MP News: चम्बल (Chambal) की धरती जिसपर कभी डकैतों का आतंक और कन्या भ्रूण हत्या जैसे कलंक का साया हुआ करता था आज उसी क्षेत्र के हजारों युवा बॉर्डर पर देश की सेवा कर रहे हैं और बेटियां खेलों में विश्व स्तर पर मेडल लाकर देश का गौरव बढ़ा रही हैं. जहां भिंड (Bhind) की दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा ने एशियन पैरा चैंपियनशिप गेम्स (Asian Para Championship) में सिल्वर और फिर पैरा केनो विश्व चैंपियनशिप में देश के लिए पहला रजत पदक जीतकर जिले का नाम रोशन किया. वहीं अब वाटर स्पोर्ट्स में जिले की अंजलि शिवहरे (Anjali Shivhare) अपना जौहर दिखा रही हैं.
अंजलि शिवहरे ने रोइंग में जीता ब्रांज
अंजलि शिवहरे ने हाल ही में हुए नेशनल गेम्स में मध्य प्रदेश की तरफ़ से खेलते हुए वाटर स्पोर्ट्स के रोइंग गेम में डबल्स खेला और दोनों खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए ब्रॉन्ज मेडल हांसिल किया जो अपने आप में बड़ी बात है. अंजलि कहती हैं कि वैसे तो वाटर स्पोर्ट्स बहुत ख़तरनाक होते हैं लेकिन खतरों से खेलने का मज़ा भी अलग है. वह कहती हैं कि भिंड वाले तो होते ही ख़तरों के खिलाड़ी हैं. वहीं उनके कोच दलवीर सिंह मानते हैं कि भिंड वालों में जोश बहुत होता है. उन्होंने कहा कि भिंड के युवाओं में अलग ही जुनून होता है. यदि उन्हें सही मार्गदर्शन मिल जाये तो वे कुछ भी कर सकते हैं. यही सोच अंजलि की भी है बचपन से ही वह कुछ अलग करना चाहती थीं. समाज को बताना चाहती थी कि वे लड़की हैं तो क्या हुआ वह किसी लड़के से कम नहीं हैं.
दुनिया का दूसरा सबसे खतरनाक खेल है रोइंग
अंजलि कहती हैं कि इन पलों का उन्हें बहुत दिनों से इंतज़ार था. उन्होंने कहा कि इस मेडल के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है. भोपाल जाने के बाद तीन साल पहले उन्होंने रोइंग गेम चुना जो दुनिया का दूसरा सबसे ख़तरनाक खेल माना जाता है लेकिन उसके कुछ समय बाद ही कोरोना आ गया जिसकी वजह से प्रैक्टिस सेशन नहीं हो सका, हालांकि उनके कोच लगातार ऑनलाइन माध्यम से गाइडेंस और क्लासेस लेते रहे, लेकिन कोरोना की वजह से कोई भी इवेंट नहीं हुआ.
सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में मेडल न जीत पाने का था दुख
जनवरी में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप आयोजित हुई थी लेकिन चंद माइक्रो सेकेंड की वजह से वे चौथे पायदान पर पहुंच गईं और मेडल उनके हाथ से निकल गया. वह कहती हैं कि उन्हें यह बात कचोट रही थी और इस बार उन्हें अपने आपको साबित करना था. हमने कर दिखाया अब हमारा अगला टारगेट एशियन गेम्स खेलने का है. अंजलि कहती हैं कि शुरुआत में भिंड शहर में बने गौरी सरोवर स्थित बोट क्लब पर केनो और कयाक सीखा.
कुछ इवेंट्स में हिस्सा भी लिया कोच को भरोसा था कि मैं आगे तक जा सकती हूं. उन्होंने अचानक एक दिन भोपाल में मौजूद मध्य प्रदेश खेल अकादमी में चयन के लिए हुए ट्राइल्स में हिस्सा दिलाया और काम बन गया. खेल एकेडमी में मुझे जॉइनिंग मिल गई लेकिन अब घर और घरवालों से दूर प्रदेश की राजधानी में अकेले रहना टास्क जैसा था और उससे भी बड़ा चैलेंज था माता-पिता को इस बात के लिए मनाना कि वे लोग अंजलि को तैयारी के लिए भोपाल भेज दें.
आसान नहीं रहा अंजलि के लिये यहां तक का सफर
मध्यम परिवार में पली बड़ी हुई अंजलि के पास सुख सुविधाएं सीमित थीं. पिता एक किराने की दुकान चलते हैं तो मां आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं. एक तरह से घर की आजीविका चलाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था. ऐसे में जब छोटी अंजलि ने अपने बड़े सपनों को पूरा करने में घरवालों की मदद चाही तो मजबूरन उनके हाथ सिकुड़ गए एक तरफ़ जहां खर्च बढ़ने जा रहा था वहीं दूसरी तरफ समाज की सोच आड़े आ रही थी लेकिन मां का सपोर्ट हमेशा अपनी बेटी पर भरोसे के रूप में रहा.
अंजलि शिवहरे की मां कहती हैं कि अंजलि ने एक खतरनाख खेल चुना था, हमें उसे बाहर भेजने में शुरू से ही डर लगा रहता था. इसलिए मैं उसे बाहर नहीं भेजना चाहती थी. जब पता चला कि बेटी को बाहर भेजना है तो मैंने साफ़ इंकार कर दिया लेकिन इसके बाद पहले कोच राधेगोपाल का फ़ोन आया जिन्होंने भरोसा दिलाया और उन्होंने अपनी बेटी को भी साथ भेजने की बात कही. इसके बाद हमने अंजलि को बाहर भेजने का फैसला किया और आज हम अंजलि की कामयाबी से बहुत खुश हैं.
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