दौरान उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली से जबलपुर की जनता के बीच में बेहतर छवि बनाई थी. जन सुनवाई में जिस तरह से उन्होंने आम लोगों की समस्याओं का निराकरण किया, उससे उनकी संवेदनशीलता जाहिर होती थी. इसके अलावा सुबह से लेकर रात तक निरीक्षण और निर्देशों का दौर भी चलता रहता था. उसने भी यह संदेश दिया था कि जबलपुर को एक बेहतर और कर्मठ प्रशासनिक अधिकारी मिला है, जिससे आम जनता की समस्याओं का निराकरण हो सकेगा. लेकिन मात्र 9 महीने के भीतर ही उनको जबलपुर से स्थानांतरित कर इंदौर भेजना जबलपुर के आम जनमानस के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है.
अच्छी छवि के बाद भी नहीं टिक सकी छवि भारद्वाज
एक लंबे अरसे बाद जबलपुर कलेक्टर के रूप में एक महिला आईएएस अधिकारी छवि भारद्वाज की पदस्थापना हुई थी. उनकी अपनी एक अलग कार्यप्रणाली थी. एक महिला होने के बावजूद उन्होंने जिस तरह से फील्ड वर्क किया उससे भी उससे उनकी एक अलग तरह की छवि निर्मित हुई थी. ग्वारीघाट में एक दुर्गा प्रतिमा को लेकर हुए विवाद के दौरान जिस तरह से छवि भारद्वाज ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया था, वह भी लोगों को याद है. लेकिन बताया जाता है कि कांग्रेस के एक बड़े नेता से हुए विवाद के बाद उन्हें 2018 में सरकार बदलने पर यहां से स्थानांतरित कर भोपाल भेज दिया गया था.
कोरोना काल में हटाए गए भरत यादव
छवि भारद्वाज के तबादले के बाद भरत यादव को जबलपुर भेजा गया था. लेकिन अपने कार्यकाल की आधी अवधि के दौरान ही अचानक उन्हें जबलपुर से स्थानांतरित कर भोपाल भेज दिया गया था. जबकि उस समय कोरोना का संकट शुरू हो गया था और उस दौरान आई इस नई मुसीबत को जिस तरह से भरत यादव ने संभाला था, वह भी लोगों को याद है. पीपीई किट पहनकर अस्पताल में भर्ती मरीजों से संवाद करने की जो प्रक्रिया उन्होंने शुरू की थी, उसने एक अच्छा संदेश इस भीषण बीमारी के दौरान दिया था. लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि ऐसे संकट काल में भी भरत यादव को स्थानांतरित कर भोपाल भेज दिया गया.
कर्मवीर शर्मा ने भी किए थे नवाचार
वहीं भरत यादव के अचानक हुए तबादले के बाद कर्मवीर शर्मा ने जबलपुर कलेक्टर की बागडोर अपने हाथों में ली थी. वे एक छोटे जिले से जबलपुर आए थे, लेकिन उन्होंने भी अपनी कार्यप्रणाली से जनता को आश्वस्त किया था कि उनकी समस्याओं का भी बेहतर ढंग से निराकरण करेंगे. उस दौरान कोरोना काल पूरे शबाब पर पंहुच गया था, लेकिन उस संकट काल को भी व्यवस्थित ढंग से कर्मवीर शर्मा ने मैनेज किया था. इसके अलावा एक नवाचार करते हुए केयर फॉर कलेक्टर नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था, जिसमें आम जनता अपनी समस्या को व्हाट्सएप में भेजती थी और उसका तत्काल निराकरण कलेक्टर द्वारा निर्धारित अधिकारियों द्वारा कर दिया जाता था. ऐसे अनेक मामले उस वक्त सामने आए थे जब आधी रात को भी किसी व्यक्ति को परेशानी हुई तो उसका निपटारा तत्काल कर दिया गया. कई महीनों से लटकी पेंशन का मसला हो या मार्कशीट ना मिलने की शिकायत हो, उसका निपटारा भी केयर बाय कलेक्टर व्हाट्सएप ग्रुप द्वारा कर दिया गया था लेकिन फिर अचानक कर्मवीर शर्मा को भी बीच में ही स्थानांतरित कर भोपाल ऊर्जा विभाग में पदस्थ कर दिया गया.
इन तमाम जिला कलेक्टरों के अपना कार्यकाल पूर्ण करने के पूर्व ही अचानक तबादलों को लेकर आम जनमानस में इस बात की चर्चा है कि क्या शासन ने जबलपुर को दोयम दर्जे का जिला मान लिया है? क्या बेहतर काम करने वाले अधिकारी जबलपुर में काम करने के अधिकारी नहीं है. यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है किसी भी बड़े अधिकारी को कम से कम 3 साल तक जिले की बागडोर सौंपने की एक प्रक्रिया है लेकिन यह जबलपुर के साथ ही हो रहा है कि जल्दी-जल्दी जबलपुर के कलेक्टर बदले जा रहे हैं. किसी भी कलेक्टर-एसपी को उस जिले की तासीर को समझने के लिए कम से कम 4 या 5 महीने लगते हैं. उसके बाद उस जिले के मिजाज को समझने के बाद वह अपना काम शुरू करता है, लेकिन यह जबलपुर का दुर्भाग्य है कि जब तक कोई अधिकारी इस शहर का मिजाज समझता है और अपना काम शुरू करता है, उसका ट्रांसफर कर दिया जाता है.
क्या राजनेता खुश नहीं थे?
शहर में इस बात की चर्चा है कि डॉक्टर इलैयाराजा टी की कार्यप्रणाली से शहर के राजनेता नाखुश थे. विधायक निधि से होने वाले कामों में कलेक्टर इलैयाराजा टी ने एक नई प्रक्रिया की जो शुरुआत की थी, उससे भी विधायकों की विधायक निधि से होने वाले कामों में रुकावट आने लगी थी जिससे विधायक अपना काम समय पर नहीं करवा पा रहे थे. इसके अलावा जनसुनवाई में जिस तरह से भीड़ उमड़ रही थी, उससे नेताओं के दरबार भी सूने हो गए थे. बहरहाल इन तमाम बातों में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन जो चर्चाएं आम जनमानस के बीच चल रही हैं, उससे यह संदेश जरूर जा रहा है कि जबलपुर में किसी बेहतर काम करने वाले अधिकारी की आवश्यकता नहीं है.
क्या सुमन स्थाई रहेंगे?
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गृह जिले छिंदवाड़ा से जबलपुर आने वाले कलेक्टर सौरव कुमार सुमन अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे या नहीं यह भी एक सवाल आम जनमानस के दिलों दिमाग में घूम रहा है. उनकी कार्यप्रणाली कैसी रहती है यह कुछ दिन बाद ही पता लग पाएगा लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि किसी भी अधिकारी को कम से कम उसका कार्यकाल पूरा करने दिया जाए ताकि जो अधूरे काम रहते हैं, वह भी पूरा कर सकें.
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