Madhya Pradesh Politics: मध्य प्रदेश में सरकार बनने के बाद डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार के साथ बीजेपी संगठन का खास ध्यान आदिवासी वोट बैंक पर है. यह बात मंत्रिपरिषद की जबलपुर में हुई पहली बैठक से ही जाहिर हो गई है. मध्य प्रदेश की राजनीति में 22 फीसदी वोट रखने वाले आदिवासी वर्ग की खास अहमियत है. यही कारण है कि सत्ताधारी बीजेपी हो या विरोधी दल कांग्रेस दोनों ही इस वर्ग को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं.
विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी सफलता के बाद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आदिवासी वर्ग के बीच अपनी पैठ को मजबूत करने की कोशिश शुरू कर दी है. बीजेपी की सरकार ने अपने गठन के बाद पहली मंत्रिपरिषद की बैठक के जरिए ही यह संदेश दे दिया है कि उसका जोर आदिवासी वोट बैंक पर रहने वाला है.
जबलपुर में हुई बैठक में आदिवासी वर्ग को लेकर दो बड़े फैसले हुए एक तो तेंदूपत्ता संग्रहण की प्रति मानक बोरा दर तीन हजार से बढ़कर चार हजार रुपये कर दी गई, वहीं, मिलेट के उत्पादन पर 10 रुपये प्रति किलो की राशि प्रदान की जाएगी. यह दोनों फैसले आदिवासी वर्ग को लाभ पहुंचाने की मकसद से लिए गए हैं.
जबलपुर में हुई बैठक के मायने है, क्योंकि महाकौशल इलाके में आदिवासी बड़ी तादाद में हैं तो वहीं इससे सटे इलाके विंध्य की राजनीति में यह वर्ग बड़ी भूमिका निभाता है. लिहाजा बीजेपी ने इस वर्ग को साधने के लिए बिसात बिछा दी है.
एक तरफ जहां सरकार चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करने में लगी है तो वहीं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के तेवर सख्त हैं. बीते दिनों में उन्होंने जो कदम उठाए हैं या नौकरशाही पर लगाम लगाने के फैसले लिए हैं, उससे सत्ताधारी दल ही नहीं, विपक्षी दल भी संतुष्ट और खुश हैं.
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने तो कहा है कि शाजापुर कलेक्टर किशोर कान्याल को एक ड्राइवर भाई की औकात दिखाने पर उनके पद से हटाया जाना अच्छी बात है. लोकतंत्र में जनता से उसकी औकात पूछने का अधिकार नौकरशाहों को नहीं है. जनता सर्वोपरि थी, सर्वोपरि है और हमेशा रहेगी. शिवराज शासन के बेलगाम कलेक्टरों को एक-एक करके निपटाया जाना गलत भी नहीं है. गुना कलेक्टर को बस हादसे की सजा मिली तो शाजापुर कलेक्टर को भरी मीटिंग में अपनी ताकत दिखाने की. गंदगी के खिलाफ स्वच्छता अभियान तो चलना ही चाहिए.
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