MP News: भोपाल के विधानसभा परिसर में 20 दिसंबर को अपनी तरह की एक अलग विषय वस्तु वाली पुस्तक का विमोचन होगा. 'बिछड़े कई बारी-बारी' नाम से आ रही इस पुस्तक का सम्पादन मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली ने किया है. किताब कोरोना काल में कर्तव्य और सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते संक्रमण की चपेट में आये और फिर दिवंगत हो गए पत्रकारों के संघर्ष का दस्तावेजीकरण है. कोरोना महमारी में पत्रकारों के योगदान पर देश-दुनिया की पहली पुस्तक होने का दावा है. 


कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में निष्ठुर खेल खेला और करोड़ों लोगों की जान ली. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा. मध्यप्रदेश में इस महामारी ने पूरा सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक ताना-बाना ध्वस्त कर दिया. कुछ समय तो ये हालात बने कि मौत, भूख से हो या कोरोना से? लोग चिंता में रहे क्योंकि एक तरफ बेरोजगारी थी और दूसरकी तरफ कोरोना से जान जाने का भय. कोरोना पर असमंजस आज भी बरकरार है. समाज, सरकार सबने मदद की, हर कोशिश की, नतीजतन थोड़ी राहत तो जरूर मिली, बावजूद इसके अगर सरकारी आंकड़ों को ही मानें तो राज्य में आठ लाख से ज्यादा लोग वायरस की चपेट में आए और साढ़े दस हजार से अधिक लोगों की जानें जा चुकीं हैं. हालांकि असली आंकड़ा इससे कहीं अधिक है और अब भी रहस्य ही रहेगा.


संक्रमण रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन किया, कर्फ्यू लगाया. सब लोग घरों में कैद थे, लेकिन पुलिस, प्रशासन, चिकित्सक, चिकित्सा से जुड़े लोग और सफाईकर्मियों के अलावा लोकहित चिंतक पत्रकार यानी मीडिया से संबंध लोग सड़कों पर, कोरोना अस्पतालों में न केवल कवरेज के लिए तत्पर रहे, बल्कि शासन की आवश्यक बैठकों में भी मौजूद रहते थे. यही वजह  रही कि साक्षात मौत की सुरंग में काम करते हुए अनेक पत्रकार कोविड-19 के संक्रमण का शिकार होकर मौत की नींद सो गए. इस जानलेवा वायरस की गिरफ्त में मैं भी आया, लेकिन चिकित्सकों का बेहतर इलाज, परिजनों की सेवा और शुभचिंतकों की दुआओं से काल के मुंह से निकल आया, वरना एक दौर ऐसा भी आया कि लगा बारी-बारी जिस तरह कोरोना वायरस पत्रकार साथियों को निगल रहा है, उसका हिस्सा कहीं मैं भी न बन जाऊं. देश में तो सैंकड़ों पत्रकार अनंत में विलीन हुए ही, मेरे अपने प्रदेश में अनेक मूर्धन्य पत्रकार असमय चले बसे.


श्रीमाली कहते हैं, "पत्रकारों की इन मौतों ने मुझे झकझोर दिया क्योंकि मैं जानता हूं पत्रकार के परिवार का अस्तित्व सांस टूटने के साथ ही मिट जाने की हालत में आ जाता है." 'ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान' की आपात बुलाई बैठक में मैंने सुझाव दिया कि कोरोना काल में मध्यप्रदेश के दिवंगत पत्रकारों का दस्तावेजीकरण हर हाल में किया जाए और दिवंगतों की स्मृति अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए एक पुस्तक निकाली जाए. विचार सबको पसंद आया लेकिन मुश्किम काम था क्योंकि एक तो प्रदेश के कोने-कोने से दिवंगत पत्रकारों का पता करना था, फिर उन पर वहीं के अच्छे पत्रकारों से लिखवाना भी था. शुरू में पता चला कि इस काल में लगभग पचास पत्रकारों की मौत हुई है, लेकिन जब काम आगे बढ़ा तो मैं चौंक पड़ा. मीडिया से कोरोना-कालखण्ड में सौ से भी ज्यादा कलम के सिपाही पुनीत दायित्व का निर्वहन करते हुए साथ छोड़ गए. चौंकाने वाला आंकड़ा छिंदवाड़ा जैसे छोटे जिले का था, जहां के 16 पत्रकार दिवंगत हुए. 


यह पुस्तक मध्यप्रदेश के दिवंगत पत्रकारों को श्रद्धाजंलि बतौर शब्दांजलि है. इसके साथ ही इस दौर में साथ छोड़ने वाले पत्रकारों के जीवन, व्यक्तित्व, संघर्ष और कोरोना काल में उनके परिवारों की तरफ से झेलीं गईं मुसीबतों का भी उल्लेख है. इस पुस्तक में दर्ज कई घटनाएं आपके रोंगटे खड़े कर देंगी, तो कई आंखों में आंसू ला देंगी. इसमें प्रिंट और विभिन्न मीडिया से जुड़े सभी लोगों को शामिल करने का प्रयास किया है लेकिन अभी भी कुछ नाम छूट गए होंगे. खास बात ये भी है कि इसमें कुछ पत्रकारों के पत्रकार लोगों को भी जगह दी गई है. भले ही सीधे तौर पर पत्रकार न हों लेकिन उनके आसपास सदा पत्रकारों का जमघट रहता था और यही माहौल उनके कोरोना संक्रमण की वजह बन गया. इसमें दिवंगत पत्रकारों की संघर्ष और शख्सियत पर प्रदेश भर के प्रमुख पत्रकारों ने कलम चलाकर शब्दांजलि दी है. सभी दिवंगत पत्रकारों को श्रद्धांजलि देते हुए उनके परिवारों को पुस्तक हौंसला देगी और समाज इसके जरिये कोरोना काल में प्रेस और मीडिया के किये गए कर्तव्य निर्वहन पर अमूल्य योगदान का आकलन कर सकेगा. जब कभी भी कोरोना काल का इतिहास लिखा जाएगा, यह पुस्तक प्रदेश के पत्रकारों के योगदान जिसे मैं शहादत कहूंगा, का भी जिक्र करने का मजबूत दस्तावेजी आधार बनेगी.


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